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अर्थव्यवस्था की विकास पथ पर वापसी

  • 09 Jun 2017
  • 6 min read

संदर्भ
2015-16 के लिये अर्थव्यवस्था की विकास दर का अनुमान 8% तथा 2016-17 के लिए 7.1% किया गया था। लेकिन हाल ही में केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2016-17 की चौथी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद  की वृद्धिदर घटकर 6.1 फीसदी पर आ गई है। विशेषज्ञों द्वारा इसके अनेक कारण बताएं गए है, जिनका विश्लेषण करना ज़रुरी है। 

विमुद्रीकरण का प्रभाव

  • यह समझ पाना मुश्किल है कि जनवरी-मार्च की तिमाही में विकास दर में आई गिरावट का कारण केवल विमुद्रीकरण ही रहा। इस गिरावट का विश्लेषण करते समय हमें निम्नलिखित पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिये: 
    ⇒ पहला, वर्ष की शुरुआत से ही विकास दर में गिरावट देखी जा रही है।  प्रत्येक तिमाही की विकास दर पिछली तिमाही की तुलना में कम रही है। 
    ⇒ दूसरा, चौथी तिमाही के दौरान केवल कृषि और लोक प्रशासन के क्षेत्रों में उच्च वृद्धि दर्ज़ की गयी। 
    ⇒ तीसरा, निर्माण और व्यापार, होटल, परिवहन और संचार क्षेत्रों की विकास दर में तेज़ गिरावट देखी गयी। ये वे क्षेत्र हैं जहाँ बड़े पैमाने पर नकदी का उपयोग किया जाता है। अत: ज़ाहिर है कि विमुद्रीकरण के कारण नकदी की कमी होने से बहुत सारी निर्माण संबंधी गतिविधियाँ तुरंत रुक गईं।  
    ⇒ चौथा, निर्माण और रियल एस्टेट क्षेत्र नकदी में लेन-देन के लिये जाने जाते हैं। विमुद्रीकरण के कारण नगदी का प्रवाह एकदम से रुकने के कारण इन क्षेत्रों की गति भी रुक गईं। 
    ⇒ हमें विमुद्रीकरण के अलावा अन्य कारकों का भी पता लगाने की ज़रूरत है, जिनके कारण विकास दर में गिरावट देखी गयी। जैसे: अभी जारी आंकड़ों में सबसे ज़्यादा परेशान करने वाला पहलू ‘ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन’ (GFCF) की दर में लगातार हो रही गिरावट है। जी.एफ.सी. एफ., जीडीपी का ही एक भाग है, जिसमें लगातर गिरावट हो रही है और यह 2016-17 में घटकर 29.5% हो गई है जो 2015-16 में 30.9% थी।
    ⇒ अगर विमुद्रीकरण के लाभ देखें तो इसने लोगों की मानसिकता और व्यवहार को बदला है तथा डिजिटल आधारित भुगतान प्रणाली को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित किया है, जिसका लाभ हमें आने वाले समय में देखने को मिलेगा। 

नए निवेश की भूमिका

  • अर्थव्यवस्था में उच्च वृद्धि के समय में निवेश 33% के आसपास रहा। हाल के वर्षों में सार्वजनिक निवेश बढ़ाने का प्रयास ज़्यादा किया गया है। यही वज़ह है कि कोयला, बिजली, सड़कों आदि क्षेत्रों के उत्पादन में महत्त्वपूर्ण सुधार देखने को मिले। अत: इसे जारी रखाते हुये निजी निवेश को बढ़ाने की ज़रूरत है।
  • एक मुख्या चिंता का विषय यह है कि अर्थव्यवस्था में वृद्धि के बावज़ूद रोज़गार सृजन में मामूली वृद्धि हुई है। इसलिये हमें अर्थव्यवस्था में नए निवेश बढ़ाने होंगे ताकि विकास को गति मिल सके और अधिक रोज़गार पैदा किये जा सके। 

कर्ज़ का बोझ

  • भारतीय व्यवसायों या कारोबारियों पर कर्ज़ का भार होने के कारण वे अर्थव्यवस्था में नए निवेश नहीं कर पा रहे हैं। 
  • आजकल बैंकिंग प्रणाली भी गैर निष्पादित संपत्ति (NPA) जैसी समस्याओं के कारण तनाव में है। इस कारण बैंक नए कर्ज़ देने से कतरा रहे हैं, परिणामस्वरूप निवेश बाधित हो रहे हैं। अत: इनका सबका मिला-झुला परिणाम है विकास दर का नीचे आना। 

किये गए प्रयास

  • सरकार द्वारा हाल ही में अर्थव्यवस्था की स्थिति सुधारने हेतु अनेक स्तरों पर कदम उठाये गए हैं, जैसे:

→ दिवालिएपन संहिता (Bankruptcy Code) को लागू किया गया है। 
→ वस्तु और सेवा कर (GST) जल्द ही लागू होने वाला है। 
→ निवेश को बढ़ाने हेतु एफ.डी.आई. नियमों को सरल बनाया जा रहा है। 
→ डिजिटल भुगतान प्रणाली को बढ़ावा दिया जा रहा है। 

निष्कर्ष
हालाँकि अर्थव्यवस्था में गिरावट ज़रूर देखी गयी है, लेकिन अच्छी बात यह है कि कीमतें नियंत्रण में हैं।  केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा बजट में निर्धारित प्रावधानों के अनुरूप है तथा भुगतान-संतुलन भी नियंत्रण में है। बैंकों को एन.पी.ए. (गैर निष्पादित परिसंपत्ति) समस्या का जल्द समाधान निकलना चाहिये ताकि वे अपने ऋण कार्यक्रम को फिर से शुरु कर सके और अर्थव्यवस्था में नए निवेश को बढ़ावा मिल सके। हमें तीव्र विकास के लिये सामाजिक सद्भाव (social harmony) को भी बढ़ावा देना चाहिये, क्योंकि कानून-व्यवस्था की तरह, सामाजिक सद्भाव भी तीव्र विकास की पूर्वापेक्षा मानी जाती है।

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