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डेली न्यूज़

जैव विविधता और पर्यावरण

जैव-विविधता के संरक्षण के लिये राजस्थान में आर्द्रभूमियों की पहचान

  • 18 Sep 2020
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये 

आर्द्रभूमि, रामसर सम्मेलन, सांभर झील, केवलादेव राष्ट्र्रीय उद्यान, आर्द्रभूमियाँ (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2019, सुंदरबन,  प्रोविज़निंग सेवाएँ

मेन्स के लिये 

राजस्थान में आर्द्रभूमियाँ, आर्द्रभूमि का उपयोग एवं महत्त्व 

चर्चा में क्यों? 

आर्द्रभूमियों (Wetlands) की अवसादों और पोषक तत्त्वों  के भंडारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए राजस्थान में आर्द्रभूमियों की पहचान की जा रही है। इसके लिये आर्द्रभूमियों की उपयोगिता सुनिश्चित करने, उन पर अतिक्रमण रोकने और स्थानीय अधिकारियों को आर्द्रभूमियों को बनाए रखने के लिये सक्षम बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

  • राज्य में 6 आर्द्रभूमियों की पहले से ही पहचान की जा चुकी है। 52 और आर्द्रभूमियों को समयबद्व रूप से विकसित करने के लिये चिन्हित किया जा चुका है। पर्यावरण और वन राज्य मंत्री के अनुसार, जलीय क्षेत्रों में वानस्पतिक वृद्धि और जैव विविधता के संरक्षण के लिये आर्द्रभूमियों के विकास को बढ़ावा दिया जाएगा।
  • किसी भी प्रकार के कचरे को आर्द्रभूमि में फेंकने पर रोक लगाने के साथ ही जल संरक्षण के लिये प्रभावी कदम उठाए जाएंगे। विश्व प्रसिद्ध सांभर झील में अवैध नमक खनन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी, जहाँ पिछले वर्ष बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों की मृत्यु हो गई थी।
  • ज़िला स्तर पर पर्यावरण समितियाँ आर्द्रभूमियों और जल निकायों के संरक्षण के लिये कार्य करेंगी।
  • राज्य में अद्वितीय आर्द्रभूमि पारिस्थितिक तंत्र के रूप में विद्यमान मीठे और नमकीन पानी की झीलों को ‘आर्द्रभूमियाँ (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2019’ के सख्त कार्यान्वयन के साथ संरक्षित किया जाएगा। 

राजस्थान में आर्द्रभूमियाँ 

रामसर सम्मेलन के अंतर्गत राजस्थान की दो आर्द्रभूमियाँ सम्मिलित हैं- 

  • सांभर झील: 
    • जयपुर से 80 किमी और अजमेर से 65 किमी की दूरी पर अवस्थित खारे पानी की सांभर झील में सामोद, खारी, खंडेला, मेंढा, और रूपनगढ़ नदियाँ आकर मिलती हैं। 
    • झील के अंतर्गत सम्मिलत क्षेत्रफल मौसम के अनुसार परिवर्तित होता रहता है, जो मोटे तौर पर 190 और 230 वर्ग किमी. के मध्य है। झील की गहराई भी मौसम से प्रभावित होती है। ग्रीष्मकाल के दौरान 60 सेमी. तथा वर्षाकाल के दौरान इसकी गहराई 3 मीटर तक हो जाती है। 
    • शीत ऋतु के दौरान फ्लेमिंगोज़ पक्षियों का यहाँ जमघट लगता है। एशिया के उत्तरी और मध्य भाग से प्रवासी पक्षी यहाँ आते हैं। शैवालों और तापमान की अधिकता इन पक्षियों को प्रतिवर्ष भारी संख्या में आकर्षित करती है। 
    • बरेली के भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार, सांभर झील में प्रवासी पक्षियों की सामूहिक मृत्यु एवियन बॉटुलिज़्म के कारण होती है, जो बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है। यह बीमारी इन प्रवासी पक्षियों के तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है।
  • केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान: 
    • सघन जनसंख्या वाले राजस्थान के पूर्वी भाग में स्थित केवलादेव आर्द्रभूमि 10 भिन्न आकार की कृत्रिम, मौसमी लैगून्स का मिश्रण है। पूर्व में इसे वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित किया गया था, लेकिन ततपश्चात् इसे राष्ट्रीय उद्यान में परिवर्तित कर दिया गया।   
    • पानी की कमी तथा चरागाह के अनियंत्रित उपयोग के कारण इसे रामसर सम्मलेन के अंतर्गत मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड में सम्मिलित किया गया है। मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड में अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की उन आर्द्रभूमियों को सूचीबद्ध किया जाता है जिनमें मानवीय अतिक्रमण और पर्यावरणीय प्रदूषण के कारण संकट उत्पन्न हो गया है।  
    • यह पक्षी विहार विभिन्न पक्षियों की प्रजातियों और उनकी संख्या के कारण प्रसिद्ध है।  यहाँ अब तक पक्षियों की लगभग 353 प्रजातियों की पहचान की चुकी है। 

आर्द्रभूमि पारितंत्र  के बारे में 

  • रामसर कन्वेंशन के अनुसार, दलदल (Marsh), पंकभूमि (Fen), पीटभूमि या जल, कृत्रिम या प्राकृतिक, स्थायी या अस्थायी, स्थिर जल या गतिमान जल तथा ताजा, खारा व लवणयुक्त जल क्षेत्रों को आर्द्रभूमि कहते हैं। 
  • इसके अंतर्गत सागरीय क्षेत्रों को भी सम्मिलित किया जाता है। जहाँ निम्न ज्वार के समय भी गहराई 6 मीटर से अधिक नहीं होती है।

आर्द्रभूमि का उपयोग एवं महत्त्व 

  • प्रोविज़निंग सेवाएँ: इसके अंतर्गत आर्द्रभूमि से उपलब्ध उत्पादों को सम्मिलित किया जाता है, जैसे- भोजन, स्वच्छ पानी, ईंधन एवं फाइबर, आनुवंशिक संसाधन, बायो-केमिकल उत्पाद आदि।
  • विनियमन सेवाएँ: आर्द्रभूमि पारितंत्र को विनियमित करने से कई लाभ होते हैं, जैसे- जलवायु नियमन, हाइड्रोलॉजिकल रिज़ीम्स, मृदा अपरदन से सुरक्षा, प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा, प्रदूषण नियंत्रण आदि। 
  • सांस्कृतिक सेवाएँ: इसके अंतर्गत आध्यात्मिकता एवं प्रेरणा, मनोरंजन, सौंदर्य, शैक्षिक, परंपरागत जीवन निर्वाह एवं ज्ञान आदि सम्मिलित हैं।
  • सहायक सेवाएँ: ये दूसरे पारितंत्र के लिये आवश्यक सेवाएँ होती हैं, जैसे- मृदा निर्माण, पोषक तत्वों का चक्रण, प्राथमिक उत्पादन, परागण, जैव विविधता एवं खतरे में पड़ी जातियों के लिये आवास आदि 

आर्द्रभूमियों पर रामसर सम्मेलन 

  • वर्ष 1971 में आर्द्रभूमियों के संरक्षण के लिये रामसर (ईरान) में एक अंतरसरकारी और बहुउद्देशीय सम्मेलन हुआ, जिसमें आर्द्रभूमियों व उनके संसाधनों के संरक्षण और युक्तियुक्त उपयोग के लिये राष्ट्रीय कार्यवाही और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की रूपरेखा तय की गई।
  • रामसर सम्मेलन एकमात्र ऐसा सम्मेलन है जो किसी विशेष पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित वैश्विक वातावरणीय संधि है। वर्ष 1975 में लागू इस समझौते में भारत वर्ष 1982 में शामिल हुआ।
  • इसमें आर्द्रभूमियों को अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों की सूची में नामांकित करना, जहाँ तक संभव हो सके आर्द्रभूमियों का उनके क्षेत्रों में बुद्धिमानीपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग  को बढ़ावा देना और आर्द्रभूमि रिज़र्व का निर्माण करना आदि सम्मिलित हैं।
  • विश्व आर्द्रभूमि दिवस प्रत्येक वर्ष 2 फरवरी को मनाया जाता है। वर्ष 1971 में इसी दिन रामसर कन्वेंशन को अपनाया गया था। हालांकि पहला विश्व आर्द्रभूमि दिवस वर्ष 1997 में मनाया गया था।

भारत में आर्द्रभूमि का वितरण 

  • भारत का आर्द्रभूमि के अंतर्गत क्षेत्रफल भारत के भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 4.7% है। भारत में आंतरिक आर्द्रभूमि का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल तटीय आर्द्रभूमि के भौगोलिक क्षेत्रफल से अधिक है।
  • सर्वाधिक आर्द्रभूमि क्षेत्रफल वाला राज्य गुजरात है। भारत वर्ष 1982 में जब रामसर समझौते का सदस्य बना, उस समय केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान तथा चिल्का झील को आर्द्रभूमि  सूची में सम्मिलित किया गया था। जनवरी, 2019 में सुंदरबन क्षेत्र को 27वें आर्द्रभूमि क्षेत्र के रूप में शामिल किया गया। जनवरी, 2020 में 10 और आर्द्रभूमियों को सम्मिलित करने से वर्तमान में रामसर सम्मेलन के अंतर्गत आर्द्रभूमियों की कुल संख्या 37 हो गई हैं। 

आर्द्रभूमियाँ (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2019 

आर्द्रभूमियाँ (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2019 को लागू करने के लिये पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने दिशा-निर्देश अधिसूचित किये हैं। ये नियम आर्द्रभूमियों के संरक्षण के लिये  विभिन्न निकायों का गठन और उनकी शक्तियों और कार्यों को परिभाषित करते हैं।

  • ये नियम आर्द्रभूमियों के भीतर उद्योगों की स्थापना/विस्तार और कचरे के निपटान पर रोक लगाते हैं। 
  • प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित प्रदेश को एक प्राधिकरण की स्थापना करनी होगी जो अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आर्द्रभूमि के संरक्षण और इनके बुद्धिमानीपूर्ण उपयोग के लिये रणनीतियों को परिभाषित करेगा। प्राधिकरण इन नियमों के प्रकाशन की तारीख से तीन माह के भीतर राज्य/केंद्रशासित प्रदेश की सभी आर्द्रभूमियों की एक सूची तैयार करेगा। 
  • मंत्रालय ने इन आर्द्रभूमि नियमों के कार्यान्वयन के बारे में जानकारी साझा करने के लिये एक वेब पोर्टल का भी निर्माण किया है।

स्रोत: द हिंदू

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