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ई-कचरा संकट से निपटने हेतु दुनिया की पहली माइक्रोफैक्ट्री

  • 11 Apr 2018
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?
हाल ही में ऑस्ट्रेलिया स्थित भारतीय मूल की वैज्ञानिक वीना सहजवाला ने दुनिया की पहली ऐसी माइक्रोफैक्ट्री बनाई है जो स्मार्टफोन, लैपटॉप आदि के ई-कचरे को पुनरुपयोगी मूल्यवान वस्तुओं में परिवर्तित  कर सकती है। इस खोज के बाद दिनों-दिन बढ़ते जा रहे ई कचरे के ढेरों के निपटान में सहायता मिल सकती है। 

क्या होती है माइक्रोफैक्ट्री?

  • माइक्रोफैक्ट्री एक या कई छोटी-छोटी मशीनों और उपकरणों की श्रृंखला होती है जो पेटेंटयुक्त तकनीकों के द्वारा अपशिष्ट उत्पादों को नए और उपयोग में लाए जा सकने वाले संसाधनों में परिवर्तित कर सकती है।

प्रमुख बिंदु 

  • इसे न्यू-साउथ वेल्स विश्वविद्यालय में विकसित किया गया है। 
  • यह माइक्रोफैक्ट्री विभिन्न प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं (consumer goods) से संबंधित कचरे जैसे ग्लास, प्लास्टिक, लकड़ी आदि को वाणिज्यिक सामग्री और उत्पादों में परिवर्तित कर सकती है।
  • उदहारणस्वरूप इससे कंप्यूटर सर्किट बोर्डों को तांबे और टिन जैसी धातुओं में परिवर्तित किया जा सकता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को ऐसी माइक्रो सामग्रियों में परिवर्तित किया जा सकता है जिनका 3डी प्रिंटिंग  हेतु औद्योगिक स्तरीय सिरेमिक और प्लास्टिक फिलामेंट्स में प्रयोग किया जाता है।
  • इस तरह की माइक्रोफैक्ट्री को 50 वर्ग मीटर के छोटे से क्षेत्र में स्थापित किया जा सकता है। अतः इन्हें कचरे के ढेरों के समीप आसानी से स्थापित किया जा सकता है।

प्रक्रिया

  • एक माइक्रोफैक्ट्री जो बेकार कंप्यूटर, मोबाइल फोन, प्रिंटर आदि का पुनर्चक्रीकरण करती है, वह इस हेतु बहुत सारे छोटे मॉड्यूलों का उपयोग करती है जो एक छोटी सी जगह में आसानी से फिट हो जाते हैं।
  • सबसे पहले बेकार उपकरणों को विघटन हेतु मॉड्यूल में रखा जाता है।
  • अगले स्तर पर एक अन्य मॉड्यूल के अंतर्गत एक विशेष रोबोट द्वारा उपकरण के उपयोगी हिस्सों की पहचान की जाती है।
  • अगले चरण में एक अन्य मॉड्यूल जो एक छोटी भट्टी (furnace) की सहायता से नियंत्रित तापमान प्रक्रिया द्वारा उपकरण के हिस्सों को मूल्यवान सामग्रियों (valuable materials) में परिवर्तित कर देता है। 

क्या होता है ई-कचरा?

  • देश में जैसे-जैसे डिजिटाइज़ेशन बढ़ा है, उसी अनुपात में ई-कचरा भी बढ़ा है। इसकी उत्पत्ति के प्रमुख कारकों में तकनीक तथा मनुष्य की जीवनशैली में आने वाले बदलाव शामिल हैं। 
  • कंप्यूटर तथा उससे संबंधित अन्य उपकरण तथा टी.वी., वाशिंग मशीन तथा फ्रिज़ जैसे घरेलू उपकरण (इन्हें White Goods कहा जाता है) एवं कैमरे, मोबाइल फोन तथा उससे जुड़े अन्य उत्पाद जब चलन/उपयोग से बाहर हो जाते हैं तो इन्हें संयुक्त रूप से ई-कचरे की संज्ञा दी जाती है।
  • ट्यूबलाइट, बल्ब, सीएफएल जैसी चीजें जिन्हें  हम रोज़मर्रा के इस्तेमाल में लाते हैं, उनमें भी पारे जैसे कई प्रकार के विषैले पदार्थ पाए जाते हैं जो इनके बेकार हो जाने पर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। 
  • इस कचरे के साथ स्वास्थ्य और प्रदूषण संबंधी चुनौतियाँ तो जुड़ी हैं ही, साथ ही चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि इसने घरेलू उद्योग का स्वरूप ले लिया है और घरों में इसके निस्तारण का काम बड़े पैमाने पर होने लगा है।
  • चीन में प्रतिवर्ष लगभग 61 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न होता है और अमेरिका में लगभग 72 लाख टन तथा पूरी दुनिया में कुल 488 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न हो रहा है।

ई-कचरे के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव

  • ई-कचरे में शामिल विषैले तत्त्व तथा उनके निस्तारण के असुरक्षित तौर-तरीकों से मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और तरह-तरह की बीमारियाँ होती हैं। 
  • माना जाता है कि एक कंप्यूटर के निर्माण में 51 प्रकार के ऐसे संघटक होते हैं, जिन्हें ज़हरीला माना जा सकता है और जो पर्यावरण तथा मानव स्वास्थ्य के लिये घातक होते हैं।
  • इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों को बनाने में काम आने वाली सामग्रियों में ज़्यादातर कैडमियम, निकेल, क्रोमियम, एंटीमोनी, आर्सेनिक, बेरिलियम और पारे का इस्तेमाल किया जाता है। ये सभी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिये घातक हैं।
  • एक कंप्यूटर में लगभग 3.8 पौंड सीसा, फास्फोरस, कैडमियम व मरकरी जैसे घातक तत्त्व होते हैं, जो जलाए जाने पर सीधे वातावरण में घुलते हैं।
  • बच्चों के आधुनिक खिलौनों में जो बैटरी इस्तेमाल होती है, वह घातक रसायनों (विषैले तत्त्वों) के सम्मिश्रण से तैयार की जाती है और तोड़ने पर पर्यावरण को बुरी तरह प्रदूषित करती है।
  • जब इस कचरे का पुनःचक्रण (Recycle) किया जाता है यानी उसे अलग किया जाता है तो ये सभी पदार्थ बाहर निकलते हैं। ऐसे में इस काम में लगे लोग इससे बुरी तरह प्रभावित होते हैं।
  • जब यह ई-कचरा सेनेटरी लैंडफिल में जाकर अन्य प्रकार के कचरे के साथ मिलता है तो इसके और भी हानिकारक प्रभाव होते हैं।
  • ई-कचरे के पुनर्चक्रण के दौरान निकलने वाले घातक पदार्थों में पारे और प्लास्टिक का निस्तारण करना बेहद कठिन होता है। ऐसे में देश में प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 10 किलो प्लास्टिक का उपयोग एक बड़ी चुनौती है।
  • ई-कचरे में से तांबा, सीसा, चांदी तथा सोना जैसी कीमती धातुएँ भी निकलती हैं और इन्हें निकालने का काम समाज के निचले तबके के लोग करते हैं, जो इससे उत्पन्न होने वाले विषैले तत्त्वों से पूर्णतः अनजान होते हैं। सीसे की चपेट में आकर दुनिया भर में लाखों लोग प्रतिवर्ष जान से हाथ धो बैठते हैं।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, ई-कचरे के निस्तारण की प्रक्रिया में इसे तोड़ने के काम में खतरा अपेक्षाकृत कम है, लेकिन जब इसे पुनःचक्रित किया जाता है तो जलाने और एसिड आदि का उपयोग होने के कारण खतरा कई गुना बढ़ जाता है। इसे जलाने के दौरान ज़हरीला धुआँ निकलता है, जो कि काफी घातक होता है।
  • पुनर्चक्रण की प्रक्रिया के दौरान काफी चीज़ें तो यह काम करने वाली कंपनियाँ ले जाती हैं, लेकिन कुछ चीज़ें नगर निगम के कचरे में चली जाती हैं, जो हवा, मिट्टी और भूमिगत जल में मिलकर बेहद घातक धुएँ और धूल के कारण फेफड़े व किडनी दोनों को नुकसान पहुँचा सकती हैं। 
  • इसके अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड तथा क्लोरो-फ्लोरो कार्बन भी पुनःचक्रण की प्रक्रिया जनित होती हैं, जो वायुमंडल व ओज़ोन परत के लिये हानिकारक हैं।
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