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एडिटोरियल

भारतीय समाज

भारत में दहेज प्रथा

  • 05 Jul 2021
  • 8 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 02/07/2021 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित लेख “Breaking the chain” पर आधारित है। यह भारत में दहेज से उत्पन्न होने वाली समस्याओं से संबंधित है।

दहेज एक सामाजिक बुराई है जिसके कारण समाज में महिलाओं के प्रति अकल्पनीय यातनाएँ और अपराध उत्पन्न हुए हैं तथा भारतीय वैवाहिक व्यवस्था प्रदूषित हुई है। दहेज शादी के समय दुल्हन के ससुराल वालों को लड़की के परिवार द्वारा नकद या वस्तु के रूप में किया जाने वाला भुगतान है।

आज सरकार न केवल दहेज प्रथा को मिटाने के लिये बल्कि बालिकाओं की स्थिति के उत्थान के लिये कई कानून (दहेज निषेध अधिनियम 1961) और योजनाओं द्वारा सुधार हेतु प्रयासरत है।

हालाँकि इस समस्या की सामाजिक प्रकृति के कारण यह कानून हमारे समाज में वांछित परिणाम देने में विफल रहा है।

इस समस्या से छुटकारा पाने में लोगों की सामाजिक और नैतिक चेतना को प्रभावी बनाना, महिलाओं को शिक्षा तथा आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करना एवं दहेज प्रथा के खिलाफ कानून को प्रभावी ढंग से लागू करना मददगार हो सकता है।

दहेज प्रथा का प्रभाव

  • लैंगिक भेदभाव: दहेज प्रथा के कारण कई बार यह देखा गया है कि महिलाओं को एक दायित्व के रूप में देखा जाता है और उन्हें अक्सर अधीनता हेतु विवश किया जाता है तथा उन्हें शिक्षा या अन्य सुविधाओं के संबंध में दोयम दर्जे की सुविधाएँ दी जाती हैं।
  • महिलाओं के कॅरियर को प्रभावित करना: दहेज प्रथा के लिये कार्यबल में महिलाओं की खराब उपस्थिति और इसके परिणामस्वरूप वित्तीय स्वतंत्रता की कमी एक बड़ा कारक है।
    • समाज के गरीब तबके प्रायः दहेज में मदद के लिये अपनी बेटियों को काम पर भेजते हैं ताकि वे कुछ पैसे कमा सकें।
    • मध्यम और उच्च वर्ग के परिवार अपनी बेटियों को नियमित रूप से स्कूल तो भेजते हैं लेकिन कॅरियर विकल्पों पर ज़ोर नहीं देते।
  • कई महिलाएँ अविवाहित रह जाती हैं: देश में लड़कियों की एक बेशुमार संख्या शिक्षित और पेशेवर रूप से सक्षम होने के बावजूद अविवाहित रह जाती है क्योंकि उनके माता-पिता विवाह पूर्व दहेज की मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं।
  • महिलाओं का वस्तुकरण: समकालीन दहेज दुल्हन के परिवार द्वारा शक्तिशाली संबंध और पैसा बनाने के अवसरों हेतु एक निवेश की तरह है।
    • यह महिलाओं को केवल वाणिज्य के लेख (articles of commerce) के रूप में प्रस्तुत करता है।
  • महिलाओं के विरुद्ध अपराध: कुछ मामलों में दहेज प्रथा महिलाओं के खिलाफ अपराध को जन्म देती है, इसमें भावनात्मक शोषण और चोट से लेकर मौत तक शामिल है।

आगे की राह 

  • सामाजिक समस्या के राजनीतिक समाधान की सीमाओं को पहचानना: जनता के पूर्ण सहयोग के बिना कोई भी कानून लागू नहीं किया जा सकता है।
    • निःसंदेह किसी कानून का निर्माण व्यवहार का एक पैटर्न निर्धारित करता है, सामाजिक विवेक को सक्रिय करता है और अपराधों को समाप्त करने में समाज सुधारकों के प्रयासों को सहायता प्रदान करता है।
    • हालाँकि दहेज जैसी सामाजिक बुराई तब तक मिट नहीं सकती जब तक कि लोग कानून के साथ सहयोग न करें।
  • बालिकाओं को शिक्षित करना: शिक्षा और स्वतंत्रता एक शक्तिशाली एवं मूल्यवान उपहार है जो माता-पिता अपनी बेटी को दे सकते हैं।
    • यह बदले में उसे आर्थिक रूप से मज़बूत होने और परिवार में योगदान देने वाले एक सदस्य बनने में मदद करेगा, जिससे परिवार में सम्मान के साथ  उसकी स्थिति भी सुदृढ़ होगी।
    • इसलिये बेटियों को अच्छी शिक्षा प्रदान करना और उन्हें अपनी पसंद का कॅरियर बनाने के लिये प्रोत्साहित करना सबसे अच्छा दहेज है जो कोई भी माता-पिता अपनी बेटी को दे सकते हैं।
  • दहेज एक सामाजिक कलंक: दहेज को स्वीकार करना एक सामाजिक कलंक बना दिया जाना चाहिये और सभी पीढ़ियों को इसके लिये प्रेरित किया जाना चाहिये।  इसके लिये दहेज प्रथा के दुष्परिणामों के प्रति सामाजिक चेतना जगाने की ज़रूरत है।  इस संदर्भ में:
    •  केंद्र और राज्य सरकारों को लोक अदालतों, रेडियो प्रसारणों, टेलीविज़न और समाचार पत्रों के माध्यम से 'निरंतर' लोगों के बीच 'दहेज-विरोधी साक्षरता' को बढ़ाने के लिये प्रभावी कदम उठाया जाना चाहिये।
    •  दहेज प्रथा के खतरे से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये युवा आशा की एकमात्र किरण हैं। उन्हें जागरूक करने और उनके दृष्टिकोण को व्यापक बनाने के लिये उन्हें नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिये।
  •  बहु हितधारक दृष्टिकोण: दहेज एकमात्र समस्या नहीं है बल्कि इसके लिये कई कारक उत्तरदायी हैं, अतः समाज को लैंगिक समानता के लिये हरसंभव कदम उठाना चाहिये। इस संदर्भ में:
    •  लैंगिक असमानता को दूर करने के लिये राज्यों को  जन्म, प्रारंभिक बचपन, शिक्षा, पोषण, आजीविका, स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच आदि से संबंधित डेटा देखना चाहिये और उसके अनुसार रणनीति बनानी चाहिये।
    • बाल संरक्षण और सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन का विस्तार करने, काम में भेदभाव को कम करने और कार्यस्थल के अनुकूल वातावरण बनाने की आवश्यकता है।
    • घर पर पुरुषों को घरेलू काम और देखभाल की ज़िम्मेदारियों को साझा करना चाहिये।

 निष्कर्ष

दहेज प्रथा न केवल अवैध है बल्कि अनैतिक भी है। इसलिये दहेज प्रथा की बुराइयों के प्रति समाज की अंतरात्मा को पूरी तरह से जगाने की ज़रूरत है ताकि समाज में दहेज की मांग करने वालों की प्रतिष्ठा कम हो जाए।

 दृष्टि मेन्स प्रश्न: दहेज प्रथा न केवल अवैध है बल्कि अनैतिक भी है। अतः दहेज प्रथा के दुष्परिणामों के प्रति सामाजिक चेतना जगाने की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिये।

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