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कृषि

शहरी क्षेत्रों में टिड्डियों का आगमन

  • 27 May 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

टिड्डी, टिड्डी चेतावनी संगठन

मेन्स के लिये:

शहरी क्षेत्रों में टिड्डियों के आगमन से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

फसलों को बुरी तरह प्रभावित करने वाली टिड्डियों का पिछले कुछ दिनों से राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र (विदर्भ क्षेत्र) के शहरी क्षेत्रों में देखा जाना चिंता का विषय है।

प्रमुख बिंदु:

  • शहरी क्षेत्रों में टिड्डियों का आगमन:
  • दरअसल 11 अप्रैल को भारत-पाकिस्तान सीमा के आस-पास के क्षेत्रों में टिड्डियों को पहली बार देखा गया था।
  • मई के शुरूआती दिनों में ही पाकिस्तान से होते हुए टिड्डियों का आगमन राजस्थान की तरफ होने लगा था
  • मानसून से पहले आगमन होने की वज़ह से इनके मार्गों में सूखाग्रस्त क्षेत्र जहाँ भोजन व आश्रय न मिलने के कारण ये टिड्डियाँ हरी वनस्पति की तलाश में राजस्थान की तरफ बढ़ती गई। 
  • संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation-FAO) के अनुसार, टिड्डियाँ भोजन की तलाश हेतु शहरी क्षेत्रों में प्रवेश कर रहीं हैं।

टिड्डी (Locusts):

  • मुख्यतः टिड्डी एक प्रकार के उष्णकटिबंधीय कीड़े होते हैं जिनके पास उड़ने की अतुलनीय क्षमता होती है जो विभिन्न प्रकार की फसलों को नुकसान पहुँचाती हैं। 
  • टिड्डियों की प्रजाति में रेगिस्तानी टिड्डियाँ सबसे खतरनाक और विनाशकारी मानी जाती हैं।
  • सामान्य तौर पर ये प्रतिदिन 150 किलोमीटर तक उड़ सकती हैं। साथ ही 40-80 मिलियन टिड्डियाँ 1 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में समायोजित हो सकती हैं।

टिड्डियों के पूर्वागमन के कारण:

  • टिड्डियों के पूर्वागमन का प्रमुख कारण मई और अक्तूबर 2018 में आए मेकुनु और लुबान नामक चक्रवाती तूफान हैं, जिनके कारण दक्षिणी अरब प्रायद्वीप के बड़े रेगिस्तानी इलाके झीलों में तब्दील हो गए थे। अतः इस घटना के कारण भारी मात्रा में टिड्डियों का प्रजनन हुआ था।
  • नवंबर 2019 में पूर्वी अफ्रीका में टिड्डियों ने भारी मात्रा में फसलों को नुकसान पहुँचाया था साथ ही पूर्वी अफ्रीका में भारी वर्षा होने कारण इनकी जनसंख्या में वृद्धि हुई तत्पश्चात ये दक्षिणी ईरान और पाकिस्तान की तरफ चलती गई।

टिड्डियों का भारत में प्रभाव:

  • वर्तमान में फसल के नुकसान होने की संभावना कम है क्योंकि किसानों ने अपनी रबी की फसल की कटाई पहले ही कर ली है। लेकिन महाराष्ट्र में टिड्डियों की बढ़ती जनसंख्या को लेकर नारंगी उत्पादक काफी चिंतित हैं।
  • टिड्डी चेतावनी संगठन (Locust Warning Organization-LWO) के अनुसार, भारत में बड़ी समस्या तब होगी जब टिड्डियों की प्रजनन संख्या में वृद्धि होगी।
  • दरअसल एक मादा टिड्डी 3 महीने के जीवन चक्र के दौरान 80-90 अंडे देती है। साथ ही इनके प्रजनन में बाधा उत्पन्न न होने की स्थिति में एक समूह प्रति वर्ग किलोमीटर में 40-80 मिलियन टिड्डियों की संख्या हो सकती हैं।

टिड्डियों से बचाव हेतु किये गए प्रयास:

  • टिड्डियों से बचाव हेतु वृक्षों पर कीटनाशक दवाओं का छिडकाव किया जा रहा है।
  • राजस्थान में 21,675 हेक्टेयर में कीटनाशक दवाओं का छिडकाव किया गया है।
  • भारत द्वारा ब्रिटेन को 60 विशेष कीटनाशक स्प्रेयर (मशीन) का ऑर्डर दिया गया है।
  • ड्रोन से भी कीटनाशक दवाओं का छिडकाव किया जा रहा है।

भारत में टिड्डियाँ:

  • भारत में टिड्डियों की निम्निखित चार प्रजातियाँ पाई जाती हैं:- रेगिस्तानी टिड्डी, प्रवासी टिड्डी, बॉम्बे टिड्डी, ट्री टिड्डी।
  • आमतौर पर जुलाई-अक्तूबर के महीनों में इन्हें आसानी से देखा जा सकता है क्योंकि ये गर्मी और बारिश के मौसम में ही सक्रिय होती हैं।
  • वर्ष 1993 में राजस्थान में टिड्डियों ने सबसे ज्यादा फसलों को नुकसान पहुँचाया था।

टिड्डी चेतावनी संगठन

(Locust Warning Organization-LWO):

  • कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture & Farmers Welfare) के वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय (Directorate of Plant Protection, Quarantine & Storage) के अधीन आने वाला टिड्डी चेतावनी संगठन मुख्य रूप से रेगिस्तानी क्षेत्रों राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में टिड्डियों की निगरानी, ​​सर्वेक्षण और नियंत्रण के लिये ज़िम्मेदार है।
  • इसका मुख्यालय फरीदाबाद में स्थित है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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