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एडिटोरियल

जैव विविधता और पर्यावरण

कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज़-25

  • 26 Dec 2019
  • 14 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में हालिया COP25 संबंधी विभिन्न महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

इसी माह स्पेन की राजधानी मैड्रिड (Madrid) में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) के शीर्ष निकाय कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP) के 25वें सत्र का आयोजन किया गया। इससे पूर्व COP-25 का आयोजन चिली की राजधानी सेंटियागो में किया जाना था, परंतु देश में बढ़ते विरोध प्रदर्शनों के कारण चिली ने इसके आयोजन में असमर्थता व्यक्त की थी जिसके पश्चात् मैड्रिड का चुनाव किया गया।

क्या हैं UNFCCC और COP?

  • UNFCCC वर्ष 1992 में ब्राज़ील में आयोजित ‘रिओ अर्थ समिट’ (Rio Earth Summit) में पर्यावरण पर प्रस्तावित तीन समझौतों में से एक है:
  1. संयुक्त राष्ट्र जैव विविधिता सम्मलेन (UNCBD)
  2. संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम सम्मेलन (UNCCD)
  3. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC)
  • विभिन्न देशों द्वारा इस समझौते पर हस्ताक्षर के पश्चात् 21 मार्च, 1994 को इसे लागू किया गया। गौरतलब है कि आज यह संधि 197 देशों द्वारा मान्य है।
  • वर्ष 1995 से लगातार UNFCCC की वार्षिक बैठकों का आयोजन किया जा रहा है और यह पर्यावरण एवं जलवायु के मुद्दे पर वार्षिक रूप से आयोजित होने वाला विश्व का सबसे बड़ा मंच है।
    • इसके तहत ही वर्ष 1997 में बहुचर्चित क्योटो समझौता (Kyoto Protocol) हुआ और विकसित देशों (एनेक्स-1 में शामिल देश) द्वारा ग्रीनहाउस गैसों को नियंत्रित करने के लिये लक्ष्य तय किया गया। क्योटो प्रोटोकॉल के तहत 40 औद्योगिक देशों को अलग सूची एनेक्स-1 में रखा गया है।
  • इस सम्मेलन में आधिकारिक रूप से हिस्सा लेने वाले देशों की बैठक को कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP) के नाम से जाना जाता है। विदित हो कि COP की पहली बैठक मार्च, 1995 को जर्मनी के बर्लिन में आयोजित की गई थी।

COP-25 का उद्देश्य

  • COP-25 का प्राथमिक उद्देश्य वर्ष 2015 के पेरिस समझौते की नियम-पुस्तिका (Rule-Book) के अनसुलझे मुद्दों पर चर्चा करना था। गौरतलब है कि पेरिस समझौता वर्ष 2020 में वर्ष 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल का स्थान लेगा।
    • बीते वर्ष दिसंबर में आयोजित COP-24 में नए कार्बन बाज़ारों के निर्माण, उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य, विभिन्न देशों के अलग-अलग लक्ष्यों जैसे कुछ मुद्दों पर आम सहमति नहीं बन पाई थी जिसके कारण पेरिस समझौते की नियम-पुस्तिका को भी अंतिम रूप नहीं दिया जा सका था।
  • बैठक में अंतर्राष्ट्रीय उत्सर्जन व्यापार प्रणाली की कार्य-पद्धति और अल्प-विकसित देशों के लिये जलवायु परिवर्तन के परिणामों से निपटने हेतु मुआवज़े की व्यवस्था जैसे मुद्दों पर भी चर्चा की जानी थी।
  • साथ ही COP-25 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा जारी वार्षिक उत्सर्जन गैप रिपोर्ट और जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC) की विभिन्न रिपोर्ट्स पर भी चर्चा की जानी थी।
    • उक्त रिपोर्ट्स में कहा गया था कि वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का पेरिस समझौते का लक्ष्य अब ‘असंभव होने की कगार पर है’, क्योंकि वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन अभी भी लगातार बढ़ रहा है।

क्यों महत्त्वपूर्ण है COP-25?

  • कई वैज्ञानिक अध्ययनों में सामने आया है कि वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये वैश्विक समुदाय को वर्ष 2030 तक वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को लगभग आधा करना होगा।
    • जानकारों का मानना है कि इस कार्य के लिये हमें कई बड़े और परिवर्तनकारी बदलाव लाने होंगे, परंतु इस कार्य के लिये हमारे पास 11 वर्षों से भी कम समय बचा है।
    • हाल ही में जारी उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2019 के मुताबिक, वर्तमान में यदि पेरिस समझौते के तहत निर्धारित सभी लक्ष्यों का पालन किया जाता है, तब भी वर्ष 2030 तक वैश्विक तापमान में 3.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी जिसके जलवायु पर व्यापक एवं घातक परिणाम होंगे।
  • वैश्विक स्तर पर बढ़ रही जलवायु सक्रियता यह स्पष्ट करती है कि दुनिया भर के लोग अपनी सरकारों से इस संदर्भ में कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
  • इसी के मद्देनज़र जानकारों का मानना है कि COP25 वास्तव में वैश्विक जलवायु कार्रवाई को बढ़ाने में सार्थक और उपयोगी योगदान दे सकता है।

COP-25 के परिणाम

  • बैठक में चिली मेड्रिड टाइम ऑफ एक्शन नामक दस्तावेज़ जारी किया गया है। इस दस्तावेज़ के अंतर्गत सतत् विकास तथा गरीबी उन्मूलन में जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली बाधाओं से निपटने के लिये IPCC द्वारा राष्ट्रों को दिये वैज्ञानिक सुझावों की सराहना की गई है।
    • इसके अलावा इसमें राष्ट्रों द्वारा वर्ष 2020 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की पूर्ववर्ती प्रतिबद्धताओं और वर्तमान उत्सर्जन स्तर के अंतर पर प्रकाश डालते हुए प्रतिबद्धताओं की अनिवार्यता पर ज़ोर दिया गया।
    • साथ ही जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में विकासशील देशों की मदद करने के लिये वर्ष 2020 तक 100 बिलियन डॉलर जुटाने की प्रतिबद्धता को भी दोहराया गया।
    • दस्तावेज़ में जैव-विविधता क्षरण और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का एकीकृत रूप से उन्मूलन करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
  • बैठक के दौरान निजी क्षेत्र की 177 कंपनियों ने 1.5C के लक्ष्य के अनुरूप उत्सर्जन में कटौती करने की शपथ ली।
  • इसी बीच यूरोपीय संघ ने ‘यूरोपीय ग्रीन डील’ का भी अनावरण किया गया, जिसके अंतर्गत वर्ष 2050 तक यूरोपीय संघ के देश स्वयं को जलवायु तटस्थ (Climate Neutral) अर्थात वर्ष 2050 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
  • इसके अलावा विकासशील देशों द्वारा हरित जलवायु कोष (GCF) के अंतर्गत ‘फाईनेंसिंग विंडो’ की व्यवस्था पर असहमति दर्ज की गई।
  • अल्प विकासशील देशों ने पूर्व-2020 (Pre-2020) लक्ष्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया परंतु उन से ज़्यादा अपेक्षा न करने की मांग भी की।
  • अनुच्छेद-6 के अतिरिक्त पेरिस समझौते की नियम-पुस्तिका के सभी बिंदुओं पर सदस्य देशों ने सहमति व्यक्त की।

कितना सफल रहा COP-25?

  • बैठक में पेरिस समझौते के अनुच्छेद-6 में उल्लेखित नए कार्बन बाज़ार के लिये नियमों पर आम सहमति न बन पाने के कारण इसे अगले वर्ष होने वाले COP-26 तक के लिये स्थानांतरित कर दिया गया।
    • विदित है कि पेरिस समझौते का अनुच्छेद- 6 एक अंतर्राष्ट्रीय कार्बन बाज़ार की अवधारणा प्रस्तुत करता है। कार्बन बाज़ार विभिन्न देशों और उद्योगों को उत्सर्जन में कमी के लिये कार्बन क्रेडिट अर्जित करने की अनुमति देता है। इन कार्बन क्रेडिट्स को किसी भी अन्य देश को बेचा जा सकता है। कार्बन क्रेडिट का खरीदार देश इन क्रेडिट्स को अपने कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य के रूप में दिखा सकता है।
  • कुछ देशों (जैसे-मैक्सिको) ने क्योटो समझौते के क्रेडिट पॉइंट्स को पेरिस समझौते में इस्तेमाल करने की अनुमति मांगी है, जिस पर सभी देश एकमत नहीं हो सके।
  • अनुच्छेद-6 के ही अंतर्गत ‘सामान समयसीमा’ (Common Timeframe) की अनिवार्यता को भी अगले वर्ष तक के लिये टाल दिया गया।
  • एक अन्य समस्या यह है कि नई प्रक्रिया के तहत इन क्रेडिट्स को बाज़ार में देशों या निजी कंपनियों के बीच कई बार खरीदा-बेचा जा सकता है। अतः इस प्रक्रिया में यह सुनिश्चित करना आवश्यक होगा कि इन क्रेडिट्स की एक बार से अधिक गणना न की जाए।

COP की सार्थकता

हाल के दिनों में COP की सार्थकता पर कई बार प्रश्न उठे हैं और पिछले कुछ समय से इन सम्मेलनों में किसी ठोस निर्णय पर सभी देशों की सहमति नहीं बन पाई है। ज्यादातर देश नियमों को अपने ढंग से तोड़-मरोड़ कर इस्तेमाल करते हैं।

  • इस सम्मेलन में भी कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाई जिसके बाद कुछ मुद्दों को अगले वर्ष के लिये टाल दिया गया।
  • क्योटो प्रोटोकॉल की दूसरी प्रतिबद्धता (2013-20) की अवधि के समाप्त होने पर 2020 में पेरिस समझौता औपचारिक रूप से लागू हो जाएगा लेकिन अभी भी इसके कई नियमों पर सहमति नहीं बन पाई है। ज्ञात हो कि वर्ष 2012 में कनाडा ने स्वयं को क्योटो प्रोटोकॉल से बाहर कर लिया था।
  • COP की दोहा बैठक (COP-18) 2012 में कनाडा, जापान, रूस, बेलारूस, युक्रेन, न्यूजीलैंड और अमेरिका ने क्योटो प्रोटोकॉल की दूसरी प्रतिबद्धता से जुड़ने से मना कर दिया था।
  • अमेरिका जैसे देश का स्वयं को पेरिस समझौते से अलग करना इस मुहिम के लिये एक बड़ा झटका है।
  • EU और जापान विकसित देशों के मानकों के हिसाब से अपने लक्ष्य पाने में सफल रहे परंतु जलवायु परिवर्तन में योगदान की ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी निर्वहन करने में पीछे रहे।
  • भारत ने विकासशील देशों द्वारा अपने 100 बिलियन डॉलर के सहयोग को पूरा न करने पर निराशा जताई।

निष्कर्ष

ऐसे में यह स्पष्ट है कि ज्यादातर शक्तिशाली देश किसी-न-किसी प्रकार से स्वयं को बड़ी जिम्मेदारियों से बचाए रखना चाहते हैं तथा विभिन्न महत्त्वपूर्ण विषयों पर आज भी ज्यादातर देश एकमत नहीं हैं। बैठक को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र सेक्रेटरी जनरल ने भी कहा कि “मैं COP-25 के परिणाम से बहुत ही निराश हुआ हूँ। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने जलवायु परिवर्तन से लड़ने की महत्वाकांक्षा दिखाने, इसके अनुरूप स्वयं को बदलने और इस उद्देश्य पर निवेश करने का एक महत्त्वपूर्ण मौका खो दिया है, लेकिन हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिये और मैं उम्मीद नहीं छोडूंगा।” आवश्यक है कि जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दे पर सभी राष्ट्र एक मंच पर आकर अपनी-अपनी जिम्मेदारियों के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करें ताकि कार्बन उत्सर्जन संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त कर हम अपने भविष्य को बेहतर बना सकें।

प्रश्न: COP25 के आलोक में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP) की भूमिका की जाँच कीजिये।

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