लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भूमि पुनरुद्धार अथवा वृक्षारोपण : आवश्यकता किसकी है?

  • 10 Nov 2017
  • 11 min read

भूमिका

वर्तमान में पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 15 डिग्री सेल्सियस के आसपास है। हालाँकि, भूगर्भीय प्रमाण से प्राप्त जानकारी के अनुसार, हमेश से पृथ्वी का तापमान इतना नहीं रहा है। पूर्व में यह या तो इससे बहुत अधिक रहा है या फिर कम। परंतु पिछले कुछ वर्षों में जलवायु स्थितियों में बहुत तेज़ी से बदलाव हो रहा है। वैसे तो हर मौसम की अपनी खासियत होती है, परंतु, अब प्रवृत्ति में बदलाव देखने को मिल रहा है। सर्दियाँ छोटी होती जा रही है और गर्मियाँ लंबी। देखा जाए जलवायु परिवर्तन की इस स्थिति ने समस्त संसार के समक्ष सुरक्षित भविष्य का प्रश्न खड़ा कर दिया है। दिनोंदिन बढ़ते प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर समस्या का समाधान ढूंढने हेतु विश्व भर में प्रयास किये जा रहे हैं। इस संदर्भ में बहुत से संगठनों, कोषों एवं संस्थाओं का गठन किया गया है, बहुत से सम्मेलनों का आयोजन किया गया और समझौतों को अपनाया गया है। इसी क्रम में जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने हेतु वैश्विक समझौते को लागू करने के उद्देश्य से जर्मनी के बॉन शहर में संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (United Nations Framework Convention on Climate Change-UNFCCC) के दलों के 23वें सम्मेलन (23rd Conference of Parties-COP) का आयोजन किया जा रहा है। 

बॉन चैलेंज में व्यक्त प्रतिबद्धता

  • विदित हो कि वर्ष 2015 में, भारत द्वारा एक बॉन चैलेंज के संबंध में प्रतिबद्धता व्यक्त की गई थी, जिसमें भारत ने वर्ष 2020 तक 13 लाख हेक्टेयर तथा वर्ष 2030 तक अतिरिक्त 8 लाख हेक्टेयर निम्नीकृत भूमि का पुनरूद्धार करने की बात कही गई थी। 
  • इसके अतिरिक्त एन.डी.सी. (India’s Nationally Determined Contributions (NDCs) द्वारा भी वर्ष 2030 तक 2.5 से 3 अरब टन CO2 के बराबर वनावरण का लक्ष्य निर्धारित किया गया। 
  • एक अनुमान के अनुसार, यदि इस लक्ष्य को यथावत् प्राप्त करना है तो इसके लिये भारत को मौजूदा वन आवरण को तकरीबन 28-34 मिलियन हेक्टेयर तक और अधिक विस्तारित करना होगा।
  • जैसे-जैसे विभिन्न राज्यों द्वारा इन प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने के लिये काम किया जा रहा है, वैसे-वैसे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस कार्य हेतु वृक्षारोपण पर अति-निर्भरता प्रकट की जा रही है। 
  • इस साल जुलाई में मध्य प्रदेश राज्य द्वारा मात्र 12 घंटों में 66 मिलियन पेड़ लगाकर 2016 के उत्तर प्रदेश राज्य के एक दिन में 49.3 मिलियन पेड़ लगाने के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए एक नया रिकॉर्ड बनाया गया।

पारिस्थितिकी में सुधार

  • हालाँकि, इस संबंध में विशेष बात यह है कि न तो बॉन चैलेंज और न ही एन.डी.सी. बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण से संबंधित है। बॉन चैलेंज (Bonn Challenge) का उद्देश्य स्थानीय आजीविका को लाभान्वित करने और जैव विविधता का संरक्षण करने हेतु भूमि की पारिस्थितिकी में सुधार करना है। 
  • इसी प्रकार एन.डी.सी. के अंतर्गत भी केवल कार्बन की मात्रा में कमी करने का लक्ष्य निर्धारित नहीं किया गया है बल्कि इसके अंतर्गत वन एवं कृषि पर निर्भर स्थानीय समुदायों के लिये लाभ सुनिश्चित करने हेतु निरंतर प्रयासों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को अनुकूलित करने पर बल देना है। 
  • यह वनों के संबंध में भारत को नीतिगत ढाँचे की भावना को भी दर्शाता है जिसमें किसी भूमि द्वारा वन और वृक्ष आवरण के प्रबंधन संबंधी दृष्टिकोण पर बल दिया गया है। 
  • इसका उद्देश्य खाद्य सुरक्षा, जलवायु शमन और अनुकूलन, जैव विविधता के संरक्षण तथा पानी की आपूर्ति सहित कई पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं के प्रवाह को बनाए रखते हुए इन्हें सुरक्षित रखना है।
  • इस संदर्भ में, बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करने के विकल्प के अंतर्गत न तो अक्सर वृक्षों की प्रजातियों के चयन पर ही ध्यान दिया जाता है, न ही रोपण सामग्री या पौधे की अस्तित्व दर की गुणवत्ता और न ही वहाँ रहने वाले समुदायों हेतु वनों से प्राप्त सामग्री के उपभोग एवं आवंटन आदि पक्षों पर ही कोई विशेष महत्त्व दिया जाता है। 
  • जबकि, भूमि पुनरुद्धार व्यवस्था को संचालित करने के लिये स्वस्थ वन क्षेत्रों को वनोन्मूलन, क्षरण तथा विखंडन से संरक्षित करना चाहिये। इसके साथ-साथ हमें रचनात्मक रूप से पेड़ों को अलग-अलग भूमि उपयोगों की श्रेणियों में भी एकीकृत करना चाहिये।
  • भारत में ऐसे कई मॉडल मौजूद हैं जो अलग-अलग क्षेत्रों और खेत के घरेलू आकार के हिसाब से एकदम उपयुक्त हैं, इसलिये भारत को पर्यावरणीय परिणामों तथा विकासात्मक परिणामों को सुरक्षित रखने के लिये एकमात्र वृक्षारोपण के विकल्प पर निर्भर रहने की कोई आवश्यकता नहीं है। 
  • वस्तुत: जलवायु परिवर्तन के संबंध में प्रौद्योगिकी की सहायता से अन्य विकल्पों के संदर्भ में विचार करते हुए उनके अनुपालन पर ध्यान देना चाहिये।

वृक्ष आधारित अंत:क्षेप (Tree-based interventions)

  • भारत में कम से कम 35 प्रकार के कृषि वानिकी मॉडल प्रयुक्त होते हैं, इनमें खाद्य फसलों के साथ-साथ लकड़ी, फल, चारा, ईंधन एवं उर्वरक प्रदान करने वाले विभिन्न प्रकार के वृक्ष शामिल हैं। यह न केवल खेती से प्राप्त होने वाली आय में विविधता लाते है बल्कि ये भूमि उत्पादकता में भी सुधार करते हैं। 
  • उदाहरण के तौर पर, एफ.एम.एन.आर. (Farmer-managed natural regeneration - FMNR) व्यवस्था के अंतर्गत किसान अपने खेतों में लगे पेड़ों और जानवरों की खाद के माध्यम से फैले हुए बीज से उत्पन्न झाड़ियों के विकास को व्यवस्थित करने के साथ-साथ उसे सुरक्षा भी प्रदान करता है। इससे भी बहुत से आर्थिक एवं पारिस्थितिक तंत्र लाभ प्रदान कर सकते हैं।
  • भारत में, नाबार्ड (National Bank for Agriculture and Rural Development’s - NABARD’s) का 'वाडी' मॉडल और फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी की एक परियोजना (Re-greening of village commons project) वृक्ष-आधारित अंत:क्षेपों के अच्छे उदाहरण हैं। ये दोनों उदाहरण न केवल लागत-प्रभावशीलता के मामले में बहुत प्रभावी साबित हुए हैं बल्कि ये स्थानीय समुदायों को प्राप्त होने वाले लाभों के संबंध में बहुत अधिक कारगर सिद्ध हुए हैं। 
  • बड़े पैमाने पर वृक्ष-आधारित कार्यक्रमों में सफलता का एक महत्त्वपूर्ण कारक भू-धारण एवं भूमि अधिकारों की सुरक्षा है। दुनिया के कई हिस्सों में जलवायु पृथक्करण संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने के लिये वनों पर भू-धारण का अधिकार एक लागत-प्रभावी तरीके के रूप में स्थापित किया गया है। 
  • इसके लिये सबसे महत्त्वपूर्ण है कि वृक्षों के अस्तित्व और समुदायों के लाभों की मात्रा को मापने के लिये एक परफॉरमेंस मॉनिटरिंग सिस्टम स्थापित किया जाना चाहिये। इसे समुदायों और नागरिक समाज संगठनों के समर्थन के साथ-साथ दूरसंवेदी संवेदन एवं भू-स्तरीय निगरानी के संयोजन के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।

आर.ओ.ए.एम. का विकल्प प्रभावी हो सकता है

  • यदि हम विभिन्न अंत:क्षेपों के माध्यम से वृक्षों को पुनर्जीवित करने का प्रयास करते हैं, तो यह सुनिश्चित करना बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि इन वृक्षों के प्रबंधन और उपयोग संबंधी अधिकार भी स्पष्ट हों। 
  • गौरतलब है कि विश्व भर के तकरीबन 40 देशों में भूमि-पुनरुद्धार हेतु सबसे बेहतर उपाय के रूप में आर.ओ.ए.एम. (Restoration Opportunities Assessment Methodology - ROAM) का इस्तेमाल किया जा रहा है। 
  • इस उपकरण में भूमि-पुनरुद्धार हेतु सटीक उपाय निर्धारित करने के लिये हितधारकों के साथ काफी विचार-विर्मश करके स्थानिक, कानूनी और सामाजिक-आर्थिक आँकड़ों के कठोर विश्लेषण को शामिल किया जाता है। भारत में इस उपकरण को उत्तराखंड और मध्य प्रदेश राज्यों में संचालित किया जा रहा है। 

निष्कर्ष

भूमि पुनरुद्धार की दिशा में प्रभावी कार्यवाही करने के लिये न केवल सटीक नीतिगत ढाँचे की आवश्यकता है बल्कि इसके लिये मज़बूत राजनीतिक इच्छा शक्ति और पर्याप्त मात्रा में वित्तपोषण भी होना चाहिये। वस्तुतः भूमि पुनरुद्धार के माध्यम से देश के जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये एक सहभागिता दृष्टिकोण के साथ प्रतिकृति एवं स्केलेबल मॉडल स्थापित करने के लिये हमें इस संदर्भ में और अधिक नवीनता एवं प्रभावशीलता  के साथ कार्य करने की आवश्यकता है।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2