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एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

बिजली क्षेत्र की चुनौतियाँ

  • 13 Dec 2018
  • 10 min read

संदर्भ


बिजली क्षेत्र की अधिकांश समस्याएँ डिस्कॉम (वितरण कंपनियाँ) क्षेत्र के खराब निष्पादन से जुड़ी हुई हैं। इन्हीं समस्यायों को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2015 में ‘उदय’ (उज्ज्वल डिस्‍कॉम एश्‍योरेंस योजना) योजना को लॉन्च किया गया था जो कि विचार की दृष्टि से एक अच्छी पहल थी। गुजरात जैसे राज्य में यह योजना अधिक सफल रही और इस योजना के कारण इस राज्य में बिजली क्षेत्र में काफी सकारात्मक परिवर्तन भी देखें गए। परिणामस्वरूप ‘उदय’ देश के अन्य हिस्सों के लिये एक मॉडल योजना बन गई हालाँकि, इस योजना ने इन वितरण कंपनियों को केवल अस्थायी राहत प्रदान की है तथा इस योजना से शेष राज्यों में उतने सकारात्मक परिणाम प्राप्त नहीं हुए हैं जितने उससे अपेक्षित थे। अब प्रश्न यह है कि उदय योजना क्या है और इससे जुड़ी ऐसी क्या विशेषताएँ हैं जिनका लाभ इसके अपेक्षित लाभार्थियों तक नहीं पहुँच पाया है?

उदय (UDAY) योजना क्या है?

  • 05 नवंबर, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना या ‘उदय’ (UDAY) को स्वीकृति प्रदान की गई।
  • उदय को विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) की वित्‍तीय तथा परिचालन क्षमता में सुधार लाने के लिये शुरू किया गया था।
  • इस योजना में ब्‍याजभार, विद्युत की लागत और कुल तकनीकी तथा वाणिज्यिक नुकसान (AT & C LOSS) की हानि को कम करने का प्रावधान है। इसके परिणामस्‍वरूप डिस्कॉम्स लगातार 24 घंटे पर्याप्‍त और विश्‍वसनीय विद्युत की आपूर्ति करने में समर्थ हो जाएंगी।
  • इस योजना में राज्‍य सरकार को अपने ऋणों का स्‍वैच्छिक रूप से पुनर्गठन करने के लिये प्रोत्‍साहित करने हेतु प्रावधान है।
  • उदय योजना के तहत बिजली वितरण कंपनियों को आगामी दो-तीन वर्षों में उबारने हेतु निम्नलिखित चार पहलें अपनाए जाने की बात शामिल है जो निम्न प्रकार से हैं –

♦ बिजली वितरण कंपनियों की परिचालन क्षमता में सुधार।
♦ बिजली की लागत में कमी।
♦ वितरण कंपनियों की ब्याज लागत में कमी।
♦ राज्य वित्त आयोग के साथ समन्वय के माध्यम से बिजली वितरण कंपनियों पर वित्तीय अनुशासन लागू करना।

मुख्य विशेषताएँ

  • वितरण कंपनियों का 75% ऋण राज्यों द्वारा दो वर्षों में अधिग्रहीत किया जाएगा तथा यह अधिग्रहण वर्ष 2015-16 में 50% और 2016-17 में 25% होगा।
  • भारत सरकार द्वारा 2015-16 और 2016-17 वित्तीय वर्ष में संबंधित राज्यों के राजकोषीय घाटे की गणना में उदय योजना के तहत राज्यों द्वारा अधिग्रहीत ऋण शामिल नहीं किया जाएगा।
  • वितरण कंपनियों के जिन ऋणों का अधिग्रहण राज्य द्वारा नहीं किया जाएगा, उन्हें वित्तीय संस्थान/बैंक द्वारा ऋण अथवा बॉन्ड में परिवर्तित कर दिया जाएगा।
  • इस योजना के तहत अनिवार्य स्‍मार्ट मीटरिंग तथा उनकी संचालनगत कुशलता, ट्रांसफार्मरों एवं मीटरों आदि का उन्‍नयन, कारगर एलईडी बल्‍ब, कृषि पंपों, पंखों एवं एयरकंडीशनरों आदि जैसे किफायती ऊर्जा से जुड़े कदमों से औसत AT & C नुकसान लगभग 22 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी तक कम किया जाएगा।
  • 2018-19 तक औसत राजस्‍व प्राप्ति (ARR) और आपूर्ति की औसत लागत (ACS) के बीच के अंतर को समाप्‍त किया जाएगा।
  • गौरतलब है कि उदय योजना सभी राज्यों के लिये वैकल्पिक है।

क्रियान्वयन से उत्पन्न चुनौतियाँ

  • अधिकांश डिस्कॉम AT & C घाटे में कमी, ACS-ARR अंतराल को समाप्त करने और इसी तरह के नियमों को पूरा करने में असफल रहे हैं। विडंबना यह है कि सभी उदय राज्यों में से 13 ने वास्तव में पिछले वर्ष की तुलना में उच्च AT & C घाटे की सूचना दी है।
  • साथ ही बिजली की कीमत के निर्धारण की दुविधा के कारण डिस्कॉम्स जितना अधिक बिजली वितरण उपलब्ध कराते हैं, उतना ही उनका घाटा बढ़ता जाता है। परिणामस्वरूप, यह मांग की कमी बदले में बिजली डिस्कॉम्स को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है।
  • डिस्कॉम्स की खराब वित्तीय स्थिति का कारण बढ़ती बकाया राशि है जिसके कारण Gencos (एक विनियमित या गैर-विनियमित कंपनी जो पूरी तरह से बिजली उत्पादन में लगी हुई है) यानी एक कंपनी जो ऊर्जा उत्पन्न करती है, को भुगतान करना पड़ता है।
  • डिस्कॉम की खराब वित्तीय स्थिति के चलते बिजली खरीद समझौता (PPA) के रूप में बिजली की मांग भी प्रभावित होती है।
  • Gencos को प्रभावित करने वाले कई अन्य कारक भी हैं जो कि इसके वित्त को हानि पहुँचाते हैं, लेकिन उपर्युक्त दोनों कारण प्रमुख रूप से अधिक योगदान देते हैं।
  • अतः डिस्कॉम्स अपने कर्ज को चुकाने में असमर्थ हैं और निकट भविष्य में इनके ₹ 1.7 लाख करोड़ के घाटे का जल्द ही एनपीए बनने की संभावना है।
  • इससे कोयले और बैंकिंग उद्योग दोनों पर असर पड़ेगा। चूँकि Gencos को वितरण कंपनियों से अपनी बकाया राशि नहीं मिल रही है, इसलिये वे कोल इंडिया को नियमित रूप से भुगतान करने में असमर्थ हैं इस तरह बकाया राशि ₹10,000 करोड़ से अधिक हो गई है।
  • बैंकिंग उद्योग, जो पहले से ही दबाव में है, गैर-निष्पादित Gencos के कारण संभावित एनपीए की अतिरिक्त समस्या को बढ़ाता है।
  • इस प्रकार इस दुष्चक्र यानी वित्तीय घाटे की समस्या ने ऊर्जा क्षेत्र को प्रभावित किया है और यदि इन मुद्दों को शीघ्रता से हल नहीं किया गया तो गंभीर संकट हो सकता उत्पन्न हो सकता है जो पूरी अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है।

आगे की राह

  • अलग फीडर लाइनों, ऑडिटिंग, डिफॉल्टर्स और मूल्य निर्धारण के खिलाफ मज़बूत कार्रवाई करने की आवश्यकता है लेकिन इसके लिये समय और प्रयास दोनों की आवश्यकता होगी।
  • अन्य राज्यों के अधिकारियों को गुजरात में इस योजना की सफलता से सीख लेनी होगी कि कैसे अपनी योजना को सफल बनाएँ।
  • इसके अतिरिक्त इन योजनाओं की दिल्ली में ही क्रियान्वयन और निगरानी नहीं की जानी चाहिये यानी महत्त्वपूर्ण योजनाओं के लिये ज़मीनी स्तर पर सभी राज्यों की हिस्सेदारी प्राप्त करने के लिये गहन चर्चाएँ की जानी चाहिये क्योंकि यह किसी भी योजना की सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • कोयला उत्पादन को काफी हद तक बढ़ाया जाना चाहिये, ऐसा पहले भी किया गया है और पुनः ऐसा किया जा सकता है। इसके लिये कोयला परियोजना निगरानी समूह को शीघ्रता से मंजूरी देने की आवश्यकता होगी। इसके अलावा राज्यों के साथ सहयोग भी बढ़ाना होगा क्योंकि यही वह जगह है जहाँ कार्रवाई करना आवश्यक है।
  • साथ ही प्रत्येक तनावग्रस्त परियोजना की जाँच करने और पुनर्वास पैकेज तैयार करने के लिये एक उच्च स्तरीय अधिकारित समिति की स्थापना की जानी चाहिये। उल्लेखनीय है कि इस समिति को विवादों को सुलझाने के लिये आवश्यक अधिकार भी दिये जाने चाहिये।
  • यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि केवल वित्तीय पुनर्गठन ही उपर्युक्त समस्यायों का हल नहीं हो सकता है बल्कि इसके लिये एक व्यापक पैकेज का होना भी ज़रूरी है।
  • इससे परियोजनाओं हेतु आवश्यक स्वामित्व/प्रबंधन और/ धन की पर्याप्त स्वीकृति में भी परिवर्तन हो सकता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना प्रशंसनीय कार्य है और इसकी एक लागत भी तय की जानी चाहिये न कि नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को सब्सिडी देने के लिये Gencos पर कोई दबाव नहीं देना चाहिये।
  • देश के विकास की आधारशिला इसका ऊर्जा क्षेत्र है, अतः देश के शक्तिहीन होने से पहले ही बिजली क्षेत्र पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है।

स्रोत : बिज़नेस लाइन (द हिंदू)

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