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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

क्या है येरुशलम शहर का महत्त्व एवं विवाद का कारण?

  • 07 Dec 2017
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इज़राइल एवं फिलिस्तीन के मध्य बहुत लम्बे समय से चले आ रहे विवाद को दरकिनार करते हुए एक महत्त्वपूर्ण घोषणा की। उन्होंने द्विराष्ट्र की अवधारणा को अस्वीकार करते हुए येरुशलम (अल कुद्स) को इज़राइल की राजधानी के रूप में मान्यता प्रदान की। साथ ही अमरीकी दूतावास को तेल अवीव से येरुशलम में स्थापित करने के संबंध में भी अपनी मंज़ूरी दी। अमेरिका का यह कदम जहाँ एक ओर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की राय और पक्ष से पृथक है वहीं दूसरी ओर यह इज़राइल के पक्ष को मान्यता भी प्रदान करता है।

  • वस्तुतः इस विवाद का कारण की है साथ ही यह शहर इतना अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों है कि यह अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के समक्ष चर्चा का कारण बना हुआ है।

मुख्य बिंदु

  • इज़राइलियों और फ़लस्तीनियों के पवित्र शहर येरुशलम को लेकर विवाद बहुत पुराना और गहरा है। यह शहर न केवल इस्लाम और यहूदियों के लिये महत्त्वपूर्ण है बल्कि यह ईसाई धर्म और अर्मेनियाई लोगों के लिये भी एक बहुत महत्त्वपूर्ण एवं पवित्र स्थान है।
  • इसका सबसे अहम् कारण यह है कि ये तीनों संप्रदाय पैगंबर इब्राहीम को अपने-अपने धार्मिक इतिहास का अहम् अंग मानते हैं। यह दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है।
  • इस शहर के केंद्र में एक प्राचीन शहर बसता है जिसे ओल्ड सिटी के नाम से जाना जाता है। इसके चारों ओर एक किलेनुमा सुरक्षा दीवार अवस्थित है।

ईसाइयों के लिये इसका महत्त्व

  • इस शहर में ईसाई इलाके में (अर्मेनियाई लोग भी ईसाई ही होते है) 'द चर्च आफ द होली सेपल्कर' अवस्थित है। यह दुनिया भर के ईसाइयों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।

  • यही वह स्थान है जहाँ ईसा मसीह की मौत हुई थी (उन्हें सूली पर चढ़ाया गया था) और यहीं पर वे तीसरे दिन (ईस्टर के दिन) अवतरित हुए थे। इसे हिल ऑफ द केलवेरी कहा जाता है। ईसा मसीह का मकबरा सेपल्कर के भीतर मौजूद है। 
  • इस चर्च का प्रबंधन ईसाई समुदाय के विभिन्न संप्रदायों, खासकर ग्रीक ऑर्थोडॉक्स पैट्रियार्केट, रोमन कैथोलिक चर्च के फ्राँसिस्कन फ्रायर्स और अर्मेनियाई पैट्रियार्केट के अलावा इथियोपियाई, कॉप्टिक तथा  सीरियाई ऑर्थोडॉक्स चर्च से जुड़े पादरियों द्वारा किया जाता है।
  • दुनिया भर के ईसाइयों के लिये ये धार्मिक आस्था का मुख्य केंद्र है।

मुसलमानों के लिये इसका महत्त्व

  • यहाँ सबसे बड़ा क्षेत्र मुसलमानों का है। यहीं पर ‘डोम ऑफ द रॉक’ और ‘मस्जिद अल अक़्सा’ स्थित है। जिस पठार पर यह मस्जिद स्थित है उसे मुस्लिम समाज में ‘हरम अल शरीफ़’ या पवित्र स्थान के नाम से जाना जाता है।
  • आपको बताते चलें कि ‘मस्जिद अल अक़्सा’ इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल है, जिसका प्रबंधन एक इस्लामिक ट्रस्ट ‘वक़्फ़’ करती है।

  • मुसलमानों का विश्वास है कि पैगंबर मोहम्मद ने एक रात में मक्का से यहाँ तक की यात्रा की थी। 
  • इसके नजदीक ‘डोम ऑफ द रॉक्स’ का पवित्र स्थल स्थित है। इसे पवित्र पत्थर भी कहा जाता  है। एक मान्यता के अनुसार, यह वही स्थान है जहाँ से पैगंबर मोहम्मद ने जन्नत की यात्रा की थी।

यहूदियों के लिये इसका महत्त्व 

  • यहूदी क्षेत्र में ‘कोटेल या पश्चिमी दीवार’ स्थित है। यह ‘वॉल ऑफ द माउंट’ का बचा हिस्सा है। एक मान्यता के अनुसार, कभी यहूदियों का पवित्र मंदिर इसी स्थान पर अवस्थित था।

  • कभी किसी समय इस पवित्र स्थल के भीतर ही ‘द होली ऑफ द होलीज़’ अर्थात यहूदियों का सबसे पवित्र स्थान स्थित था। इस कारण से यह स्थान यहूदियों के लिये बेहद महत्त्वपूर्ण स्थान है।
  • एक मान्यता के अनुसार, यही वह स्थान है जहाँ से विश्व का निर्माण हुआ है। 
  • साथ ही यहीं पर पैगंबर इब्राहीम ने अपने बेटे इश्हाक को बलि चढ़ाने की तैयारी की थी। होली ऑफ़ द होलीज़ के नजदीक स्थित पश्चिमी दीवार के पास यहूदी समुदाय द्वारा ‘होली ऑफ़ द होलीज़’ की अराधना की जाती है।
  • इसका प्रबंधन पश्चिमी दीवार के रब्बी करते हैं। 

विवाद का कारण क्या है?

  • फलस्तीनी और इज़राइलियों के मध्य विवाद का मुख्य कारण प्राचीन येरुशलम शहर है। यह क्षेत्र केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि राजनीतिक एवं कूटनीतिक दृष्टि से भी बेहद अहम् है। 
  • इस क्षेत्र की भौगोलिक अथवा राजनीतिक स्थिति में ज़रा सा भी परिवर्तन हिंसक तनाव का रूप धारण कर लेता है। 
  • यही कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति का यह बयान बेहद चौंकाने वाला है, विशेषकर तब जब समस्त विश्व के नेताओं द्वारा इस संबंध में अपील की गई।

पृष्ठभूमि

इज़राइल राष्ट्र की स्थापना वर्ष 1948 में हुई थी। तब इज़राइली संसद को शहर के पश्चिमी हिस्से में स्थापित किया गया था। परन्तु, वर्ष 1967 के युद्ध में इज़राइल ने पूर्वी येरुशलम पर भी अपना कब्ज़ा जमा लिया।
इस प्रकार प्राचीन शहर भी इज़राइल के नियंत्रण में आ गया। हालाँकि इसे कभी भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य करार नहीं दिया गया। इस बात के संबंध में इज़राइल द्वारा कई बार आपत्ति दर्ज़ की गई।
जहाँ एक ओर इज़राइली येरुशलम को अपनी अविभाजित राजधानी के रूप में स्वीकार करते हैं, वहीं दूसरी ओर फिलिस्तीनी पूर्वी येरुशलम को अपनी राजधानी मानते हैं।

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