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एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

वैश्विक ऊर्जा में कोयले की भूमिका

  • 03 Dec 2018
  • 14 min read

संदर्भ


आर्थिक विकास का संबंध मानवीय उपभोग की विविध वस्तुओं के उत्पादन में प्रगतिशल वृद्धि से है और किसी भी देश का विकास ऊर्जा आपूर्ति के नियमित तथा निरंतर उत्पादन चक्र की गतिशीलता के बिना सुनिश्चित करना संभव नहीं है। वर्तमान समय में पेट्रोलियम, विद्युत, कोयला, जल एवं आणविक शक्ति के अलावा वायु एवं सौर ऊर्जा विकसित और विकासशील देशों के लिये ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं। आज बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतों और उनकी विविधता को देखते हुए व्यापक स्तर पर ऊर्जा के उत्पादन और वितरण की व्यवस्था की आवश्यकता है तथा यह उपलब्ध ऊर्जा  स्रोतों के नियंत्रित उपयोग से ही  संभव होगा। उल्लेखनीय है कि पृथ्वी पर कोयला बिजली का सबसे बड़ा स्रोत भी है, अतः कोयले का आर्थिक विकास के साथ सहसंबंध इसे अधिक मूल्यवान और आवश्यक ऊर्जा विकल्प बनाता है किंतु यह एक अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है अतः इसके भंडारण का सीमित और सही उपयोग करना भी ज़रूरी है।

कोयले का उत्पादन और उपयोग : वैश्विक परिदृश्य

  • उच्च आय वाले देश कम ऊर्जा की खपत यानी कम कोयले का उपयोग करते हैं। वहीं, अधिक कोयले का उपयोग करने वाले ऊर्जा-केंद्रित विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देश हैं, चीन और भारत इसके स्पष्ट उदाहरण हैं।
  • लेकिन कुछ विसंगतियों पर गौर करें तो हम पाएंगे कि ऑस्ट्रेलिया न केवल उच्च आय वाला देश है बल्कि वहाँ कोयले के उत्पादन की अधिकता के साथ उर्जा के लिये कोयले पर निर्भरता भी अधिक है।
  • इसके साथ ही अमेरिका के बारे में भी यही कहा जा सकता है, लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के संरक्षणवाद के मामले के साथ।
  • पोलैंड और ज़र्मनी में भी लंबी अवधि से खनन उद्योग स्थापित हैं और वर्ष 2011 में जापान में फुकुशिमा आपदा के बाद परमाणु ऊर्जा को समाप्त करने के प्रयासों के रूप में कोयले को उर्जा के विकल्प के एक अच्छे स्रोत के रूप में उभरा है।
  • इसी तरह, नीदरलैंड ने हाल के वर्षों में प्राकृतिक गैस की कमी की भरपाई करने के लिये कोयले के उपयोग को बढ़ावा दिया है।
  • पश्चिम एशिया के पेट्रो-राज्य और रूस स्पष्ट तौर पर अपनी भावी पीढ़ी के लिये तेल या प्राकृतिक गैस की ओर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
  • इसी प्रकार ब्राज़ील की जलविद्युत और मेक्सिको की प्राकृतिक गैस तक पहुँच उन्हें कम आय वाले उन उचित ऊर्जा-केंद्रित अर्थव्यवस्थाओं की श्रेणी से बाहर कर देती है, जो बहुत अधिक कोयले का उपयोग नहीं करते हैं।
  • कभी-कभी ऐसे आकस्मिक व्यय कोयले की शक्ति को लचीला बनाने में स्थानीय कारकों के महत्त्व को रेखांकित करता है।
  • उपर्युक्त असंगत विकसित अर्थव्यवस्थाओं को देखें तो पता चलता है कि इन देशों में कोयले के उपयोग में सबसे ज्यादा गिरावट आई है।
  • उल्लेखनीय है कि नीदरलैंड ने इस साल की शुरुआत में घोषणा की कि वह आने वाले दशक में कोयले के ऊर्जा के रूप में उपयोग पर प्रतिबंध लगाएगा।
  • यहाँ तक ​​कि संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता के मेज़बान देश पोलैंड ने वर्ष 2040 तक कोयले से बिजली निर्माण की हिस्सेदारी को 32% तक कम करने के लिये लक्ष्य जारी किया है।
  • फुकुशिमा की घटना के बाद ऊर्जा सुरक्षा के प्रति सावधानी बरतते हुए जापान सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित कर रहा है, लेकिन अधिक कुशल कोयला संयंत्रों के मामले में भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • हाल ही में प्रकाशित अपने नवीनतम क्लाइमेटेस्कोप अध्ययन में, ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी फाइनेंस (BNEF) का अनुमान है कि नई सौर और तटवर्ती पवन परियोजनाएँ क्रमशः शेष दुनिया की तुलना में काफी बाद (2025 और 2040) तक जापान के नए कोयला संयंत्र को अर्थव्यवस्था से बाहर नहीं कर पाएंगे।
  • इस प्रकार जापान एशिया में किसी और देश की अपेक्षा कोयले के प्रति अधिक लचीलापन दिखाता है, यहाँ के वित्तीय संस्थान कोयले के नए संयंत्रों के लिये धन उपलब्ध कराते हैं क्योंकि इस प्रकार यह देश के बाहर प्रौद्योगिकी के निर्यात को बढ़ावा देता  है।

कोयला

  • कोयला एक अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है। 
  • अनवीकरणीय संसाधन वे संसाधन होते हैं जिनके भंडार में प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा पुनर्स्थापन नहीं होता है। ये संसाधन मानवीय क्रियाओं द्वारा समाप्त हो जाते हैं तथा पुनः निर्माण होने में करोड़ों वर्ष लग जाते हैं।
  • कोयला एक ठोस कार्बनिक पदार्थ है जिसको ईंधन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। ऊर्जा के प्रमुख स्रोत के रूप में कोयला अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। विद्युत उत्पादन के लिये प्रयुक्त कोयला 'ऊष्मीय कोयला' कहलाता है जबकि इस्पात निर्माण के लिये आवश्यक कोक के उत्पादन के लिये जो कोयला प्रयुक्त होता है उसे 'कोकिंग कोल' कहते हैं। 
  • प्रायद्वीपीय भारत, पुराने गोंडवाना शैल समूह तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र के नए टर्शियरी शैल समूह में कोयला संसाधन उपलब्ध हैं। 
  • संसाधन शब्द पृथ्वी पर या किसी देश के कुल खनिज या ईंधन के मापन के लिये खनिज या ईंधन को संदर्भित करता है।
  • वहीं भंडारण का अर्थ ईंधन या खनिजों के भंडारण से है जो आर्थिक एवं भूवैज्ञानिक रूप से संभावित खनिज को तकनीक की मदद से निष्कर्षित करते हैं।

कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयले की मूलभूत श्रेणियाँ निम्न प्रकार से हैं:

  • पीट कोयला: इसमें कार्बन की मात्रा 50% से 60% तक होती है। इसे जलाने पर अधिक राख एवं धुआँ निकलता है। यह सबसे निम्न कोटि का कोयला है।
  • लिग्नाइट कोयला: कोयला इसमें कार्बन की मात्रा 65% से 70% तक होती है। इसका रंग भूरा होता है, इसमें जलवाष्प की मात्रा अधिक होती है।
  • बिटुमिनस कोयला: इसे मुलायम कोयला भी कहा जाता है। इसका उपयोग घरेलू कार्यों में होता है। इसमें कार्बन की मात्रा 70% से 85% तक होती है।
  • एंथ्रासाइट कोयला: यह कोयले की सबसे उत्तम कोटि है। इसमें कार्बन की मात्रा 85% से भी अधिक रहती है।

grades of coal

भारत और चीन की स्थिति

  • बढ़ती हुई जनसंख्‍या, अर्थव्‍यवस्‍था के विस्‍तार और जीवन की बेहतर गुणवत्‍ता के लिये भारत में ऊर्जा का उपयोग बढ़ने की संभावना है।
  • पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस के सीमित भंडार और जलविद्युत परियोजना पर पारिस्‍थितिकीय संरक्षण प्रतिबंध तथा परमाणु ऊर्जा के भौगोलिक राजनैतिक दृष्‍टिकोण पर विचार करते हुए कोयला भारत के ऊर्जा परिदृश्‍य का केंद्र बिंदु बना रहेगा।
  • भारत और चीन दोनों देश जो कोयले का अत्यधिक उपयोग करते हैं, वैश्विक उर्जा ज़रूरतों के लिहाज से जंक-फूड की अवधारणा के अनुरूप हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के विश्व ऊर्जा आउटलुक (World Energy Outlook) में शामिल सभी तीन परिदृश्यों के मुताबिक, इन दोनों देशों ने बिजली के लिये कोयले के उपयोग में अनुमानित वृद्धि की है और साथ ही हरित जलवायु की गिरावट में भी इनका बहुत बड़ा योगदान है।
  • वर्ष 2010 और 2017 के बीच, चीन और भारत में कोयले से उत्पन्न की गई शक्ति की क्षमता संयुक्त रूप से 432 गीगावाट थी। वहीं वर्ष 2017 के अंत तक संपूर्ण अमेरिका में कोयले से उत्पन्न की गई शक्ति की क्षमता 279 गीगावाट थी।
  • अक्षय ऊर्जा, बैटरी भंडारण की लागत में तेज़ी से गिरावट आने के बावज़ूद चीन और भारतीय शहरों में कोयले के दहन से जुड़ी वायु गुणवत्ता की समस्या लगातार बनी हुई है।
  • ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी फाइनेंस (BNEF) के अनुसार, सौर ऊर्जा तथा तटवर्ती पवन ऊर्जा अब चीन और भारत में बिजली उत्पादन के नए और सस्ते स्रोत हैं लेकिन अभी भी अक्षय ऊर्जा की कीमत को मौजूदा कोयले की कीमत से कम करने की आवश्यकता है ताकि कोयले का उपयोग बंद हो।
  • अमेरिका, जहाँ सस्ता शेल गैस और नवीनीकरण उर्जा का संयोजन है, एशिया में प्राकृतिक गैस का आयात करने की उच्च लागत कोयले को बिजली के लिये अवशिष्ट विकल्प बनाती है।

कोयले के खनन से उत्पन्न समस्या


कोयला वर्तमान और भविष्य की ऊर्जा आवश्यकता होने के बावजूद इसके खनन से निम्नलिखित समस्याएँ होती हैं -

  • कोयले के सतही खनन (Surface Mining) यानी ऐसे खनन कार्य जिसके अंतर्गत खुदाई और विस्फोट आदि किये जाते हैं और इस प्रक्रिया से वायु एवं ध्वनि प्रदूषण की गंभीर समस्या पैदा होती है।
  • इसके अतिरिक्त सतही खनन के कारण मृदा अपरदन के साथ-साथ गाद एकत्र हो जाती है। गाद का बहाव जलधाराओं में हो जाता है जो कोयले की खदान के समीप स्थित अथवा उससे संबंधित जलाशयों के भौमजल को भी संदूषित कर देता है।
  • वहीं भूमिगत खनन (Underground Mining) से खनन क्षेत्रों में कार्य के दौरान अथवा खनन कार्य समाप्त होने के बाद भूमिगत खानों के गिरने या भूमि अवतलन की घटनाएँ होना आम बात है।
  • कुछ खानों से निकलने वाले खनन अपशिष्ट जल क्षेत्रों के एक बड़े भाग को प्रदूषित कर देते हैं।
  • इसके अतिरिक्त कोयले की भूमिगत खानों में अक्सर आग लगने की घटनाओं से भी सामान्यतः खनन क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोगों को अपनी जान से समझौता करना पड़ता है। साथ ही खानों से निकलने वाले धुएँ के कारण आस-पास के इलाके में रहने वाले लोगों को कई प्रकार के श्वसन रोगों का सामना करना पड़ता है।
  • औद्योगीकरण के विस्तार और प्रदूषण में वृद्धि ने एक के बाद दूसरे विकासशील देशों एवं बड़े-बड़े शहरों को अपनी चपेट में ले लिया है और भारत के शहर भी इस दायरे से परे नहीं हैं।
  • इन समस्याओं के अलावा तापीय विद्युत संयंत्रों में बिजली के उत्पादन एवं उद्योगों में कोयले का उपयोग वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है।
  • उपर्युक्त समस्याओं के बावजूद कार्बन उत्सर्जन के नाम पर समय-समय पर विकसित देशों को उनके विकास कार्यों को रोकने के लिये बाध्य करना भी एक अहम समस्या है।

आगे की राह

  • आज विश्व के सामने यह समस्या है कि विकास को सतत एवं दीर्घगामी रूप कैसे दिया जाए।
  • गौरतलब है कि यह उपलब्ध ऊर्जा  स्रोतों के नियन्त्रित उपयोग से ही यह संभव होगा। कोई भी विकास तब तक सतत नहीं हो सकता जब तक कि ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित न हो।
  • हाल  के वर्षों में समूची दुनिया में सतत विकास की अवधारणा को बल मिला है जिसने पर्यावरणीय मुद्दों को उभारा है।
  • भले ही कोयला हमारे विकास इंजन के लिये जंक फ़ूड की तरह है लेकिन हमें विकास कार्यों को बाधित किये बिना अपने लिये नए ऊर्जा विकल्प तलाशने होंगे।
  • भारत ने इस ओर अपने कदम भी बढ़ाए हैं और वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय उर्जा प्राप्ति का लक्ष्य रखा है। अतः इस लक्ष्य को दृढ़ता से हासिल करने की आवश्यकता है ताकि बिना विकास कार्यों को रोके भारत अपने कार्बन उत्सर्जन को कम कर सके।

स्रोत : लाइव मिंट

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