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म्याँमार का सैन्य तख्तापलट

  • 06 Feb 2021
  • 15 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में म्याँमार में सैन्य तख्तापलट की हालिया घटना और भारत-म्याँमार संबंधों पर इसके प्रभावों व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

लोकतंत्र सरकार का एक ऐसा स्वरूप है जिसमें राज्य का शासन चलाने में नागरिकों की पर्याप्त भागीदारी होती है और जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि उनके लिये देश का शासन चलाते हैं।

हालाँकि विश्व के सभी हिस्सों में इस इस आदर्श वाक्य का पालन नहीं किया जा रहा है। इसका नवीनतम उदाहरण म्याँमार है जहाँ की सेना ने  निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को नज़रबंद करने के साथ ही देश में एक वर्ष के लिये आपातकाल की घोषणा करते हुए शासन को अपने हाथ में ले लिया।

इस कठिन परिस्थिति ने भारतीय विदेश नीति के समक्ष एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के कारण भारत को म्याँमार में लोकतंत्र का समर्थन करना होगा परंतु वर्तमान स्थिति में भारत को अपने सुरक्षा और विकास संबंधी हितों की भी रक्षा करनी होगी।

म्याँमार में तख्तापलट:    

म्याँमार की सेना ने देश की स्वतंत्रता (वर्ष 1948) के बाद से तीसरी बार सरकार का तख्तापलट किया है 

  • हालाँकि म्याँमार की सेना के अधिकारियों ने अपने बचाव में इसे तख्तापलट मानने से इनकार किया है।
  • वर्तमान में शासन की सभी शक्तियों को कमांडर-इन-चीफ मिन आंग ह्लाइंग को स्थानांतरित करते हुए देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई है।

म्याँमार की यातनापूर्ण राजनीति: 

  • जुंटा का दोहरा मापदंड: 
    • वर्ष 2008 में म्याँमार की सेना द्वारा एक नागरिक पार्टी के माध्यम से सत्ता में बने रहने के उद्देश्य से देश का संविधान तैयार किया गया था।
      • वर्ष 2015 में यूनियन सॉलिडैरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी (यूएसडीपी) चुनाव हार गई जिससे सेना को काफी निराशा हुई क्योंकि सेना एक नए लोकतांत्रिक म्याँमार के उदय को लेकर चिंतित थी जो नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) की जीत के साथ उभर सकती थी।
  • रोहिंग्याओं के प्रति शत्रुता: वर्ष 2020 के चुनाव के पहले सेना ने आतंकवाद से लड़ने के नाम पर देश के रखाइन राज्य में रोहिंग्या समुदाय के लोगों पर एक क्रूर कार्रवाई शुरू कर दी, जिसने म्याँमार से लगभग 700,000 से अधिक रोहिंग्या मुसलमानों को पड़ोसी देशों (मुख्य रूप से बांग्लादेश) में भागने के लिये विवश कर दिया।
  • नगण्य  विदेशी हस्तक्षेप:  म्याँमार ने हमेशा ही किसी भी विदेशी या अंतर्राष्ट्रीय शक्ति को नगण्य हस्तक्षेप करने की अनुमति देते हुए स्वयं ही अपने आंतरिक संघर्षों से निपटने को प्राथमिकता दी है।
    • म्याँमार ने अपनी चुनौतियों पर रणनीति तैयार करने के लिये कुछ एशियाई और पश्चिमी देशों को शामिल कर स्थापित किये गए कई अंतर्राष्ट्रीय तंत्रों को वर्ष 2015 के चुनाव के बाद भंग कर दिया था।
  • विभाजित म्याँमार समुदाय: म्याँमार की सेना देश के लोगों की मानसिकता को अच्छी तरह से समझती है।
    • म्याँमार में बर्मन या बर्मार (बहुसंख्यक समूह) समुदाय और जातीय अल्पसंख्यकों के बीच व्यापक विभाजन है तथा आमतौर देश का अल्पसंख्यक समुदाय एक मज़बूत केंद्र सरकार के विरोध में होता है।
    • हालिया सैन्य तख्तापलट में बर्मन लोग आंग सान सू की के समर्थन में हैं, परंतु इस संदर्भ में उनका निर्णय बदल भी सकता है।
      • म्याँमार का बहुसंख्यक समुदाय बड़े पैमाने पर बौद्ध और शांतिप्रिय है। ऐसे में वे बगैर अधिक प्रतिरोध के इस सैन्य तख्तापलट को स्वीकार भी कर सकते हैं।

म्याँमार संकट से जुड़े मुद्दों का सार:   

  • म्याँमार में नवंबर 2020 के चुनाव में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) को एक शानदार विजय प्राप्त हुई, इसमें उसने संघ, क्षेत्रीय और राज्य स्तर पर 82% संसदीय सीटों पर जीत हासिल की।
  • सेना समर्थित यूनियन सॉलिडैरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी (यूएसडीपी) ने चुनावों में व्यापक धोखाधड़ी होने का दावा किया।
  • सेना ने बगैर कोई ठोस सबूत प्रस्तुत किये ही विजयी पार्टी (एनएलडी) को सत्ता से हटा दिया और अधिकांश राजनीतिक नेताओं को हिरासत में ले लिया जिसमें म्याँमार सरकार की वास्तविक प्रमुख (de facto head) आंग सान सू की भी शामिल हैं।
  • कुछ सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने सैन्य तख्तापलट का विरोध करने के साथ प्रदर्शन करने के लिये सोशल मीडिया का प्रयोग किया।

वैश्विक प्रतिक्रिया:  

  • संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने म्याँमार में सैन्य तख्तापलट की "विफलता" सुनिश्चित करने के लिये  अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से पर्याप्त दबाव बनाने की बात कही है।
  • चीन और रूस ने इस तख्तापलट के प्रति टाल-मटोल वाला रवैया अपनाया है। 
  • आसियान (ASEAN) ने "बातचीत, सुलह और सामान्य स्थिति में लौटने के लिये एक मौन आह्वान किया, जबकि जापान ने इसे एक तख्तापलट कहा है।
  • ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने प्रतिबंधों की धमकी के साथ कड़े बयान जारी किये हैं।
    • अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस सैन्य कार्रवाई को तख्तापलट के रूप में संदर्भित किया है और सेना से  "हथियाई गई शक्ति को त्यागने",  हिरासत में लिये गए सभी अधिकारियों और अधिवक्ताओं को रिहा करने, दूरसंचार पर लगे प्रतिबंधों को हटाने और हिंसा से बचने का का आह्वान किया है।

History-of-Myanmar

म्याँमार राजनीतिक संकट और भारत: 

  • भारत का रुख: 
    • भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य के रूप में म्याँमार मुद्दे में शामिल हुआ है।
    • तख्तापलट के तुरंत बाद भारत ने म्याँमार की राजनीतिक स्थिति पर अपनी चिंता व्यक्त की थी और कहा कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया तथा कानून के शासन को बरकरार रखा जाना चाहिये। 
    • हालाँकि भारत ने म्याँमार के हालिया घटनाक्रम पर गहरी चिंता व्यक्त की है परंतु म्याँमार की सेना के साथ संबंधों को स्थगित करना एक व्यवहार्य विकल्प नहीं होगा क्योंकि म्याँमार और उसके पड़ोस के साथ भारत के महत्त्वपूर्ण आर्थिक तथा सामरिक हित जुड़े हैं।

भारत के लिये म्याँमार का महत्व: 

  • भारत-म्याँमार संबंध:  भारत और म्याँमार सांस्कृतिक और लोगों के आपसी घनिष्ठ संबंधों से जुड़े हैं, जो व्यापार, आर्थिक, सुरक्षा और रक्षा से संबंधित विनिमय तक विस्तारित हैं।
  • महामारी में म्याँमार को भारत द्वारा दी गई सहायता: भारत ने म्याँमार को दवा, परीक्षण किट और टीके प्रदान कर COVID-19 महामारी से निपटने हेतु सहायता उपलब्ध कराई है।
    • भारत ने इस महामारी के स्वास्थ्य और आर्थिक क्षेत्र से जुड़े दुष्प्रभावों को कम करने हेतु म्याँमार के लोगों के लिये अपने मानवीय समर्थन को जारी रखने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
    • भारत द्वारा इस महामारी से लड़ने में म्याँमार को सहायता देने हेतु कोविशील्ड वैक्सीन की 15 लाख खुराक भी उपलब्ध कराई गई है।
      • म्याँमार ने भारत द्वारा भेजी गई COVID-19 वैक्सीन से टीकाकरण का कार्य शुरू कर दिया है, जबकि उसने अभी चीन द्वारा भेजी गई  300,000 खुराक को रोककर रखा है।
  • पनडुब्बी उपहार: भारत ने किलो-वर्ग (Kilo class) की पनडुब्बी आईएनएस सिंधुवीर (UMS Minye Theinkhathu) म्याँमार नौसेना को सौंपी है।
    • भारत द्वारा उपहार स्वरूप दी गई यह पनडुब्बी म्याँमार नौसेना की पहली और एकमात्र पनडुब्बी है।
  • विदेश नीति: म्याँमार के लिये भारत की सैन्य-राजनयिक आउटरीच एक्ट ईस्ट नीति की आधारशिला बन गई है।  
    • पूर्वोत्तर भारत के राज्यों की सीमाओं को विद्रोही समूहों से सुरक्षित करने में म्याँमार सेना की सहायता तथा अन्य मामलों में द्विपक्षीय सहयोग के कारण म्याँमार की सेना के साथ भारत के सुरक्षा संबंध अत्यंत घनिष्ठ हो गए हैं। ऐसे में कोई भी ऐसा कदम उठाना भारत के लिये बहुत कठिन होगा जिनकी इन उपलब्धियों के विरुद्ध जाने की संभावना हो।
  • आधारभूत संरचना और विकासात्मक परियोजनाएँ: रणनीतिक हितों के अलावा भारत ने म्याँमार के साथ कई बुनियादी ढाँचे और विकास परियोजनाओं पर भी कार्य किया है, जिसे वह आसियान देशों तथा "पूर्व के प्रवेश द्वार"के रूप में देखता है।
    • इनमें भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और कलादान मल्टी-मोडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट के साथ सित्वे बंदरगाह (Sittwe Port) पर एक विशेष आर्थिक क्षेत्र की योजना शामिल है।

आगे की राह:  

  • विभिन्न समुदायों के बीच अंतर को कम करना: म्याँमार के लोगों के बीच सांप्रदायिक विभाजन को देखते हुए इस निष्कर्ष पर पहुँचना कि म्याँमार में सैन्य तख्तापलट के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन देखने को मिलेगा, सही नहीं है।
    • वर्तमान परिदृश्य में सेना जातीय और धार्मिक विभाजन का दोहन करना जारी रखेगी।
    • अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा जातीय अल्पसंख्यकों (विशेष रूप से देश के उत्तरी भाग से) सहित घरेलू हितधारकों के साथ संपर्क स्थापित करने का प्रयास किया जाना चाहिये।
  • प्रतिबंधों की धमकी देना समाधान नहीं है:  अतीत में भी म्याँमार की सेना हमेशा ही एशियाई देशों के साथ समझौतों के माध्यम से आर्थिक रूप से प्रतिबंधों का मुकाबला करने में सक्षम रही है, ऐसे में म्याँमार पर प्रतिबंध लगाकर किसी बड़े राजनीतिक परिवर्तन की उम्मीद करना सही नहीं होगा।
  • सेना की आलोचना करने से बचना: भारत कई कारणों से म्याँमार में अवश्य ही बने रहना चाहेगा।
    • कई उग्रवादी समूह म्याँमार में आश्रय प्राप्त करते हैं, जिसका अर्थ है कि भारत को उनका मुकाबला करने के लिये म्याँमार की सहायता की आवश्यकता है।
    • भारत के लिये म्याँमार के साथ जुड़ाव महत्त्वपूर्ण है, ऐसे में इसे म्याँमार के मामलों में सेना की प्रधानता को स्वीकार करते हुए दोतरफा जुड़ाव बनाए रखना होगा। 

निष्कर्ष:  

  • एक ऐसा देश जहाँ सैन्य नेतृत्त्व ने अपने शब्दों में लोकतंत्र की परिभाषा गढ़ी हो वहाँ तनाव की संभावना बहुत प्रबल होगी।
    • ऐसे मामलों में घरेलू सेनाएँ और भू-राजनीति अक्सर इस प्रकार के तंत्र के कार्यों और उसके शासन करने के आवेग को रोकने में विफल होती हैं।
  • किसी देश में लोकतंत्र को खतरा होने पर भारत का चिंतित होना स्वाभाविक है।
    • परंतु भारत को वर्तमान में दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की अपनी नीति के प्रति प्रतिबद्ध रहना चाहिये।
    • भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए अपने सिद्धांतों, मूल्यों, रुचियों और भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को सूक्ष्मता से संतुलित करना होगा।

अभ्यास प्रश्न:  म्याँमार में सैन्य तख्तापलट की हालिया घटना की समीक्षा करते हुए भारत-म्याँमार संबंधों पर इसके प्रभावों की चर्चा कीजिये।

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