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अल नीनो के कारण बढ़ सकता है सर्दियों का तापमान

  • 04 Dec 2018
  • 5 min read

संदर्भ


हाल ही में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) ने अनुमान लगाया है कि प्रशांत महासागर के आस-पास अल-नीनो (El-Nino) के प्रभाव के कारण भारत में सर्दियों का मौसम लगातार दूसरे साल कुछ गर्म हो सकता है।


प्रमुख बिंदु

  • IMD का अनुमान है कि फरवरी 2019 अर्थात् सर्दियों के अंत में एक छोटी अवधि का कमज़ोर अल-नीनो विकसित हो सकता है।
  • यह अनुमान IMD के 'सीजनल आउटलुक फॉर टेम्परेचर' (Seasonal Outlook for Temperatures), में प्रकाशित किया गया है।
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2016 से ही IMD गर्मी तथा सर्दी के मौसम के लिये 'सीजनल आउटलुक फॉर टेम्परेचर’ जारी करता है।
  • ये पूर्वानुमान मानसून मिशन युग्मित पूर्वानुमान प्रणाली (Monsoon Mission Coupled Forecasting System- MMCFS) की भविष्यवाणियों पर आधारित हैं।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD)

  • IMD की स्थापना वर्ष 1875 में हुई थी।
  • यह भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Science- MoES) की एक एजेंसी है।
  • यह मौसम संबंधी अवलोकन, मौसम पूर्वानुमान और भूकंप विज्ञान के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख एजेंसी है।

अल-नीनो (El-Nino)

  • प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) में पेरू के निकट समुद्री तट के गर्म होने की घटना को अल-नीनो कहा जाता है। दक्षिण अमेरिका के पश्चिम तटीय देश पेरू एवं इक्वाडोर के समुद्री मछुआरों द्वारा प्रतिवर्ष क्रिसमस के आस-पास प्रशांत महासागरीय धारा के तापमान में होने वाली वृद्धि को अल-नीनो कहा जाता था।
  • वर्तमान में इस शब्द का इस्तेमाल उष्णकटिवंधीय क्षेत्र में केंद्रीय और पूर्वी प्रशांत महासागर के सतही तापमान में कुछ अंतराल पर असामान्य रूप से होने वाली वृद्धि और इसके परिणामस्वरूप होने वाले विश्वव्यापी प्रभाव के लिये किया जाता है।
  • ला-नीना (La-Nina) भी मानसून का रुख तय करने वाली सामुद्रिक घटना है। यह घटना सामान्यतः अल-नीनो के बाद होती है। उल्लेखनीय है कि अल-नीनो में समुद्र की सतह का तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है जबकि ला-नीना में समुद्री सतह का तापमान बहुत कम हो जाता है।

अल-नीनो से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र

  • सामान्यतः प्रशांत महासागर का सबसे गर्म हिस्सा भूमध्य रेखा के पास का क्षेत्र है। पृथ्वी के घूर्णन के कारण वहाँ उपस्थित हवाएँ पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हैं। ये हवाएँ गर्म जल को पश्चिम की ओर अर्थात् इंडोनेशिया की ओर धकेलती हैं।
  • वैसे तो अल-नीनो की घटना भूमध्य रेखा के आस-पास प्रशांत क्षेत्र में घटित होती है लेकिन हमारी पृथ्वी के सभी जलवायु-चक्रों पर इसका असर पड़ता है।
  • लगभग 120 डिग्री पूर्वी देशांतर के आस-पास इंडोनेशियाई क्षेत्र से लेकर 80 डिग्री पश्चिमी देशांतर पर मेक्सिको की खाड़ी और दक्षिण अमेरिकी पेरू तट तक का समूचा उष्ण क्षेत्रीय प्रशांत महासागर अल-नीनो के प्रभाव क्षेत्र में आता है।

अल-नीनो का प्रभाव

  • अल-नीनो के प्रभाव से प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह गर्म हो जाती है, इससे हवाओं का रास्ते और रफ्तार में परिवर्तन आ जाता है जिसके चलते मौसम चक्र बुरी तरह से प्रभावित होता है।
  • मौसम में बदलाव के कारण कई स्थानों पर सूखा पड़ता है तो कई जगहों पर बाढ़ आती है। इसका असर दुनिया भर में महसूस किया जाता है।
  • जिस वर्ष अल-नीनो की सक्रियता बढ़ती है, उस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून पर उसका असर निश्चित रूप से पड़ता है। इससे पृथ्वी के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा होती है तो कुछ हिस्सों में सूखे की गंभीर स्थिति भी सामने आती है।
  • भारत भर में अल-नीनो के कारण सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है जबकि, ला-नीना के कारण अत्यधिक बारिश होती है।

स्रोत : द हिंदू (बिज़नेस लाइन) एवं दृष्टि इनपुट

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