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वैश्विक महामारी: भारत और खाड़ी देश

  • 10 Apr 2020
  • 15 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में वैश्विक महामारी के दौरान भारत और खाड़ी देशों के संबंधों पर  चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

इस समय खाड़ी क्षेत्र कई झंझावातों के केंद्र में है। जहाँ एक ओर COVID-19 महामारी के बढ़ते प्रसार ने मानवीय गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया है तो वहीँ दूसरी ओर कच्चे तेल के मूल्य में गिरावट से खाड़ी देशों पर दोहरी मार पड़ रही है। इस दोहरे खतरे को संतुलित करने के लिये समन्वित व सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता है। भारत के प्राचीन काल से ही खाड़ी देशों के साथ महत्त्वपूर्ण संबंध रहे हैं। खाड़ी देशों के साथ भारत के न केवल व्यापारिक संबंध रहे हैं, बल्कि सांस्कृतिक व राजनैतिक संबंध भी रहे हैं। वर्तमान में खाड़ी देशों में बड़ी संख्या में भारतीय लोग कार्य कर रहे हैं। चूँकि इस समय खाड़ी देश विभिन्न चुनौतियों से जूझ रहा है, इसलिये इन देशों में कार्यरत भारतीय लोगों को भी विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

इस प्रकार की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी भारत सरकार ने खाड़ी देशों के साथ सहयोग की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है। भारत अपनी ज़रूरत का 65 प्रतिशत गैस और कच्चा तेल खाड़ी देशों से ही प्राप्त करता है। खाड़ी क्षेत्र में 90 लाख प्रवासी भारतीय निवास करते है जो लगभग 40 बिलियन डॉलर की धनराशि भी प्रेषण के माध्यम से भारत को भेजते हैं।

इस आलेख में भारत व खाड़ी देशों के मध्य संबंधों की पृष्ठभूमि पर विमर्श करने के साथ ही विभिन्न चुनौतियों और खाड़ी देशों के प्रति भारत की विदेश नीति की समीक्षा करने का भी प्रयास किया जाएगा।   

खाड़ी देशों का इतिहास 

  • सामान्यतः जब खाड़ी देशों की बात की जाती है तो मुख्य रूप से कुवैत, ओमान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर और बहरीन को शामिल किया जाता है। ये 6 देश खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council-GCC) के संस्थापक सदस्य हैं।
  • इन सभी देशों की सीमा फारस की खाड़ी से मिलती है, इसलिये इन देशों को सामूहिक रूप से खाड़ी देश के रूप में जाना जाता है।
  • विदित है कि ईरान व ईराक की भी सीमा फारस की खाड़ी से मिलती है और खाड़ी देशों में इनकी गिनती होती है, परंतु दोनों ही देश सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक कारणों से खाड़ी सहयोग परिषद के सदस्य नहीं बन पाएँ हैं।

क्या है खाड़ी सहयोग परिषद? 

  • खाड़ी सहयोग परिषद अरब प्रायद्वीप में छह देशों का एक राजनीतिक और आर्थिक गठबंधन है जिसमें बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं।
  • वर्ष 1981 में स्थापित, GCC छह देशों के बीच आर्थिक, सुरक्षा, सांस्कृतिक और सामाजिक सहयोग को बढ़ावा देता है और सहयोग तथा क्षेत्रीय मामलों पर चर्चा करने के लिये प्रत्येक वर्ष एक शिखर सम्मेलन आयोजित करता है।
  • सुरक्षा विशेषज्ञों ने खाड़ी सहयोग परिषद को ‘अरब नाटो’ की संज्ञा दी है। 
  • खाड़ी सहयोग परिषद का मुख्यालय रियाद, सऊदी अरब में स्थित है।
  • खाड़ी सहयोग परिषद के कार्य संचालन की भाषा ‘अरबी’ है।
  • वर्ष 2019 में खाड़ी सहयोग परिषद का 40वाँ शिखर सम्मेलन संयुक्त अरब अमीरात में आयोजित किया गया था।

खाड़ी देशों की चुनौतियाँ 

  • वैश्विक लॉकडाउन के कारण हाइड्रोकार्बन की खपत में कमी आ गई है।
  • गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन के बाद कच्चे तेल के उपभोग में प्रतिदिन 28 मिलियन बैरल की गिरावट दर्ज़ की गई है।
  • कच्चे तेल की मांग में अत्यधिक गिरावट के कारण उत्पादन कम करने को लेकर तेल उत्पादक देशों के संगठन और रूस के मध्य हो रही वार्ता विफल हो गई, परिणामस्वरूप मांग में कमी व उत्पादन जस का तस बना रहने के कारण कच्चे तेल के मूल्य में अप्रत्याशित गिरावट हुई।
  • तेल उत्पादक देशों के संगठन और अंतर्राष्ट्रीय उर्जा एजेंसी के आकलन के अनुसार, वर्ष 2020 में दूरगामी आर्थिक और सामाजिक परिणामों के साथ विकासशील देशों के तेल और गैस राजस्व में 50 प्रतिशत से 85प्रतिशत की गिरावट आएगी।
  • वर्ष 2020 में सऊदी अरब का राजकोषीय घाटा 8 प्रतिशत से अधिक हो जाने की संभावना है
  • संयुक्त अरब अमीरात एक पर्यटन गंतव्य देश है, वैश्विक लॉकडाउन के परिणामस्वरूप यहाँ आने वाले पर्यटकों की संख्या में तीव्र गिरावट हुई है
  • वैश्विक महामारी COVID-19 के प्रसार के कारण खाड़ी देशों में आयोजित होने वाले हज़ व उमरा जैसे धार्मिक कार्यक्रमों को भी स्थगित किया जा सकता है
  • वैश्विक महामारी COVID-19 से ईरान व्यापक तौर पर प्रभावित हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण ईरान अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से सहायता भी नहीं प्राप्त कर पा रहा है।

तेल निर्यातक देशों के संगठन-ओपेक 

  • OPEC एक स्थायी, अंतर-सरकारी संगठन है, जिसका गठन 10-14 सितंबर, 1960 को आयोजित बगदाद सम्मेलन में ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेज़ुएला ने किया था।
  • इन पाँच संस्थापक सदस्यों के बाद इसमें कुछ अन्य सदस्यों को शामिल किया गया, ये देश हैं- क़तर (1961), इंडोनेशिया (1962), लीबिया (1962), संयुक्त अरब अमीरात (1967), अल्जीरिया (1969), नाइजीरिया (1971), इक्वाडोर (1973), अंगोला (2007), गैबन (1975), इक्वेटोरियल गिनी (2017) और कांगो (2018)
  • इक्वाडोर ने दिसंबर 1992 में अपनी सदस्यता त्याग दी थी, लेकिन अक्तूबर 2007 में वह पुनः OPEC में शामिल हो गया।
  • इंडोनेशिया ने जनवरी 2009 में अपनी सदस्यता त्याग दी। जनवरी 2016 में यह फिर से इसमें सक्रिय रूप से शामिल हुआ, लेकिन 30 नवंबर, 2016 को OPEC सम्मेलन की 171वीं बैठक में एक बार फिर इसने अपनी सदस्यता स्थगित करने का फैसला किया।
  • गैबन ने जनवरी 1995 में अपनी सदस्यता त्याग दी थी। हालाँकि, जुलाई 2016 में वह फिर से संगठन में शामिल हो गया।
  • कतर ने 1 जनवरी, 2019 को और इक्वाडोर ने 1 जनवरी, 2020 को अपनी सदस्यता त्याग दी थी। अतः वर्तमान में इस संगठन में सदस्य देशों की संख्या 13 है।

भारत के समक्ष चुनौतियाँ  

  • वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण कच्चे तेल की आपूर्ति बाधित हो सकती है तथा इसका सबसे बड़ा असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि भारत सबसे ज़्यादा कच्चे तेल का आयात सऊदी अरब से ही करता है।  
  • खाड़ी देशों में सबसे ज़्यादा भारतीय कामगार काम करते हैं। इन देशों में यह संख्या लगभग 90  लाख है। इन कामगारों के द्वारा बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भारत को भेजी जाती है। अत: इस संकट से प्रेषण पर असर पड़ सकता है। 
  • इस वैश्विक संकट से उभरी परिस्थिति में नए कूटनीतिक तालमेल बिठाने की ज़रूरत पड़ेगी।
  • इस महामारी के परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में खाड़ी देशों में रह रहे कामगार भारत वापस आ जाएँगे, जिससे इन लोगों को अर्थव्यवस्था में समायोजित करना एक बड़ी चुनौती होगी।
  • खाड़ी देशों की आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने पर वे बड़ी संख्या में भारतीय कामगारों को नौकरी से निकाल सकते हैं, जिससे उन देशों में निवास कर रहे लोगों की समक्ष जीवन का संकट उत्पन्न हो जाएगा।
  • ईरान इस वैश्विक महामारी से व्यापक तौर पर प्रभावित हुआ है, परिणामस्वरूप भारत द्वारा विकसित किये जा रहे चाबहार बंदरगाह के परिचालन में समस्या उत्पन्न होने के संभावना है।
  • इस समय चीन द्वारा ही COVID-19 महामारी पर नियंत्रण पाया जा सका है, ऐसे में चीन द्वारा अपनी सॉफ्ट पॉवर का प्रयोग करते हुए खाड़ी देशों को पहुँचाई गई सहायता उसे अपेक्षाकृत इन देशों के नज़दीक ला सकती है।

भारत के लिये खाड़ी देशों का महत्त्व 

  • वित्तीय वर्ष 2018-19 में भारत और खाड़ी देशों के बीच लगभग 162 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार हुआ है। यह एक वर्ष में भारत के द्वारा पूरे विश्व के साथ किये जाने वाले व्यापार का 20 प्रतिशत है।
  • लगभग 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस खाड़ी देशों से आयात  की जाती है।   
  • खाड़ी देशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय लगभग 40 बिलियन डॉलर की धनराशि भी प्रेषण के माध्यम से भारत भेजते हैं
  • सऊदी अरब भारत को हाइड्रोकार्बन आपूर्ति करने वाला इस क्षेत्र का सबसे प्रमुख देश है
  • भारत ने संयुक्त अरब अमीरात के साथ अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिये समझौता किया है
  • खाड़ी क्षेत्र हमारी विकास की अहम जरूरतों जैसे ऊर्जा संसाधन, कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिये निवेश के मौके और लाखों लोगों को नौकरी के भरपूर अवसर देता है।
  • जहाँ ईरान हमें अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरोप तक पहुँचने का रास्ता उपलब्ध कराता है, तो वहीँ ओमान हमें पश्चिम हिंद महासागर तक पहुँचने की राह दिखाता है।     

भारत के लिये भावी अवसर 

  • भारतीयों के लिये भले ही इस समय खाड़ी देशों में नौकरी के अवसर कम हो रहे हों या भारत सरकार को यहाँ  से विदेशी मुद्रा कम मिल रही हो, लेकिन इन देशों में अर्थव्यवस्था के बदलाव की प्रक्रिया भारत के लिये बड़ा मौका भी है। 
  • इन देशों ने दूसरे देशों में निवेश के लिये बड़े-बड़े फंड बनाए हैं भारत पहला काम तो यही कर सकता है कि बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये खाड़ी देशों से ज्यादा से ज्यादा निवेशकों को यहाँ आमंत्रित करे। 
  • विजन-2030 के अंतर्गत सऊदी अरब की एक बड़ा वैश्विक निवेशक बनने की भी योजना है भारत अगर सऊदी अरब के इस लक्ष्य में सहयोगी बनता है और भारी निवेश हासिल कर पाता है तो इससे देश के बंदरगाहों, सड़कों और रेल नेटवर्क का कायाकल्प हो सकता है
  • सऊदी अरब व रूस के बीच वार्ता के विफल होने से कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट बनी हुई है, इनके निकट भविष्य में ऊपर जाने के आसार भी नहीं लग रहे हैं यह ऐसा मौका है जब भारत अपना चालू घाटा कम कर सकता है और इससे जो बचत होगी उसे आर्थिक गतिविधियों को तेज़ करने में लगाया जा सकता है

आगे की राह  

  • भारत को खाड़ी देशों के साथ तालमेल के लिये नए चालकों को खोजने की आवश्यकता है। यह खोज स्वास्थ्य सेवा में सहयोग के साथ शुरू हो सकती है और धीरे-धीरे दवा अनुसंधान और उत्पादन, पेट्रोकेमिकल, भारत में बुनियादी ढाँचे के निर्माण और तीसरे देशों में कृषि, शिक्षा और कौशल के साथ-साथ अरब सागर में निर्मित द्विपक्षीय मुक्त क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों की ओर बढ़ सकती है।
  • अंततः यदि भारत, खाड़ी सहयोग परिषद के मुक्त व्यापार क्षेत्र में शामिल हो जाता है, तो निश्चित ही ऐसे झटकों से बचने के लिये भारत और खाड़ी देशों के आर्थिक संबंधों में पर्याप्त विविधता लाई जा सकती है। 
  • भारत को इस संकट से बाहर निकलने के बाद अपनी ‘एक्ट वेस्ट नीति’ को विस्तार देना चाहिये   

प्रश्न- ‘वैश्विक महामारी के इस दौर में भारत व खाड़ी देशों के बीच संबंध चुनौतीपूर्ण हो गए हैं।’ कथन का मूल्यांकन कीजिये।

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