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डेली न्यूज़

भारतीय अर्थव्यवस्था

अमेरिका की जवाबी शुल्क कार्यवाही का निलंबन

  • 08 Jun 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये

डिजिटल सेवा कर, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय

मेन्स के लिये

डिजिटल सेवा कर महत्त्व और आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका ने भारत सहित उन छह देशों के विरुद्ध जवाबी शुल्क कार्यवाही को निलंबित कर दिया है, जिसमें ‘गूगल’ और ‘फेसबुक’ जैसी कंपनियों पर डिजिटल सेवा कर अधिरोपित था।

  • भारत के अलावा ऑस्ट्रिया, इटली, स्पेन, तुर्की और यूनाइटेड किंगडम ने इस प्रकार के कर अधिरोपित किये हैं।

डिजिटल सेवा कर

  • यह कर कंपनियों द्वारा डिजिटल सेवाएँ प्रदान करने के बदले प्राप्त राजस्व पर अधिरोपित किया जाता है। यह कर मुख्य तौर पर गूगल, अमेज़न और एप्पल जैसी डिजिटल बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर लागू होता है।
  • आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) वर्तमान में 130 से अधिक देशों के साथ वार्ता कर रहा है, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय कर प्रणाली को अनुकूलित करना है। इस वार्ता का एक लक्ष्य अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण की कर चुनौतियों का समाधान करना है।
    • कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि किसी एक विशिष्ट क्षेत्र या गतिविधि को लक्षित करने के लिये डिज़ाइन की गई कर नीति पूर्णतः अनुचित होगी और इसके जटिल परिणाम हो सकते हैं।
    • इसके अलावा डिजिटल अर्थव्यवस्था को बाकी वैश्विक अर्थव्यवस्था से आसानी से अलग नहीं किया जा सकता है।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • सर्वप्रथम ‘संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि’ (USTR) कार्यालय द्वारा नोट किया गया कि भारत, इटली और तुर्की द्वारा अपनाए गए डिजिटल सेवा कर अमेरिकी कंपनियों के साथ भेदभाव करते हैं और अंतर्राष्ट्रीय कर सिद्धांतों के साथ असंगत हैं, इसके पश्चात् इन देशों पर शुल्क अधिरोपित किये गए।
    • वर्ष 1974 के व्यापार अधिनियम की धारा 301 के तहत संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि (USTR) को व्यापार समझौतों के तहत अमेरिकी राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने और विदेशी व्यापार प्रथाओं की जाँच तथा कार्रवाई करने के लिये कई महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ और अधिकार प्राप्त हैं।

निलंबन का कारण

  • बहुपक्षीय समाधान
    • इस निलंबन का उद्देश्य वर्तमान में चल रहीं अंतर्राष्ट्रीय कर वार्ताओं को जारी रखने के लिये समय प्रदान करना है। इस तरह यदि भविष्य में ज़रूरत पड़ी तो धारा 301 के तहत शुल्क लगाने के विकल्प को बरकरार रखते हुए अमेरिका बहुपक्षीय समाधान की मांग कर रहा है।
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान
    • संभावित रूप से प्रभावित छह देश एक कमज़ोर पोस्ट कोविड-19 रिकवरी का सामना कर रहे हैं और एक नया व्यापार युद्ध शुरू करना न केवल उनके लिये बल्कि व्यापक वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये भी हानिकारक हो सकता है।
    • महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक स्लोडाउन और चीन एवं अमेरिका के व्यापार युद्ध के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में आए बदलाव के परिणामस्वरूप पहले ही कई अर्थव्यवस्थाएँ कमज़ोर स्थिति का सामना कर रही हैं।
  • प्रशासन में बदलाव
    • पिछली अमेरिकी सरकार (ट्रंप प्रशासन) के तहत USTR का प्रयोग ऐसे व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिये किया जाता था, जो प्रशासन को मुक्त, निष्पक्ष और पारस्परिक लगता था, विशेष रूप से अमेरिका और विदेशी सरकारों के बीच व्यापार के अंतर या संतुलन को समाप्त करने के लिये।
    • हालाँकि नई सरकार (बाइडेन प्रशासन) संबंधित देशों के साथ निरंतर कर वार्ता पर ज़ोर देते हुए USTR के प्रयोग का एक मध्य मार्ग तलाश रही है।

भारत पर प्रभाव

  • राजस्व का नुकसान
    • वित्त विधेयक, 2021 द्वारा लगाए गए कर से भारत को प्रतिवर्ष लगभग 55 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्राप्त हो सकते हैं।
    • अमेरिका के साथ वार्ता के परिणामस्वरूप इस कर को वापस अधिरोपित किया जा सकता है, हालाँकि इससे राजस्व के एक हिस्से के नुकसान होने की संभावना है, जो कि अंतिम दर पर सहमति पर निर्भर करेगा।
  • निर्यात पर प्रभाव
    • अमेरिका को भारत का 118 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि (USTR) द्वारा प्रस्तावित टैरिफ के अधीन है, जो 26 श्रेणियों के सामानों को प्रभावित कर सकता, जिसमें शामिल है:
      • बासमती चावल, सिगरेट पेपर, मोती, कीमती पत्थर, सोने और चांदी के आभूषण और विशिष्ट प्रकार के फर्नीचर उत्पाद।
  • विकास की संभावनाएँ
    • अमेरिका के साथ किसी भी प्रकार की प्रतिशोधात्मक कराधान कार्यवाही इस मौजूदा कठिन रिकवरी के दौरान में भारत की विकास संभावनाओं को प्रभावित कर सकती है।
    • हालाँकि, भारत के लिये वैश्विक टेक फर्मों पर कर लगाने के प्रस्ताव को समाप्त करना भी आसान नहीं होगा। 

डिजिटल कंपनियों पर भारत का कर

  • बीते दिनों सरकार ने 2 करोड़ रुपए से अधिक के कारोबार वाले गैर-निवासी ई-कॉमर्स ऑपरेटरों द्वारा प्रदान किये गए व्यापार और सेवाओं पर 2 प्रतिशत डिजिटल सेवा कर (DST) लगाते हुए वित्त विधेयक 2020-21 में एक संशोधन किया था।
    • इसके माध्यम से इक्विलाइज़ेशन लेवी के दायरे को प्रभावी ढंग से विस्तारित किया गया, जो कि बीते वर्ष तक केवल डिजिटल विज्ञापन सेवाओं पर ही लागू था।
    • इससे पहले इक्विलाइज़ेशन लेवी (6 प्रतिशत) वर्ष 2016 में प्रस्तुत की गई थी और रेजिडेंट सर्विस प्रोवाइडर के बिज़नेस-टू-बिज़नेस डिजिटल विज्ञापनों और संबद्ध सेवाओं पर उत्पन्न राजस्व पर लगाई जाती थी।
  • नई लेवी 1 अप्रैल, 2020 से लागू हुई, जिसके तहत ई-कॉमर्स ऑपरेटर प्रत्येक तिमाही के अंत में कर का भुगतान करने के लिये बाध्य हैं।
  • इसका उद्देश्य ऐसी संस्थाओं से कर प्राप्त करना है, जिनकी भारत में भौतिक उपस्थिति नहीं है और इसलिये आयकर विभाग भारत से अर्जित उनकी आय पर कर नहीं लगा सकता है।

आगे की राह

  • भारत में जल्द ही डिजिटल अर्थव्यवस्था में एक प्रतिनिधि बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, ऐसे में किसी भी प्रकार की बाधा से बचने के लिये 2 प्रतिशत डिजिटल सेवा कर पर वार्ता की जानी महत्त्वपूर्ण है। भारत को इस समय अपने विकल्पों पर सावधानी से विचार करना चाहिये।
  • इसके अलावा, डिजिटल अर्थव्यवस्था पर कराधान को लेकर अंतर्राष्ट्रीय सहमति बनाए जाने की भी आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू

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