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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

असहाय किसान और अनभिज्ञ नीतियाँ

  • 23 Jun 2017
  • 7 min read

संदर्भ
कुछ दिनों पहले तमिलनाडु से शुरू हुआ किसानों का आन्दोलन हाल के दिनों में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक आदि राज्यों में भी फैल गया है। यह विरोध प्रदर्शन मुख्यतः कृषि ऋणों की माफी की मांग से संबंधित है। वास्तव में हमें यह देखने की ज़रूरत है कि आखिर इस प्रकार के विरोध प्रदर्शनों की असली वज़ह क्या है? क्या इसका कारण कृषि से संबंधित हमारी नीतियाँ तो नहीं हैं?

प्रेरणा कहा से मिली?

  • इस प्रकार की घटनाओं की प्रेरणा दस वर्ष पूर्व पिछली सरकार द्वारा लगभग 70,000 करोड़ रुपए की  ऋण माफी की घोषणा से मानी जाती है।
  • हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 37,000 करोड़ रुपए के कृषि ऋण को माफ करने का फैसला लिया गया है। यह भी एक कारण हो सकता है, जिसने अन्य राज्यों के किसानों को आन्दोलन करने की प्रेरणा दी। 

ऋण माफी खराब क्यों है?

  • कृषि ऋण माफी को कृषि के लिये एक विकृत प्रोत्साहन माना जाता है। 
  • इससे न तो कृषकों की क्षमता निर्माण में मदद मिलती है और न ही कृषि गतिविधियों की दक्षता में सुधार हो पाता है। 
  • आमतौर पर इस प्रकार के अनुचित प्रोत्साहनों से एक परिपाटी का निर्माण हो जाता है और किसान इसको ऋण के रूप न लेकर एक अनुदान समझने लगते हैं।

अन्य देशों में स्थिति

  • विश्व के अधिकांश देशों, विशेष रूप से विकसित अर्थव्यवस्थाओं में कृषि को हमेशा ही सब्सिडी दी जाती है। 
  • इन देशों द्वारा उत्पादकों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ पहुँचाने के लिये विभिन्न तरीके अपनाये जाते हैं।
  • हालाँकि विश्व व्यापार संगठन (WTO) के तहत कृषि सब्सिडी को कम करने के लिये समझौते किये गए है, लेकिन फिर भी इन देशों द्वारा कृषि सब्सिडी दी जा रही है। 

भारत में स्थिति

  • उदाहरणस्वरूप दालों का घरेलू स्तर पर उत्पादन (224 लाख टन) और आयात (64 लाख टन) के कारण वृद्धि हुई है फिर भी कृषक लाभकारी कीमतों की मांग कर रहे हैं। 
  • हमारे देश में कृषि को थोड़ी बहुत ही सब्सिडी सहायता प्रदान की जाती है और यह भी अक्सर अनेक प्रतिबंधों के रूप में नकारात्मक सब्सिडी होती है।
  • किसानों की स्थिति पूरे देश में अलग-अलग है। उदाहरण के लिये तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में अपर्याप्त वर्षा और कम कीमतों के कारण किसानों की ऋण चुकाने की क्षमता कमज़ोर हो जाती है।
  • देखा जाए तो मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के मामले में ऐसा नहीं है। हाल ही के वर्षों में मध्य प्रदेश में कृषि क्षेत्र ने काफी सफलता अर्जित की है।  पिछले पाँच वर्षों में कृषि की वार्षिक औसत वृद्धि लगभग 14 फीसदी रही है।
  • ग्रामीण बुनियादी सुविधाओं जैसे सड़क कनेक्टिविटी, विपणन सुधारों और आसान ऋण उपलब्धता ने मध्य प्रदेश के कृषि विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अनाज से उच्च मूल्य वाली बागवानी फसलों के विविधीकरण ने किसानों की आय में भी वृद्धि की है। निश्चित रूप से कई अन्य राज्यों की तुलना में मध्य प्रदेश के किसान काफी बेहतर स्थिति में हैं। 
  • भारतीय कृषि परिस्थितियों के अंतर्गत देखा जाए तो उद्योगपतियों की तुलना में किसान कहीं अधिक जोखिम उठाते हैं, लेकिन उनके जोखिम उठाने का शायद ही कभी उनको इनाम मिलता हो।

समाधान

  • अल्पकालिक उपाय के अंतर्गत ऋण माफी के बजाय ऋणों के पुनर्निर्धारण या पुनर्गठन करने की आवश्यकता है। यह उन राज्यों के लिये ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है, जहाँ वर्षा की कमी  आदि के रूप में काफी प्राकृतिक आपदाएँ आती रहती हैं।
  • मध्यम से लंबी अवधि के उपायों के दृष्टिकोण से यह ज़रूरी है कि नीतियों द्वारा समर्थन, निवेश समर्थन और कृषि अनुसंधान समर्थन के लिये महत्त्वपूर्ण कदम उठाए जाएं।
  • इनपुट वितरण प्रणाली को मज़बूत बनाना। 
  • तेज़ी से सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करना। 
  • अनेक तकनीकों का खेती में निवेश करना।  
  • ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में निवेश को बढ़ाना।  
  • उत्पादकों के मूल्य संबंधी, बाज़ार संबंधी और मौसम संबंधी जानकारी उपलब्ध कराने हेतु सूचना प्रौद्योगिकी (ITC) के उपयोग को बढ़ावा देना।  
  • बढ़ते वैश्विक बाज़ार के साथ एकीकरण स्थापित करने के लिये किसानों की क्षमता निर्माण पर ध्यान देना।
  • भंडारण, विपणन और निर्यात व्यापार से संबंधित सभी प्रकार के प्रतिबंधों को दूर किया जाना। 

निष्कर्ष
कृषक समुदाय के गौरव का संरक्षण करना हमारे राष्ट्रीय एजेंडे के शीर्ष पर होना चाहिये। हमें ऋण माफी की मांग और कृषि संकट का स्थायी समाधान खोजने की आवश्यकता है। हालाँकि कृषि को भारतीय संविधान में राज्यों का विषय माना गया है, फिर भी केंद्र एवं राज्यों को मिलकर एक स्थायी व्यावहारिक समाधान निकलना चाहिये तथा साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिये कि ऐसे समाधान से हमारी बैंकिंग प्रणाली और वित्तीय स्थिति को नुकसान न पहुँचे।

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