लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नदियों का व्यक्ति में बदलना

  • 27 Mar 2017
  • 6 min read

विदित हो कि एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए अपने ऐतिहासिक फैसले में उत्तराखण्ड के उच्च न्यायालय ने गंगा-यमुना को 'लीविंग एन्टिटी' यानी जीवित इकाई घोषित किया है| जीवित इकाई घोषित होने का अर्थ यह हुआ कि इन दोनों नदियों को देश के अन्य नागरिकों की तरह सभी संवैधानिक अधिकार प्राप्त होंगे और इनको नुकसान पहुँचाना किसी जीवित व्यक्ति को नुकसान पहुँचाने के समान होगा| जैसा कि हम जानते हैं कि इससे पहले मंदिरों में स्थापित देवी-देवताओं धार्मिक पुस्तकों आदि को अदालत द्वारा जीवित इकाई का दर्ज़ा दिया जा चुका है लेकिन यह पहला मौका है जब किसी पर्यवारणीय महत्त्व की इकाई को किसी जीवित व्यक्ति के समान ही अधिकार दिया जा रहा है| हालाँकि गौर करने की बात है कि कोर्ट ने ऐसा करते समय 'गंगा मैया’ शब्द का प्रयोग भी किया है|

संभावित प्रभाव

  • विदित हो कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गंगा और यमुना को जीवित व्यक्तियों जैसे कानूनी अधिकार प्रदान करते हुए गंगा प्रबंधन बोर्ड बनाने का भी निर्देश दिया। उसने यह भी स्पष्ट किया कि इन नदियों को अतिक्रमण से बचाने और उन्हें साफ-सुथरा रखने में आनाकानी करने वाले राज्यों के साथ केंद्र सरकार सख्त कार्रवाई करने के लिये स्वतंत्र होगी।
  • फिलहाल यह कहना कठिन है कि नैनीताल हाईकोर्ट के इस फैसले की अनदेखी नहीं की जा सकती क्योंकि अतीत में न्यायपालिका के तमाम हस्तक्षेप और आदेश-निर्देश के बाद भी गंगा एवं यमुना के साथ-साथ देश की अन्य अनेक महत्त्वपूर्ण नदियाँ उपेक्षित ही हैं। वे प्रदूषण के साथ अतिक्रमण का भी शिकार हैं। कुछ नदियों की गंदगी तो इस हद तक बढ़ती जा रही है कि उनका पानी पीने लायक तो दूर रहा, सिंचाई के लिये भी उपयुक्त नहीं रह गया है।

क्या हो आगे का रास्ता ?

  • दरअसल, गंगा और यमुना महज नदी नहीं हैं। वे देश की संस्कृति की प्रतीक एवं पर्याय हैं। एक विशाल आबादी के लिये वे जीवनदायिनी भी हैं और आस्था का केंद्र भी। आवश्यक केवल यह नहीं है कि नदियों के अविरल प्रवाह की चिंता की जाए, बल्कि आवश्यक यह भी है कि उनके पारिस्थितिकी तंत्र को सहेजने की कोशिश की जाए। बिना ऐसा किये नदियों के धार्मिक, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक महत्त्व को बचाए रखना मुश्किल होगा।
  • गंगा और यमुना के जल का दोहन कुछ इस प्रकार से करने की ज़रूरत है कि उनके पारिस्थितिकी तंत्र को कोई नुकसान न पहुँचे। उत्तराखंड में नदियों पर बांध बनाने से पहले राज्य में बांधों की आवश्यकता का ठोस आकलन होना चाहिये। सरकारों को आर्थिक लाभ की चिंता वहीं तक करनी चाहिये जहाँ तक नदियों की जीवनदायी क्षमता पर विपरीत असर न पड़े। गंगा और यमुना को प्रदूषण के साथ-साथ अतिक्रमण से बचाने की पहल इस रूप में होनी चाहिये कि उनका प्रवाह बाधित न होने पाए।
  • विदित हो कि न्यूजीलैंड की संसद ने अपने यहाँ की 290 किलोमीटर लम्बी वांगनुई नदी को जीवित इकाई घोषित कर रखा है, इसके लिये वहाँ की संसद ने बाकायदा एक विधेयक पारित किया और अपनी नदी को अधिकार, कर्त्तव्य और उत्तरदायित्व देते हुए उसे एक वैधानिक व्यक्ति बनाया। भारत यदि इस प्रकार से कोई कानून लाते हुए इस दिशा में कदम बढ़ाता, तो यह ज़्यादा व्यवहारिक होता। 

निष्कर्ष

  • इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस फैसले से इन नदियों को पुनर्जीवित करने का मौका मिला है, लेकिन इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिये केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को मिलकर जन-सहयोग से नदियों का सरंक्षण करना होगा।
  • अदालत ने भले ही कानूनी तौर पर अब नदियों को जीवित इकाई माना हो लेकिन, हमारी संस्कृति में तो हम पहले ही इन्हें इससे ऊँचा दर्जा दे चुके हैं, फिर भी हालात क्या हैं, हम सब जानते हैं। दरअसल, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, बढ़ता प्रदूषण और खतरे में पड़ते प्राकृतिक संसाधन एक ही बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि हमें अपनी संपूर्ण जीवन-शैली बदलने की ज़रूरत है।
  • जागरूकता के अभाव और स्वार्थपूर्ण हितों के कारण हम लोग ही जल स्रोतों को सबसे ज़्यादा प्रदूषित करते हैं। इतने बड़े पैमाने पर यदि प्रदूषण हो रहा हो तो कोई एजेंसी इसे रोक नहीं सकती। इसलिये जनता को ही सबसे पहले आगे आना होगा। इसमें स्थानीय लोगों के साथ तीर्थयात्रियों के रूप में अन्य स्थानों से आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2