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एडिटोरियल

शासन व्यवस्था

भारत में डिजिटल अभिव्यक्ति

  • 09 Jul 2022
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 07/07/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Takedown Transparency” लेख पर आधारित है। इसमें डिजिटल इंडिया, वाक्-स्वातंत्र्य और सूचना प्रौद्योगिकी नियमों में निहित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है। एक ओर जहाँ केंद्र सरकार डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के 8 वर्ष पूरे होने का उत्सव मना रही है, वहीं दूसरी और ट्विटर ने उपयोगकर्त्ताओं के ट्वीट और हैंडल को ब्लॉक करने के सरकार के बारंबार आदेश के विरुद्ध कर्नाटक उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की है। पिछले एक दशक में भारत में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी में दस गुना वृद्धि हुई है और इसके उपयोगकर्ताओं की संख्या 600 मिलियन तक पहुँच गई है। किंतु यही हमें यह मूल्यांकन करना होगा कि ‘‘क्या संविधान के लोकतांत्रिक वादों की पूर्ति के लिये महज यह कनेक्टिविटी पर्याप्त है?’’ इस संदर्भ में ट्विटर द्वारा दर्ज मामले, आईटी नियमों और संबंधित विषयों पर विचार करना प्रासंगिक होगा।

हालिया मुद्दा:

  • ट्विटर ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A के तहत इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा विभिन्न ट्वीट और हैंडल को ब्लॉक करने के निर्देशों के विरुद्ध सरकार को कानूनी चुनौती दी है।
  • कंटेंट मॉडरेशन निर्णयों के मामले में स्वयं ट्विटर के पारदर्शिता तंत्र में कई समस्याएँ हैं।
    • हालाँकि वह भारतीय कानूनों की मुखर अवज्ञा के बज़ाय अपने प्लेटफॉर्म की अखंडता की रक्षा के लिये न्यायालय का रुख करने को प्रेरित हुआ है।
  • संसदीय आँकड़ों के अनुसार, सरकार के ऐसे आदेशों की संख्या वर्ष 2014 में 471 से बढ़कर वर्ष 2020 में 9,849 हो गई, जो 1991% वृद्धि को सूचित करती है।
    • ऐसे आदेशों की बस संख्या ही ज्ञात है, ऐसे आदेशों का व्यापक गुणात्मक मूल्यांकन आधिकारिक गोपनीयता द्वारा निरुद्ध किया जाता है।
    • प्रकटीकरण की आवश्यकता प्रत्यक्ष रूप से श्रेया सिंघल और अनुराधा भसीन मामले के निर्णयों के संयुक्त वाचन से उभरती है।
  • ट्विटर अकाउंट को बंद किया जाना:
    • जून 2022 के अंतिम सप्ताह में खुलासा हुआ कि ट्विटर ने भारत में कई अकाउंट्स और ट्वीट्स को निरुद्ध किया था।
    • ऐसे अकाउंट में राजनेताओं, पत्रकारों, कार्यकर्त्ताओं और यहाँ तक कि ‘फ्रीडम हाउस’ जैसे वैश्विक थिंक टैंक के अकाउंट भी शामिल थे।
    • यही परिदृश्य फरवरी और अप्रैल 2021 में भी देखने को मिला जब कथित रूप से किसानों के आंदोलन का समर्थन करने और कोविड-19 की दूसरी लहर पर सरकार की कार्रवाई की आलोचना करने वाले कंटेंट को निरुद्ध किये जाने के निर्देश दिये गए थे।

सरकार द्वारा ‘डिजिटल स्पीच’ पर नियंत्रण के साधन

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2021:
    • परिचय:
      • सोशल मीडिया के लिये वृहत सतर्कता के अभ्यास का अधिदेश:
        • आईटी नियम (2021) सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिये अपने प्लेटफॉर्म पर कंटेंट के संबंध में वृहत सतर्कता (Diligence) के अभ्यास का निर्देश देता है।
      • शिकायत अधिकारी की नियुक्ति:
        • उन्हें एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना होगा और निर्धारित समय-सीमा के भीतर गैर-कानूनी और अनुपयुक्त सामग्री को हटाने की आवश्यकता होगी।
        • प्लेटफॉर्म के शिकायत निवारण तंत्र का शिकायत अधिकारी उपयोगकर्ताओं की शिकायतों को ग्रहण करने और उनका समाधान करने के लिये ज़िम्मेदार होगा।
    • संशोधन का मसौदा प्रस्तावित:
      • शिकायत अपीलीय समिति:
        • इसने निगरानी के एक अतिरिक्त स्तर का प्रस्ताव रखा, जिसे शिकायत अपीलीय समिति (Grievance Appellate Committee) कहा गया है। यह मध्यस्थ शिकायत निवारण अधिकारी के ऊपरी स्तर पर कार्यरत होगी।
        • इसका अर्थ यह है कि यदि कोई उपयोगकर्ता मध्यस्थ द्वारा प्रदान किये गए समाधान से संतुष्ट नहीं है तो वह सीधे अदालत जाने के बजाय अपीलीय समिति में निर्णय के विरुद्ध अपील कर सकता है।
        • हालाँकि इसने न्यायालय में अपील करने के उपयोगकर्त्ता के अधिकार का आहरण नहीं किया है।
  • आईटी अधिनियम 2000 की धारा 66A:
    • धारा 66A द्वारा पुलिस को इस आधार पर गिरफ्तार करने का अधिकार दिया था कि कोई कंटेंट उनके व्यक्तिपरक विवेक के अनुसार ‘आक्रामक’ या ‘धमकी-पूर्ण’ हो अथवा विद्वेष, पीड़ा देने आदि की मंशा से प्रकट किया गया हो।
    • इसने कंप्यूटर अथवा मोबाइल फोन या टैबलेट जैसे किसी अन्य संचार उपकरण के माध्यम से विद्वेषपूर्ण या धमकी-पूर्ण संदेश भेजने के लिये दंड का प्रावधान किया था जहाँ दोषी को अधिकतम तीन वर्ष का कारावास दिया जा सकता था।
    • वर्ष 2015 में न्यायालय द्वारा धारा 66A को असंवैधानिक करार दिया गया था, लेकिन अभी भी कई मामलों में इसका दुरूपयोग किया जा रहा है।
  • आईटी अधिनियम 2000 की धारा 69A:
    • यह केंद्र और राज्य सरकारों को किसी ‘‘किसी कंप्यूटर संसाधन में जनित, पारेषित, प्राप्त, भंडारित या परपोषित किसी सूचना को इंटरसेप्ट, मॉनिटर या डिक्रिप्ट करने के लिये’’ निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।
    • जिन आधारों पर इन शक्तियों का प्रयोग किया जा सकता है वे इस प्रकार हैं:
      • देश की संप्रभुता एवं अखंडता, भारत की रक्षा, राज्य की सुरक्षा के लिये।
      • विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के हित में।
      • लोक व्यवस्था के हित में या उपर्युक्त से संबंधित किसी भी संज्ञेय अपराध के किये जाने में उद्दीपन को रोकने के लिये।
      • किसी भी अपराध की जाँच के लिये।
    • धारा 69A केंद्र सरकार को किसी प्राधिकृत एजेंसी या किसी मध्यस्थ को किसी कंप्यूटर संसाधन में जनित, पारेषित, प्राप्त, भंडारित या परपोषित किसी सूचना की सार्वजनिक पहुँच के अवरोध के लिये निदेश देने में सक्षम बनाती है।
      • पहुँच को अवरुद्ध करने के लिये ऐसा कोई भी अनुरोध लिखित रूप से दिये गए कारणों पर आधारित होना चाहिये।

सरकार के विनियमों में निहित चुनौतियाँ

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2021 में समस्याजनक संशोधन का प्रस्ताव:
    • अभिव्यक्ति के दमन के लिये सरकार को मध्यस्थ बनाना:
      • हालाँकि सरकार ने संशोधन के मसौदे को उसी दिन वापस ले लिया था लेकिन इससे सरकार की मंशा का पता चला। प्रस्तावित संशोधन ने सरकार को इंटरनेट पर स्वीकार्य अभिव्यक्ति का विवाचक या मध्यस्थ बना दिया होता और वह सरकार के लिये किसी भी प्रतिकूल अभिव्यक्ति के दमन के लिये सोशल मीडिया पर दबाव रख सकती थी।
      • इसने सरकार को आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 69A या संविधान के अनुच्छेद 19 (2) में उल्लेख नहीं किये गए आधारों पर भी अभिव्यक्ति को सेंसर करने का अधिकार दिया होता।
    • शिकायतों के समाधान का दायित्व सोशल मीडिया पर:
      • मसौदे में यह दायित्व सभी सोशल मीडिया मध्यस्थों पर रखा गया था कि रिपोर्टिंग के 72 घंटों के अंदर सभी शिकायतों का समाधान किया जाए।
      • जबकि उल्लेखनीय है कि मध्यस्थ सेंसर के लिये निर्देशित कंटेंट और उपयोगकर्त्ता अकाउंट की पूरी तरह से जाँच करने और निर्णय लेने में पर्याप्त समय लेते हैं।
      • इस प्रकार, एक अल्प समय-सीमा ने कार्रवाई में अति जल्दबाजी संबंधी आशंकाओं को जन्म दिया।
  • धारा 66A:
    • अपरिभाषित कृत्यों पर आधारित:
      • न्यायालय ने पाया कि धारा 66A की कमज़ोरी इस तथ्य में निहित है कि इसने अपरिभाषित कृत्यों, जैसे ‘‘असुविधा, खतरा, बाधा और अपमान" के आधार पर अपराध का निर्धारण किया है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देने वाले संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत उल्लेख किये गए अपवादों में शामिल नहीं हैं।
    • प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय का अभाव:
      • इसके अलावा, न्यायालय ने पाया कि धारा 66A में समान उद्देश्य रखने वाले कानून के अन्य वर्गों की तरह प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय (जैसे कार्रवाई से पहले केंद्र का अनुमोदन प्राप्त करना) शामिल नहीं थे।
      • स्थानीय अधिकारी स्वायत्त रूप से (वस्तुतः अपने राजनीतिक आकाओं की मर्जी से) कार्रवाई हेतु आगे बढ़ सकते थे।
    • मौलिक अधिकारों के विरुद्ध:
      • धारा 66A संविधान के अनुच्छेद 19 (वाक्-स्वातंत्र्य) और 21 (जीवन का अधिकार ) दोनों के प्रतिकूल थी।
      • जानने का अधिकार (Right to know) अनुच्छेद 19(1)(A) द्वारा प्रदत्त वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य के अधिकार में निहित है।

आगे की राह

  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को अधिक जानकारी साझा करने हेतु विवश करना अनुत्पादक साबित हो सकता है जहाँ नागरिकों के पास अभी भी किसी भी पक्ष द्वारा किये गए उल्लंघन से स्वयं की रक्षा के लिये कोई डेटा गोपनीयता कानून मौजूद नहीं है।
  • उसके बाद भी यदि विनियमन की आवश्यकता अनुभव की जाती है तो इसे संसद में बहस के साथ पारित कानून के माध्यम से लागू किया जाना चाहिये, न कि आईटी अधिनियम की धारा 69A के तहत कार्यकारी के नियम-निर्माण शक्तियों का प्रयोग किया जाना चाहिये।
  • हितधारकों के साथ विचार-विमर्श: नए नियमों में वास्तव में कई समस्याएँ मौजूद हैं, लेकिन प्रमुख मुद्दा समस्या यह है कि इन्हें बिना किसी सार्वजनिक परामर्श के पेश किया गया था।
    • इन नियमों को लेकर जारी आलोचना का समाधान यह होगा कि एक श्वेत पत्र के प्रकाशन के साथ नए सिरे से शुरुआत की जाए।

अभ्यास प्रश्न: हाल में सोशल मीडिया पर अकाउंट्स और पोस्ट्स को सरकार द्वारा निरुद्ध किया जाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संकट को प्रकट करता है। टिप्पणी कीजिये।

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