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एडिटोरियल

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भू-स्थानिक क्षेत्र

  • 17 Feb 2022
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 15/02/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Zooming in on The Potential of India’s Geospatial Sector” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के भू-स्थानिक क्षेत्र के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ 

15 फरवरी, 2021 इस संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण दिन रहा कि इसी दिन भारतीयों के लिये भू-स्थानिक क्षेत्र (Geospatial Sector) को पूर्णरूपेण नियंत्रण-मुक्त (De-Regulate) करने हेतु नए दिशानिर्देश प्रभावी हुए। भारत में भू-स्थानिक क्षेत्र में एक सुदृढ़ पारितंत्र मौजूद है जहाँ विशेष रूप से भारतीय सर्वेक्षण विभाग (Survey Of India- SoI), इसरो (ISRO), रिमोट सेंसिंग एप्लिकेशन सेंटर (RSACs) एवं राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) और सामान्य रूप से सभी मंत्रालयों एवं विभाग भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं हालाँकि सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में जागरूकता की कमी इस क्षेत्र के पूर्ण लाभों का दोहन करने की मार्ग में प्रमुख बाधा बनी हुई है।

भारत का भू-स्थानिक क्षेत्र

भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी क्या है?

  • भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी (Geospatial Technologies) शब्द का प्रयोग पृथ्वी और मानव समाज के भौगोलिक मानचित्रण एवं विश्लेषण में योगदान करने वाले आधुनिक उपकरणों की एक श्रेणी का वर्णन करने के संदर्भ में किया जाता है।
    • 'भू-स्थानिक' (Geospatial) शब्द उन प्रौद्योगिकियों के संग्रह को संदर्भित करता है जो भौगोलिक सूचनाओं के संग्रहण, विश्लेषण, भंडारण, प्रबंधन, वितरण, एकीकरण और प्रस्तुतीकरण में साहयक हैं।
  • सामान्य तौर पर इसमें निम्नलिखित प्रौद्योगिकियाँ शामिल हैं:
    • रिमोट सेंसिंग
    • भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS)
    • ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS)
    • सर्वेक्षण
    • 3D मॉडलिंग
  • भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी परिसंपत्तियों के बेहतर मापन, प्रबंधन एवं रखरखाव, संसाधनों की निगरानी और यहाँ तक कि पूर्वानुमान एवं नियोजित हस्तक्षेप के लिये अनुमानपरक एवं निर्देशात्मक विश्लेषण प्रदान करने में सक्षम बनाता है।

भू-स्थानिक क्षेत्र में उदारीकरण 

  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने फरवरी, 2021 में भारत में भू-स्थानिक क्षेत्र के लिये नए दिशा-निर्देश जारी किये जिनमे पूर्व प्रोटोकॉल को नियंत्रण-मुक्त या गैर-विनियमित कर दिया और इस क्षेत्र को अधिक प्रतिस्पर्द्धी क्षेत्र में परिणत करने हेतु इसका उदारीकरण कर दिया।
  • नई नीति ने संवेदनशील रक्षा या सुरक्षा संबंधी डेटा के अलावा मानचित्रों सहित भू-स्थानिक डेटा एवं सेवाओं तक सभी भारतीय संस्थाओं के लिये आसान पहुँच प्रदान कर दी है।
  • भारतीय निगम एवं नवोन्मेषक पर कोई प्रतिबंध नहीं हैं और न ही उन्हें भारतीय क्षेत्राधिकार में डिजिटल भू-स्थानिक डेटा एवं मानचित्रण के सृजन या इसे अद्यतन करने से पहले किसी पूर्व-अनुमोदन की आवश्यकता है।
  • उन्हें सुरक्षा मंज़ूरी अथवा लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है और न ही उनपर कोई अन्य निषेध आरोपित है।

संशोधित दिशा-निर्देशों का महत्त्व 

  • दिशा-निर्देशों की घोषणा के बाद केंद्रीय बजट 2022-23 में भू-स्थानिक क्षेत्र के बारे में आवश्यक चर्चा को उत्पन्न कर दिया है।
  •  वर्ष 2029 तक 13% चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) के साथ इस क्षेत्र के निवल मूल्य में लगभग 1 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि होने का अनुमान लगाया गया है।
    • इसके परिणामस्वरूप भू-स्थानिक क्षेत्र जिसमेअब तक निवेशकों का प्रवेश वर्जित था अब उनकी नई रुचि का क्षेत्र हो गया है।
  • दिशा-निर्देशों के उदारीकरण को निजी उद्योगों की सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है जिसमें पहले की तरह आशंका और रूढ़िवादी दृष्टिकोण का अभाव है।

अंतर्निहित चुनौतियाँ

  • सर्वप्रमुख बाधाओं में एक यह है कि भारत में एक बड़े भू-स्थानिक बाज़ार का अभाव है।
    • भारत की क्षमता और आकार के अनुरूप भू-स्थानिक सेवाओं और उत्पादों की मांग नहीं है।
  • मांग में यह कमी मुख्य रूप से सरकारी एवं निजी क्षेत्रों के संभावित उपयोगकर्त्ताओं के बीच जागरूकता के अभाव के कारण है।
  • दूसरी बाधा समग्र भागीदारी में कुशल जनशक्ति का अभाव है।
  • आधार डेटा की अनुपलब्धता (विशेष रूप से हाई-रिज़ॉल्यूशन पर) भी एक बाधा है।
    • डेटा साझाकरण और सहयोग पर स्पष्टता की कमी सह-निर्माण और संपत्ति को अधिकतम करने से रोकती है।
  • इसके अतिरिक्त भारत की समस्याओं को हल करने के लिये विशेष रूप से विकसित उपायों में रेडी-टू-यूज़ समाधान (Ready-To-Use Solutions)  अभी उपलब्ध नहीं हैं।
  • हालाँकि भारत में भू-स्थानिक विषय में प्रशिक्षित लोग उपलब्ध हैं तथा उनका प्रशिक्षण प्रायः स्नातकोत्तर स्तर के पाठ्यक्रम या ऑन-जॉब ट्रेनिंग के माध्यम से हुआ है।
    • पश्चिमी देशों के विपरीत भारत में ऐसे प्रमुख पेशेवरों की कमी है जो भू-स्थानिक क्षेत्र की पूर्ण समझते रखते हैं।

आगे की राह 

  • जागरूकता बढ़ाना: भारत को इस क्षेत्र में तीव्रता के साथ आगे बढने के लिये आक्रामक होने की ज़रूरत है जहाँ तक भू-स्थानिक क्षेत्र का संबंध है, इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
    • सर्वप्रथम संपूर्ण नीति दस्तावेज को प्रकाशित किये जाने और सरकारी एवं निजी उपयोगकर्त्ताओं को सभी संबंधितों पहलुओं से अवगत कराये जाने की आवश्यकता है।
    • सरकारी विभागों के पास उपलब्ध डेटा को ‘अनलॉक’ किया जाना चाहिये और डेटा साझाकरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये एवं इसे सुलभ बनाया जाना चाहिये।
    • सरकार को विकासशील मानकों में निवेश करने और इन मानकों के अंगीकरण को अनिवार्य बनाने की आवश्यकता है।
  • डेटा की उपलब्धता: सभी सार्वजनिक-वित्तपोषित डेटा को सेवा मॉडल के रूप में डेटा के माध्यम से बिना किसी शुल्क के या नाममात्र के शुल्क के सुलभ बनाने हेतु एक जियो-पोर्टल स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि डेटा साझाकरण, सहयोग और सह-निर्माण की संस्कृति को विकसित किया जाए।
    • जबकि प्रोजेक्ट-टू-प्रोजेक्ट आधार पर विभिन्न प्रकार के डेटा का उत्पादन किया जाएगा। पूरे भारत में आधार डेटा के सृजन की आवश्यकता है।
      • इसमें भारतीय राष्ट्रीय डिजिटल उन्नयन मॉडल (Indian National Digital Elevation Model- InDEM), शहरों के लिये डेटा स्तर और प्राकृतिक संसाधनों का डेटा शामिल होना चाहिये।
  • स्टार्ट-अप्स की भूमिका: सॉल्यूशन डेवलपर्स और स्टार्ट-अप्स को विभिन्न विभागों में विभिन्न व्यावसायिक प्रक्रियाओं के लिये सॉल्यूशन टेम्प्लेट के निर्माण हेतु संलग्न किया जाना चाहिये।
    • स्थानीय प्रौद्योगिकी एवं समाधानों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के लिये प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • डेटा का स्थानीयकरण: चूँकि नए दिशा-निर्देश हाई-एक्यूरेसी डेटा के विदेशी क्लाउड्स में संग्रहीत किये जाने को निषिद्ध करते हैं इसलिये स्थानीय रूप से एक भू-स्थानिक डेटा क्लाउड विकसित करने और सेवा के रूप में समाधान को सुलभ बनाने की आवश्यकता है।
    • पर्यावरण मंत्रालय कार्ययोजना, वन्यजीव गलियारा मानचित्रण, सामाजिक वानिकी जैसे भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) अनुप्रयोगों के एक पूर्ण सेट की मेज़बानी कर सकता है।
    • भारतीय सर्वेक्षण विभाग एवं इसरो जैसे राष्ट्रीय संस्थानों को विनियमन और राष्ट्र की सुरक्षा एवं वैज्ञानिक महत्त्व से संबंधित परियोजनाओं की ज़िम्मेदारी सौंपी जानी चाहिये।
  • अकादमिक सहयोग: भारत को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (NITs) में भू-स्थानिक विषय में भी स्नातक कार्यक्रम शुरू करना चाहिये। इनके अलावा एक समर्पित भू-स्थानिक विश्वविद्यालय भी स्थापित किया जाना चाहिये।
    • ऐसे कार्यक्रम अनुसंधान एवं विकास प्रयासों को बढ़ावा देंगे जो स्थानीय स्तर पर प्रौद्योगिकियों एवं समाधानों के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

निष्कर्ष

देश में भू-स्थानिक क्षेत्र निवेश के लिये अनुकूल स्थिति में है। हालाँकि विवेचित विषयों पर स्पष्टता और एक सक्षम पारितंत्र के निर्माण की आवश्यकता भी है। लक्ष्य यह हो कि जब भारत भू-स्थानिक क्षेत्र के उदारीकरण की 10वीं वर्षगांठ मना रहा हो, तब इसने अनुमानित बाज़ार आकार प्राप्त कर लिया हो और भारतीय उद्यमी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान रखते हों।

अभ्यास प्रश्न: भारत के भू-स्थानिक क्षेत्र के पूर्ण लाभों का दोहन करने के मार्ग में मौजूद बाधाओं की चर्चा कीजिये और इन चुनौतियों से निपटने के उपायों पर चर्चा कीजिये।

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