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डेली न्यूज़

जैव विविधता और पर्यावरण

भारत और प्लास्टिक कचरा

  • 05 Sep 2019
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने संबोधन में 2 अक्तूबर (गांधी जयंती) से शुरू हो रहे एकल उपयोग वाली प्लास्टिक (Single use plastic) को प्रचलन से हटाने के कार्यक्रम के लिये आंदोलन का आह्वान किया है।

भारत की स्थिति

  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (PWM) नियम, 2016 की अधिसूचना जारी करने और दो साल बाद किये गए संशोधन के बावजूद अधिकांश शहर और कस्बे इसके प्रावधानों को लागू करने के लिये तैयार नहीं हैं।
  • बड़े शहरों के नगर निगम कचरे के बोझ से दबे हुए हैं और पुनर्नवीकरण योग्य व गैर-पुनर्नवीकरण योग्य कचरे के संग्रह तथा प्रसंस्करण के लिये अन्य अपशिष्ट आदि के पृथककरण में विफल रहे हैं।
  • यह एक बढ़ता हुआ खतरा है। फिक्की (FICCI) की रिपोर्ट के अनुसार, प्लास्टिक की प्रति व्यक्ति खपत वर्ष 2014-15 के 11 किलोग्राम से बढ़कर वर्ष 2022 तक 20 किलोग्राम हो जाने का अनुमान है, जबकि एकल उपयोग पैकेजिंग की रिकवरी दर लगभग 43% ही है।
  • वर्ष 2018 में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम में संशोधन किया गया था जिसके तहत उत्पादकों को राज्यों के शहरी विकास विभागों के साथ साझेदारी में कचरे की रिकवरी के लिये छह माह की समय-सीमा निर्धारित की गई थी। उल्लेखनीय है कि इस योजना में भी काफी कम प्रगति हुई।
  • उचित औद्योगिक प्रक्रिया के उद्देश्य से पुनर्चक्रण को सुविधाजनक बनाने के लिये प्लास्टिक को संख्यात्मक रूप में (जैसे PET के लिये 1, निम्न घनत्व वाले पॉलीइथीलीन के लिये 4, पॉलीप्रोपीलीन के 5 आदि) भी चिह्नित नहीं किया गया।
  • गौरतलब है कि पुनर्चक्रण गैर- पुनर्चक्रण की मात्रा को कम करता है, जिसे सीमेंट भट्टों में सह-प्रसंस्करण, प्लाज़्मा पाइरोलाइसिस या भूमि-भराव जैसे तरीके अपनाकर किया जाना चाहिये।
  • इस वर्ष केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने 52 कंपनियों को नोटिस जारी कर उनके विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended producer responsibility) संबधी अपने दायित्वों को पूरा करने को कहा है।

उर्वरक योग्य या जैवनिम्नीकृत प्लास्टिक की व्यवहार्यता

  • हालाँकि पेरे हुए गन्ने की खोई, मक्के का स्टार्च और अनाज के आटे आदि विभिन्न सामग्रियों से बने खाद बनने योग्य, (Compostable) जैवनिम्नीकृत या खाद्य प्लास्टिक (Edible Plastic) को प्लास्टिक के विकल्प के रूप प्रोत्साहित किया जा रहा है लेकिन वर्तमान में इनके समक्ष मानदंड एवं लागत संबंधी सीमाएँ उपस्थित हैं।
  • कुछ जैवनिम्नीकृत पैकेजिंग सामग्री को तोड़ने के लिये विशिष्ट सूक्ष्मजीवों की आवश्यकता होती है, जबकि खाद या उर्वरक बनने योग्य (Compostable) कप और प्लेटें मक्के के स्टार्च से उत्पन्न बायोमास पॉलीलेक्टिक अम्ल (Polylactic Acid) से बने होते हैं जिसे खाद में बदलने के लिये उचित औद्योगिक प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
  • हालाँकि आलू और मक्के के स्टार्च से अलग प्रक्रिया से बनाए गए उत्पादों ने सामान्य परिस्थिति में भी बेहतर प्रदर्शन किया है।
  • उल्लेखनीय है कि समुद्री शैवाल भी खाद्य कंटेनर बनाने के लिये एक विकल्प के रूप में उभर रहा है।
  • भारत में पैकेजिंग उत्पादकों के दावों को सत्यापित करने हेतु मज़बूत परीक्षण और प्रमाणन के अभाव में नकली जैवनिम्नीकृत एवं खाद बनने योग्य (Compostable) प्लास्टिक बाज़ार में प्रवेश कर रहा है।
  • CPCB के अनुसार, इस वर्ष जनवरी में 12 कंपनियाँ थीं, जो बिना किसी प्रमाणन के खाद बनने योग्य (Compostable) चिह्न के साथ बाज़ार में प्रचलित थीं।

आगे की राह

  • एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाने से विकल्प के रूप में विपणन की गई सामग्री को प्रमाणित करने के लिये और उन्हें जैवनिम्नीकृत करने या खाद बनाने के लिये ज़रूरी विशिष्ट प्रक्रिया के लिये एक व्यापक तंत्र का निर्माण होगा।
  • प्लास्टिक कचरे के खिलाफ आंदोलन में मल्टी-लेयर पैकेजिंग, ब्रेड बैग, फूड रैप (Food Wrap) और प्रोटेक्टिव पैकेजिंग, ब्रेड बैग, फूड रैप (Food Wrap) और प्रोटेक्टिव पैकेजिंग जैसे एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के उपभोग में कमी को प्राथमिकता देना होगा।
  • इस अभियान के अन्य पक्षों में प्लेटों, कटलरी और कपों के लिये प्रमाणित जैवनिम्नीकृत और कम्पोस्टेबल विकल्पों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
  • इसके साथ-साथ कचरे का कठोर अलगाव और पुनर्चक्रण को भी बढ़ाया जाना चाहिये जिसमें शहर के नगरपालिका अधिकारी की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी।
  • कानून के तहत निर्माताओं को अपने विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility-EPR) का गंभीरता से पालन करना चाहिये।
  • उद्योगों को प्रशासन की मदद से संग्रहण एवं पुनर्चक्रण की सुविधा के अलावा नवाचार एवं नई सामग्रियों पर भी ध्यान देना चाहिये।
  • उल्लेखनीय है कि भारत में पैकेजिंग बाज़ार वर्ष 2015 के 31 बिलियन डॉलर की तुलना में बढ़कर वर्ष 2020 तक 72.6 बिलियन डॉलर पहुँचने का अनुमान है।
  • अत: उत्पादकों पर सभी प्रकार के प्लास्टिक के संग्रह, पुनर्चक्रण और प्रसंस्करण को कारगर बनाने के लिये दबाव बढ़ाने की आवश्यकता है।
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