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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अमेरिका 'ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप’ से बाहर

  • 25 Jan 2017
  • 13 min read

सन्दर्भ :

अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने एक व्यापार समझौते  'ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप' (टीपीपी) से बाहर निकलने के लिए एक कार्यकारी आदेश पर दस्तख़त कर दिया है | ऐसा कर उन्होंने अपने चुनावी अभियान में किए गए एक वादे को पूरा किया है | इस व्यापार समझौते को पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की एशिया नीति की धुरी माना जाता था जिस पर 12 देशों ने हस्ताक्षर किए थे |

ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप व्यापार समझौता क्या है?

  • उल्लेखनीय है कि टीपीपी प्रशांत महासागरीय क्षेत्र के चारों ओर अवस्थित 12 राष्ट्रों का एक व्यापार समझौता है | 
  • इस समझौते के अंतर्गत अमेरिका, जापान, मलेशिया, वियतनाम, सिंगापुर, ब्रूनेई, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैण्ड, कनाडा, मेक्सिको, चिली तथा पेरू आदि देश शामिल है | 
  • संभवतः इस प्रकार का यह एक सबसे महत्वाकांक्षी समझौता है | 
  • इसका उद्देश्य सदस्य राष्ट्रों के मध्य आयत-निर्यात पर लगने वाले शुल्क में कमी लाना है |
  • विदित हो, कि इस समझौते में शामिल सभी देशों की आबादी तकरीबन 800 मिलियन है तथा इनके द्वारा ही विश्व का 40% व्यापार सम्पन्न होता है | 
  • स्पष्ट है कि इन सभी देशों में यूरोपीय संघ के देशों के इर्द-गिर्द एक एकाकी बाज़ार के सृजन का भी सामर्थ्य है |


टीपीपी व्यापार समझौते से लाभ :

  • टीपीपी के माध्यम से  कुछ मामलों में सम्पूर्ण शुल्क को तुरंत हटा दिया जाएगा और अन्य में कुछ समय के पश्चात |
  • इसके अतिरिक्त, जापानी कार निर्माताओं जैसे टोयोटा, निसान और हौंडा की पहुँच उनके सबसे बड़े निर्यात बाज़ार (अमेरिका) में भी आसान हो जाएगी|
  • ध्यातव्य है, कि यदि वियतनाम और मलेशिया जैसे बाज़ारों के शुल्क में 70 % तक की कमी कर दी जाती है तो अमेरिका के वाहन निर्यातकों को एक नया बाज़ार मिल जाएगा|
  • इस समझौते से अमेरिकी किसानों तथा पोल्ट्री फर्मों को तो लाभ प्राप्त होगा साथ ही वियतनामी वस्त्र निर्यातकों को भी लाभ मिलने की भी सम्भावना बनी रहेगी|
  • यद्यपि डेयरी,चीनी,शराब,चावल और सीफूड में भी कर कि दरों को कम कर दिया गया है तथा जिसके फलस्वरूप निर्यातक देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड को इससे लाभ प्राप्त होता है| 
  • विदित हो, कि इस समझौते के तहत सेवाओं में भी मुक्त व्यापार को उदारीकृत रखा गया है|


अमेरिका का इस समझौते से बाहर होना महत्वपूर्ण क्यों है ?

  • वस्तुतः टीपीपी एक सबसे बड़ा क्षेत्रीय व्यापार समझौता है तथा इस प्रकार का यह पहला समझौता है|
  • इस समझौते के फलस्वरूप इसके 12 हस्ताक्षरकर्ता देशों में से 28 ट्रिलियन डॉलर वार्षिक जीडीपी वाले देशों के लिये व्यापार तथा कारोबारी निवेश के नए मानक स्थापित होंगे| 
  • इस समझौते के तहत प्रशांत क्षेत्र के राष्ट्रों को नजदीक लाने तथा चीन की क्षेत्रीय बढ़त के विरुद्ध एक सेतु का कार्य करने पर बल दिया गया है |
  • हालाँकि, स्वतन्त्र रूप से किये गये एक अध्ययन में यह कहा गया है इस समझौते का सूत्रपात राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा 21वीं सदी के व्यापार नियमों के लिए सुनहरे मानक बनाना था | 
  • बराक ओबामा के अनुसार यह समझौता रोजगारों के न होते हुए भी निश्चय ही अमेरिका की आय और निर्यात में बढोतरी करेगा | 
  • इसके अतिरिक्त इसमें भू-राजनीति का मसला भी शामिल है |
  • जब 95% से अधिक सक्षम देश के ग्राहक अपने देश की सीमाओं से बाहर रहते है तो कोई भी देश चीन जैसे देशों को वैश्विक अर्थव्यवस्था के नियम तय नहीं करने दे सकता है|
  • ओबामा ने कहा था कि कामगारों को सुरक्षित करने तथा पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए अमेरिका को मानकीकृत नियम बनाने चाहिए और अमेरिकी उत्पादों के लिए नये बाज़ार खोलने पर भी जोर देना चाहिए|


राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका को टीपीपी समझौते से बाहर करने का निर्णय क्यों लिया?

  • दरअसल,राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चुनावी अभियान के दौरान ही टीपीपी समझौते को एक ‘भयानक समझौता’ अथवा ‘रोजगार का हत्यारा’ तथा ‘अपने देश के लिए एक संभावित आपदा’ करार दिया था|
  • 21 नवम्बर को राष्ट्रपति ने ढाई घंटे का एक वीडियो जारी किया था जिसमे उन्होंने यह कहा था कि उनके कार्यालय में प्रवेश के पहले दिन ही अमेरिका टीपीपी समझौते से बाहर हो जाएगा| मि. ट्रम्प अपने वक्तव्यों पर अडिग हैं| 
  • उन्होंने वाइट हाउस में पहले सप्ताह ही अमेरिका के टीपीपी से निष्कासन को लेकर कार्यपालिका के एक आदेश पर हस्ताक्षर किये हैं|
  • यह स्पष्ट करना आवश्यक है, कि बहुराष्ट्रीय समझौतों के स्थान पर ट्रम्प ऐसे स्पष्ट और द्विपक्षीय समझौतों को करने के पक्षधर हैं जिससे अमेरिकी तटों पर पुनः रोजगार और उद्योगों को विकसित किया जा सके|
  • वास्तव में, टीपीपी को देशों के श्रमबलों के मध्य प्रतिस्पर्द्धा के रूप में चिन्हित किया गया है|
  • फलतः श्रम समूहों ने बड़ी विकसित अर्थव्यवस्थाओं जैसे अमेरिका से कम मजदूरी तथा कम सख्त श्रम कानूनों वाली अर्थव्यवस्थाओं की ओर गमन करती रोजगार की सम्भावनाओं के प्रति भी चिंता व्यक्त की है|

अन्य 11 देशों को टीपीपी में अमेरिका को स्थानांतरित करने की आवश्यकता क्यों है?

  • इस समझौते को इसके वास्तविक रूप में लागू करने के लिए वर्ष 2018 के फरवरी माह से पूर्व ही इस समझौते की कम से कम उन छह देशों द्वारा इसकी पुष्टि होना आवश्यक है जो देश हस्ताक्षरित देशों के आर्थिक निर्गत का 85% भाग बनाते है|
  • चूँकि अमेरिका इस समूह के संयुक्त जीडीपी में  60% का भागीदार है अतः उपयुक्त परिस्थितियां अमेरिका की सहभागिता के बिना प्राप्त नही की जा सकती हैं| 
  • जैसा कि जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने नवम्बर 2016 में ही कहा था कि टीपीपी से लाभों का आधारभूत संतुलन बिगड़ जाएगा अतः आवश्यक रूप से ट्रम्प के फैसले का तात्पर्य यह है कि इस समझौते पर पुनः वार्ता होनी चाहिए|


इस सन्दर्भ में चीन की स्थिति  :

  • वास्तव में बीजिंग में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुन्यिंग (hua chunying) ने इस सम्बन्ध में प्रत्यक्षतः यह नही कहा है कि चीन टीपीपी से जुड़ने के पक्ष में है अथवा नही | 
  • हालाँकि उसने यह कहा था कि हम सोचते हैं कि वर्तमान परिस्थिति में क्या होगा इसकी किसी को कोई परवाह नही है| 
  • स्पष्टतः सभी कार्यों को खुले, समावेशी, निरंतर विकास, सहयोग तथा जीत के परिप्रेक्ष्य में करना अनिवार्य है|
  • इस समझौते के विपरीत चीन ने एक अन्य समझौता प्रस्तावित किया है | एशिया-प्रशांत मुक्त व्यापार क्षेत्र (FTAAP), दक्षिणपूर्वी एशियाई समर्थित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) का एक सदस्य भारत भी है | 
  • ट्रम्प के कार्यों का अनुसरण करते हुए कई टीपीपी राष्ट्रों ने कहा था कि  वे अमेरिका के बिना भी संभवतः चीन के सहयोग से इस समझौते में आगे बढ़ने की आशा करते हैं|


इस सन्दर्भ में भारत को होने वाला लाभ :

  • उल्लेखनीय है कि चीन के समान ही भारत भी ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप से बाहर है|
  • ध्यातव्य है कि समझौते जैसे टीपीपी और प्रस्तावित ट्रांस-अटलांटिक व्यापार और निवेश भागीदारी (Trans Atlantic Trade and Investment- TTIP- एक अमेरिका-यूरोपीय संघ समझौता) परम्परागत बाज़ारों जैसे अमेरिका और यूरोपीय संघ में भारतीय उत्पादों की मांग को तो बलपूर्वक नष्ट कर देते हैं परन्तु इन समझौतों में शामिल सहयोगियों को लाभ पहूँचाते हैं |
  • उदाहरणनार्थ - वियतनाम यह आशा कर रहा था कि अमेरीकी बाज़ार में भारत द्वारा निर्धारित कि गई वस्त्रों कि कीमत से उसे लाभ होगा क्योंकि टीपीपी का सदस्य होने के नाते वियतनाम वस्त्रों पर लगने वाले शुल्क से मुक्त है जबकि भारतीय निर्यातकों पर 10 से 30% तक शुल्क चुकाने का दबाव बनाया जाता है |  
  • पुनः यह ध्यान देने योग्य है कि ‘यार्न फॉरवर्ड’ (yarn forward ) प्रावधान के तहत वस्त्रों को शुल्क मुक्त रखने के लिये उसको टीपीपी के सहयोगी सदस्य देशों में से किसी भी एक देश के धागे (yarn) और कपड़े (fabric) द्वारा निर्मित होना चाहिए | इसके परिणामस्वरूप भारत द्वारा वियतनाम जैसे देशों को होने वाले धागे और कपड़े के निर्यात पर प्रभाव पड़ेगा | 
  • हालाँकि, वर्ष 2015 के सितम्बर माह में पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स ने यह कहा था कि यदि चीन और एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) के अन्य सदस्य देश भी टीपीपी के दूसरे चरण से जुड़ते हैं तो भारत का इस समझौते से बाहर होना जारी रहेगा तथा इससे भारत को  वार्षिक निर्यातों में 50 बिलियन डॉलर का नुकसान होगा |
  • कुछ अन्वेषक चाहते हैं कि भारत टीपीपी फाइन प्रिंट (TPP fine print) की जांच करे | 


वस्तुतः टीपीपी और भारत की उभरती चुनौतियों पर आई एक रिपोर्ट में दक्षिण एशिया के एक संस्थान ने सिंगापुर के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में भारत से यह अनुरोध किया है कि भारत को क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदार ( Regional Comprehensive Economic Partnership-RCEP) वार्ता पर पड़ने वाले इसके सकारात्मक प्रभावों को जानने के लिए टीपीपी का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने कि आवश्यकता होगी |

ट्रंप बार-बार कह रहे हैं कि 'अमेरिका फर्स्ट' ; तो क्या इसका यह अर्थ नहीं है कि अमेरिका अब अंतर्राष्ट्रीयवाद की नीति से क़दम पीछे खींच रहा है? ज़ाहिर है टीपीपी रद्द करने से ऐसा ही संदेश गया है.जिसके फलस्वरूप निश्चित ही ट्रंप को लेकर एशिया में अमेरिका की साख पर भरोसा कम होगा | अतः टीपीपी के ख़त्म होने से ट्रंप और अमेरिकी इरादों को लेकर अनिश्चितताएँ बढ़ सकती हैं |

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