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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

क्या अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध विश्व को मंदी की ओर धकेल रहा है?

  • 16 Sep 2019
  • 13 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इसमें अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध में वृद्धि और वैश्विक आर्थिक मंदी पर इसके प्रभाव पर चर्चा की गई है आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

पिछले कुछ समय में अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध में और अधिक वृद्धि हुई है। 20 अगस्त, 2019 को अमेरिकी प्रशासन ने 300 बिलियन डॉलर मूल्य के आयात पर दो चरणों में 15 प्रतिशत टैरिफ लागू करने के अपने निर्णय को अधिसूचित किया। टैरिफ वृद्धि के इस नवीनतम संस्करण का अर्थ है कि अमेरिका ने चीन से आयातित लगभग सभी उत्पादों पर टैरिफ लगा दिया है। दवा (फार्मास्युटिकल) आयात इसका एकमात्र बड़ा अपवाद है।

अमेरिकी प्रशासन द्वारा जारी अधिसूचना के तुरंत बाद ही चीन ने भी अमेरिका से आयातित 75 बिलियन डॉलर मूल्य के 5,000 से अधिक उत्पादों पर अतिरिक्त टैरिफ की घोषणा कर दी। उसने कृषि और वानिकी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को लक्षित किया। पहली बार कच्चे तेल पर भी टैरिफ में वृद्धि की गई। 2 सितंबर, 2019 को चीन ने अपनी प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई को और आगे बढ़ाते हुए विश्व व्यापार संगठन (WTO) में अमेरिका के एकतरफा टैरिफ वृद्धि के विरुद्ध शिकायत भी दर्ज करा दी।

आरंभ में अमेरिकी प्रशासन ने मुख्य रूप से चीन द्वारा अमेरिकी कंपनियों के बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) के उल्लंघन को लेकर उसे लक्षित किया था। अमेरिकी प्रशासन ने दावा किया था कि बीजिंग इन कंपनियों को उनके स्वामित्व वाली प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करने के लिये दबाव डाल रहा था। वस्तुतः इस विषय में अमेरिका ने स्वयं ही सब कुछ तय कर लिया जहाँ एक ओर उसने चीन पर "ज़बरन प्रौद्योगिकी हस्तांतरण" के लिये दबाव डालने का आरोप लगाया तो वहीं दूसरी ओर, वर्ष 1974 के व्यापार अधिनियम के प्रावधानों का उपयोग करके चीन के आयात के विरुद्ध दंडात्मक प्रावधान लागू कर दिये।

इस अधिनियम के प्रावधान (जैसे धारा 301) अमेरिका को किसी भी ऐसे देश की "जाँच" की अनुमति प्रदान करते हैं, जिन्हें वह अमेरिकी कंपनियों के बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघन का दोषी मानता हो। यदि जाँच में किसी देश को "दोषी" पाया जाता है तो उल्लंघन करने वाले देश पर व्यापार प्रतिकार या प्रतिशोध (Trade Retaliation) की कार्रवाई जा सकती है। चीनी उत्पादों के विरुद्ध अमेरिकी टैरिफ में वृद्धि व्यापार प्रतिशोध की ऐसी ही एक कार्रवाई के समान है।

यह उल्लेख किया जाना भी आवश्यक है कि धारा 301 की कार्रवाई WTO नियमों का उल्लंघन है क्योंकि विवादों को इस संगठन के विवाद निपटान तंत्र (Dispute Settlement mechanism) द्वारा ही हल किया जाना चाहिये।

‘करेंसी मैनिपुलेटर’ का लेबल

इस तनाव को और बढ़ाते हुए अमेरिकी प्रशासन ने न केवल बहुपक्षीयता की भावना का उल्लंघन किया है, बल्कि उसने अपने लक्ष्य को भी स्थानांतरित किया है। इस बार यह विवाद तब और बढ़ गया जब अमेरिका के ट्रेज़री सचिव ने ‘Omnibus Trade and Competitiveness Act’ की धारा 3004 के प्रावधानों को लागू किया।

यह धारा ट्रेज़री सचिव को इस परीक्षण के लिये अधिकृत करती है कि क्या अमेरिका के व्यापारिक भागीदार "भुगतान समायोजन के प्रभावी संतुलन के निषेध अथवा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अनुचित प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ प्राप्त करने के उद्देश्यों से विनिमय की दर" में हेरफेर कर रहे हैं।

इससे पूर्व अमेरिका के ट्रेजरी सचिव ने अमेरिका के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार चीन पर ‘करेंसी मैनिपुलेटर’ (Currency Manipulator) अर्थात् ‘मुद्रा में हेरफेर करने वाला’ होने का आरोप लगाया।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1994 के बाद पहली बार वाशिंगटन ने किसी देश के विरुद्ध इस लेबल का इस्तेमाल किया है।

अमेरिका के ट्रेज़री सचिव द्वारा चीन की यह लेबलिंग पिछले वर्ष अमेरिकी कॉन्ग्रेस के समक्ष प्रस्तुत एक रिपोर्ट पर आधारित थी जिसमें यह निष्कर्ष दिया गया था कि चीन की "विनिमय दर प्रक्रियाओं में (विदेशी मुद्रा बाज़ारों में इसके हस्तक्षेप सहित) लगातार पारदर्शिता का अभाव रहा है", यद्यपि रिपोर्ट से यह भी पता चला कि पिछले कई माह से "पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना द्वारा विदेशी मुद्रा बाज़ारों में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप" सीमित ही रहा है। अमेरिकी ट्रेज़री विभाग के अनुसार, "विदेशी मुद्रा बाज़ार में दीर्घकालिक और वृहत पैमाने पर हस्तक्षेप के माध्यम से एक अवमूल्यित मुद्रा को सहयोग देने के लंबे इतिहास के चलते" चीन को यह लेबल दिया गया।

करेंसी मैनिपुलेटर

  • मुद्रा के साथ छेड़छाड़ वह स्थिति होती है जब सरकारें व्यापार में "अनुचित" लाभ हासिल करने के लिये विनिमय दर को कृत्रिम रूप से मोड़ने की कोशिश करती हैं।
  • उदाहरणतः यदि चीन का केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा बाज़ार से अधिक मात्रा में डॉलर खरीदता है तो उसकी मुद्रा कृत्रिम रूप से कमज़ोर हो जाएगी और चीनी वस्तुएँ अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में काफी सस्ती हो जाएंगी जिसके कारण चीन को "अनुचित" लाभ प्राप्त होगा।
  • अब एक अमेरिकी फ़ोन का उदाहरण लेते हैं जिसकी मांग भारत में काफी ज़्यादा है, क्योंकि उसकी गुणवत्ता काफी अच्छी है, परंतु यदि कोई चीनी कंपनी भारत में वैसा ही फ़ोन निर्यात करती है तो चीनी मुद्रा की कीमत कम होने के कारण वह फ़ोन भारत में काफी सस्ता होगा और विवेकशील भारतीय उपभोक्ता चीनी मोबाइल फ़ोन को ही वरीयता देगा।

अमेरिका की नई कार्रवाई के मायने

ट्रंप प्रशासन की नवीनतम कार्रवाई से कम-से-कम दो प्रकार के मुद्दे सामने आते हैं-

1. अमेरिका एकपक्षीयता की ओर आगे बढ़ रहा है जिसे बहुपक्षीयता के सिद्धांतों द्वारा रेखांकित विश्वयुद्ध-बाद के आर्थिक शासन के ढाँचे में अत्यंत घृणा की दृष्टि से देखा जाता है। ट्रंप प्रशासन के सत्तारूढ़ होने के बाद से अमेरिका ने इन सिद्धांतों पर बार-बार आघात किया है। अमेरिका ने बहुपक्षीय रूप से सहमत नियमों के ढाँचे को दो प्रकार से चुनौती दी है-

  • पहला, WTO के सदस्यों द्वारा समझौता वार्ता आयोजित करने (ताकि ये नियम सदस्यों, विशेषकर अल्प-विकसित देशों की आवश्यकताओं को संबोधित कर सकें) के कार्य में व्यवधान डालकर;
  • दूसरा, विवाद निपटान तंत्र को गैर-कार्यात्मक या निष्क्रिय बनाकर। विवाद निपटान तंत्र का एक महत्त्वपूर्ण अंग अपीलीय निकाय (Appellate Body) है, जिसे प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिये सात सदस्यों की आवश्यकता होती है। लेकिन अमेरिकी प्रशासन ने अपीलीय निकाय के सेवानिवृत्त सदस्यों को नए सदस्यों द्वारा प्रतिस्थापित करने में व्यवधान डाल रखा है जिससे विवाद निपटान तंत्र नष्ट होने की कगार पर पहुँच गया है।

2. प्रश्न यह उठता है कि वाशिंगटन में व्यापार युद्ध की आधिकारिक घोषणा के लगभग डेढ़ वर्ष बाद प्रशासन के इन प्रयासों से क्या अमेरिकी जनता को कोई लाभ प्राप्त हुआ है? क्या ऐसा कोई संकेत प्राप्त होता है कि राष्ट्रपति ट्रंप का ‘Making America Great Again’ का दृष्टिकोण आगे कितना आकर्षण प्राप्त कर रहा है?

व्यापार घाटे पर मामूली असर

हम पिछले एक वर्ष के व्यापार प्रवाह के पैटर्न पर विचार करें कि क्या नए टैरिफ चीन पर अमेरिका की निर्भरता को कम करने में सफल हुए।

  • वर्ष 2018 में लगभग नौ माह तक जारी रहे व्यापार युद्ध के बीच अमेरिका का व्यापार घाटा चीन की तुलना में 419 बिलियन डॉलर से अधिक की रिकॉर्ड ऊँचाई पर पहुँच गया जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 12 प्रतिशत अधिक था और यह वर्ष 2010 के बाद की सर्वाधिक वृद्धि थी।
  • वर्ष 2018 के अंतिम पाँच माह में जब दोनों ही देशों द्वारा टैरिफ पेश किये गए थे, व्यापार घाटा 196 बिलियन डॉलर का था, जो वर्ष 2017 की इसी अवधि की तुलना में 15 प्रतिशत अधिक था। दूसरे शब्दों में टैरिफ ने व्यापार घाटे को कम नहीं किया।
  • वर्तमान वर्ष की पहली छमाही में अमेरिका के व्यापार घाटे में लगभग 10 प्रतिशत की कमी आई और जबकि चीन से आयात में 31 बिलियन डॉलर की गिरावट आई, चीन को होने वाले निर्यात में भी 12 बिलियन डॉलर की कमी आई। इस प्रकार, अमेरिका व्यापार युद्ध के प्रभाव से बच नहीं पाया।

आगे की राह

  • इसमें कोई संदेह नहीं कि टैरिफ के नवीनतम संस्करण से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान उठाना होगा क्योंकि चीन ने कृषि और कच्चे तेल को लक्षित किया है जो कि दो सबसे संवेदनशील क्षेत्र हैं। इन क्षेत्रों पर प्रदर्शित प्रभाव राष्ट्रपति ट्रंप पर राजनीतिक रूप से प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं क्योंकि इन क्षेत्रों से जुड़े लोग और कंपनियाँ राष्ट्रपति के प्रमुख वित्त प्रदाताओं में से हैं।
  • चूँकि टैरिफ के नए संस्करण में वस्त्र, टूथब्रश, जूते, खिलौने और वीडियो गेम जैसे उत्पादों को लक्षित किया गया है, इसलिये अमेरिका के उपभोक्ता वस्तुओं के बाज़ार पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ेगा।

निष्कर्ष

स्पष्ट है कि अमेरिकी प्रशासन इन वस्तुओं में से कुछ पर टैरिफ लगने के बाद मूल्य वृद्धि को लेकर चिंतित है और यही कारण है कि टैरिफ को क्रिसमस की खरीद के बाद तक के लिये स्थगित कर दिया गया है। तनाव में इस नवीनतम वृद्धि का इससे अधिक बुरा समय नहीं हो सकता था और यह वैश्विक अर्थव्यवस्था को वर्तमान में आर्थिक मंदी में धकेल सकता है जबकि अनुमान था कि इस मंदी का आगमन वर्ष 2020 के आरंभ में होगा।

प्रश्न: क्या आप इस बात से सहमत है कि ट्रंप प्रशासन द्वारा नए टैरिफों का अधिरोपण और चीन द्वारा इसकी प्रतिक्रिया में किये गए करारोपण विश्व को मंदी की ओर धकेल रहे हैं? अपने उत्तर के पक्ष में उचित तर्क प्रस्तुत कीजिये।

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