लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



एडिटोरियल

सामाजिक न्याय

मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की आवश्यकता

  • 10 Oct 2020
  • 15 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की आवश्यकता से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

मानसिक स्वास्थ्य जीवन की गुणवत्ता का मुख्य निर्धारक होने के साथ सामाजिक स्थिरता का भी आधार होता है। जिस समाज में मानसिक रोगियों की संख्या अधिक होती है वहाँ की व्यवस्था व विकास पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अभी हाल ही में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI) के महानिदेशक और नगालैंड राज्य के पूर्व राज्यपाल अश्विनी कुमार ने अवसाद से ग्रसित होने के कारण आत्महत्या कर ली। विगत कुछ वर्षों में मानसिक तनाव के कारण आत्महत्या या अन्य सामाजिक अपराधों की प्रवृत्ति में भी वृद्धि हुई है।

वैश्विक महामारी COVID-19 के दौरान इस समस्या में तीव्र वृद्धि देखने को मिली है। हाल ही में लैंसेट (Lancet)  द्वारा भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की गई, रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है कि वर्ष  201 7 तक भारत में 197.3 मिलियन लोग मानसिक विकारों से ग्रस्त थे, जो भारत की कुल जनसँख्या का 14.3 प्रतिशत था। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 तक भारत की लगभग 20 प्रतिशत आबादी मानसिक रोगों से पीड़ित होगी। 

इस आलेख में मानसिक स्वास्थ्य, भारत में मानसिक स्वास्थ्य की वर्तमान स्थिति, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ, समाज में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति अवधारणा तथा सरकार के प्रयासों का विश्लेषण किया जाएगा।

मानसिक स्वास्थ्य से तात्पर्य

  • स्वास्थ्य शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिकता की संपूर्ण स्थिति है। स्वास्थ्य की देखभाल हेतु मानसिक स्वस्थता अत्यंत आवश्यक है। मानसिक स्वास्थ्य का आशय भावनात्मक मानसिक तथा सामाजिक संपन्नता से लिया जाता है।
  • यह मनुष्य के सोचने, समझने, महसूस करने और कार्य करने की क्षमता को प्रभावित करता है। यह कई सामाजिक समस्याओं जैसे- बेरोज़गारी, गरीबी और नशाखोरी आदि को जन्म देती है।
  • मानसिक विकार में अवसाद (Depression) दुनिया भर में सबसे बड़ी समस्या है। 
  • कई शोधों से यह सिद्ध हो चुका है कि अवसाद हृदय संबंधी रोगों का मुख्य कारण है। 

भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति 

  • लैंसेट (Lancet)  द्वारा प्रकाशित भारत में मानसिक स्वास्थ्य स्थिति रिपोर्ट (Burden of Mental Health in India) के अनुसार, भारत में कुल बीमारियों में मानसिक विकारों की हिस्सेदारी विकलांगता समायोजित जीवन वर्ष (Disability Adjusted Life Years- DALY) के आधार पर वर्ष 1990 में 2.5 प्रतिशत थी तथा वर्ष 2017 में यह बढ़कर 4.7 प्रतिशत हो गई। 
  • यहाँ 1 DALY का आशय स्वस्थ जीवन में एक वर्ष की कमी से है। 
  • वर्ष 2018 में भारत में मानसिक विकार DALY के सभी मामलों में 33.8 प्रतिशत लोग अवसाद (Depression), 19 प्रतिशत लोग एंग्जायटी डिसऑर्डर (Anxiety Disorder), 10.8 प्रतिशत लोग इडियोपथिक डेवलपमेंटल इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी (Idiopathic Developmental Intellectual Disability) तथा 9.8 प्रतिशत  लोग सिज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) से ग्रसित थे।
  • इस अध्ययन में राज्यों को सामाजिक-जनांकिकीय सूचकांक (Socio-Demographic Index- SDI) के आधार पर तीन वर्गों- निम्न, मध्यम तथा उच्च में विभाजित किया गया।
  • SDI मापन में राज्य की प्रति व्यक्ति आय, औसत शिक्षा, 25 वर्ष से कम आयु वाली महिलाओं में प्रजनन दर को अपनाया गया है।

मानसिक विकार के कारण  

  • मानसिक विकार का एक महत्त्वपूर्ण कारक आनुवंशिक होता है। मनोविक्षिप्त या साइकोसिस, सिज़ोफ्रेनिया इत्यादि रोग उन लोगों में अधिक पाए जाते हैं, जिनके परिवार का कोई सदस्य इनसे पीड़ित होता है। ऐसे व्यक्ति के बच्चों में यह खतरा लगभग दोगुना हो जाता है।
  • मानसिक विकार की एक वजह शारीरिक परिवर्तन को भी माना जाता है। दरअसल किशोरावस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था, गर्भ-धारण जैसे शारीरिक परिवर्तन के कारण मानसिक विकार की संभावना बढ़ जाती है। 
  • मनोवैज्ञानिक कारणों को आज के समय में इसकी मुख्य वजह मान जा रहा है। उदाहरण के लिये  आपसी संबंधों में टकराहट, किसी निकटतम व्यक्ति की मृत्यु, सम्मान को ठेस, आर्थिक हानि, तलाक, परीक्षा या प्रेम में असफलता इत्यादि।
  • सहनशीलता का अभाव, बाल्यावस्था के अनुभव, खतरनाक किस्म के वीडियो गेम, तनावपूर्ण परिस्थितियाँ और इनका सामना करने की असमर्थता मानसिक विकार के लिये ज़िम्मेदार मानी जा रही हैं।

मानसिक स्वास्थ्य के प्रति समाज की अवधारणा 

  • वस्तुतः जिस समाज में हम रहते हैं वहाँ सार्वजनिक और निजी दोनों स्तरों पर मानसिक बीमारी (Mental Illness) हमेशा से एक उपेक्षित मुद्दा रही है।  इसके विषय में न केवल समाज का रवैया बेरूखा है बल्कि सरकार की दृष्टि में भी यह एक उपेक्षित विषय ही है।
  • सबसे चिंताजनक बात यह है कि मानसिक विकार से पीड़ित व्यक्ति को पागल समझा जाता है और उस व्यक्ति को समाज में उपेक्षा भरी नज़रों से देखा जाने लगता है।
  • मानसिक विकार से पीड़ित व्यक्ति समाज व परिवार के उपेक्षापूर्ण बर्ताव के कारण अकेलेपन का भी शिकार हो जाता है। अकेलेपन के कारण वह अपने विचारों को दूसरे के साथ साझा नहीं कर पाता है, ऐसी स्थिति में वह व्यक्ति या तो स्वयं को हानि पँहुचाता है या अन्य लोगों को।
  • यदि कोई व्यक्ति एक बार किसी मानसिक रोग से ग्रसित हो जाता है तो जीवन भर उसे इसी तमगे के साथ जीना पड़ता है, चाहे वह उस रोग से मुक्ति भले ही पा ले। आज भी भारत में इस प्रकार के लोगों के लिये समाज की मुख्य धारा से जुड़ना काफी चुनौतीपूर्ण होता है।

मानसिक विकार से संबंधित चुनौतियाँ

  • आँकड़े दर्शाते हैं कि भारत में महिलाओं की आत्महत्या दर पुरुषों से काफी अधिक है। जिसका मूल घरेलू हिंसा, छोटी उम्र में शादी, युवा मातृत्व और अन्य लोगों पर आर्थिक निर्भरता आदि को माना जाता है। महिलाएँ मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से पुरुषों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होती हैं। परंतु हमारे समाज में यह मुद्दा इतना सामान्य हो गया है कि लोगों द्वारा इस पर ध्यान ही नहीं दिया जाता।
  • भारत में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकारों से जुड़ी सामाजिक भ्रांतियाँ भी एक बड़ी चुनौती है। उदाहरण के लिये भारत में वर्ष 2017 तक आत्महत्या को अपराध माना जाता था और भारतीय दंड संहिता के तहत इसके लिये अधिकतम 1 वर्ष के कारावास का प्रावधान किया गया था। जबकि कई मनोवैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि अवसाद, तनाव और चिंता आत्महत्या के पीछे कुछ प्रमुख कारण हो सकते हैं।
  • ध्यातव्य है कि मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिये भारत के पास आवश्यक क्षमताओं की कमी है। आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2018 में भारत की विशाल जनसंख्या के लिये मात्र 5,147 मनोचिकित्सक और 2,035 से भी कम ​​मनोवैज्ञानिक मौजूद थे। 

बजटीय व्यय की कमी

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के मेंटल हेल्थ एटलस (Mental Health Atlas), 2017 के अनुसार, भारत में लगभग 25000 मानसिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता कार्य कर रहे हैं। भारत अपने स्वास्थ्य बजट का 1.3 प्रतिशत भाग ही मानसिक स्वास्थ्य पर व्यय करता है।
  • गौरतलब है कि राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Mental Health Survey - NMHS) 2015-16 के अनुसार, भारत के अधिकांश राज्यों में मानसिक स्वास्थ्य का कुल बजट 1 प्रतिशत से भी कम है।
  • इनमें से कुछ राज्य तो ऐसे हैं जिनमें मानसिक स्वास्थ्य संबंधी दिशा-निर्देशों में स्पष्टता और संपूर्णता की कमी होने के कारण सही दिशा में धन का उपयोग नहीं किया जा रहा है।  
  • वर्तमान में केवल गुजरात और केरल दो ही राज्य ऐसे हैं जहाँ मानसिक स्वास्थ्य के लिये अलग बजट की व्यवस्था की गई है। 
  • वस्तुतः राज्यों को मानसिक स्वास्थ्य के लिये पृथक बजट की व्यवस्था करने के संबंध में बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें मानसिक स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं का सटीक कार्यान्वयन, पर्याप्त मात्रा में बजट की उपलब्धता, समय-सीमा, ज़िम्मेदार एजेंसियों और परिणामों की निगरानी के लिये बेहतर प्रबंधन आदि बहुत से कारक शामिल हैं।

सरकार  द्वारा किये गए प्रयास 

  • वर्ष 1982 में मानसिक रोग से निपटने के लिये देश में मानसिक देखभाल के आधारभूत ढाँचे के विकास को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (National Mental Health Prograam-NMHP) की शुरुआत की गई।
  • कार्यक्रम की कार्यनीति में वर्ष 2003 में दो योजनाओं- राज्य मानसिक अस्पतालों का आधुनिकीकरण और सरकारी मेडिकल कालेजों/जनरल अस्पतालों में मनोचिकित्सा विंग को शामिल किया गया।
  • सरकार इस दिशा में आगे बढ़ते हुए वर्ष 2017 में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम (Mental Healthcare Act), 2017 लेकर आई ताकि मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को मज़बूत किया जा सके।
  • यह अधिनियम 7 अप्रैल, 2017 को पारित किया गया था तथा यह 7 जुलाई, 2018 से लागू हुआ था। अधिनियम ने 1987 में पारित मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 का स्थान लिया है।
  • सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य प्रोग्राम को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के गैर-संचारी रोगों (Non-Communicable Diseases - NCDs) के फ्लेक्सी पूल (flexi Pool) के अंतर्गत शामिल किया  है।
  • एन.सी.डी. के फ्लेक्सी पूल (flexi Pool) हेतु आवंटित राशि को पिछले दो वर्षों में तकरीबन तीन गुना बढ़ाया गया है। यानी अब राज्यों द्वारा केंद्र प्रायोजित योजनाओं के कोष का उपयोग विशेषज्ञों एवं अन्य सुविधाओं के भुगतान में किया जा सकता है।

आगे की राह 

  • स्वास्थ्य देखभाल राज्य सूची का विषय है और इसलिये इसकी चुनौतियों से निपटने के लिये राज्य और केंद्र के मध्य उचित समन्वय की आवश्यकता है।
  • वैश्विक महामारी COVID-19 के दौर में देश में मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं में लगातार वृद्धि देखी जा रही है। ऐसे में आवश्यक है कि इससे निपटने के लिये उपर्युक्त क्षमताओं का विकास किया जाए और संसाधनों में वृद्धि की जाए। 

प्रश्न-  भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति का वर्णन कीजिये। क्या सामाजिक रूढ़िवादिता और पूर्वाग्रह इस समस्या को और जटिल बना रहे हैं। परीक्षण कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2