लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली न्यूज़

सामाजिक न्याय

व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, देखभाल और पुनर्वास) विधेयक, 2021

  • 14 Dec 2021
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संसद, संयुक्त राष्ट्र

मेन्स के लिये:

व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, देखभाल और पुनर्वास) विधेयक, 2021 के प्रमुख प्रावधान एवं इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

इंडियन लीडरशिप फोरम अगेंस्ट ट्रैफिकिंग' (ILFAT) ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, देखभाल और पुनर्वास) मसौदा विधेयक 2021 की कमियों की पहचान संबंधी पत्र लिखा है, जिसे संसद के शीतकालीन सत्र में प्रस्तावित किये जानेकी उम्मीद है।

प्रमुख बिंदु

  • विधेयक से संबंधित मुद्दें:

    • विधेयक पीड़ितों को पुनर्वास की सुविधा प्रदान करता है, जबकि यह आश्रय गृहों (Shelter Homes) से परे राहत का विस्तार नहीं करता है।
      • एक समुदाय आधारित पुनर्वास मॉडल की मांग है जो स्वास्थ्य सेवाएंँ, कानूनी सहायता, कल्याणकारी योजनाओं तक पहुंँच और आय के अवसर प्रदान करता है जो "पीड़ितों का उनके समुदाय तथा परिवार में फिर से एकीकरण" सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण है।
    • संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों के अनुसार, यह विधेयक अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के अनुरूप नहीं था।
    • यह विधेयक सेक्स वर्क और प्रवासन को तस्करी की तरह ही उल्लिखित करता है लेकिन इनकी स्थितियाँ कुछ अलग होती है।
    • अवैध व्यापार को मानव अधिकार के पूरक के बजाय आपराधिक कानून के नजरिए से संबोधित करने तथा पीड़ित केंद्रित दृष्टिकोण के लिये विधेयक की आलोचना की गई थी।
    • पुलिस द्वारा "बचाव के नाम पर छापे मारने को बढ़ावा देने के साथ-साथ पुनर्वास के नाम पर पीड़ितों के संस्थागतकरण के लिये भी इसकी आलोचना की गई थी।
    • विधेयक में बताया गया था कि कुछ अस्पष्ट प्रावधानों से उन गतिविधियों का व्यापक अपराधीकरण हो जाएगा जो अनिवार्य रूप से तस्करी से संबंधित नहीं हैं।
  • नए विधेयक में प्रावधान:

    • इसका विस्तार देश के भीतर और साथ ही भारत के बाहर निवास करने वाले सभी नागरिकों तक है।
      • भारत में पंजीकृत किसी भी जहाज़ या विमान पर व्यक्ति, चाहे वह कहीं भी हो या भारतीय नागरिकों को कहीं भी ले जा रहा हो,
      • एक विदेशी नागरिक या एक राज्य विहीन व्यक्ति जिसका इस अधिनियम के तहत अपराध किये जाने के समय भारत में उसका निवास स्थान हो और
      • यह कानून सीमा-पार प्रभाव वाले व्यक्तियों की तस्करी के प्रत्येक अपराध पर लागू होगा।
      • यह विधेयक सीमा पार प्रभाव के साथ व्यक्तियों की तस्करी के प्रत्येक अपराध पर कानून लागू होगा।
    • विधेयक में शामिल पीड़ित:
      • यह पीड़ितों के रूप में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा से आगे बढ़कर अब ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भी शामिल करता है जो तस्करी का शिकार हो सकते हैं।
      • यह पीड़ित के रूप में परिभाषित करने के लिये पीड़ित को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की आवश्यकता जैसे प्रावधान को भी समाप्त करता है।
    • 'शोषण' को परिभाषित करता है:
      • वेश्यावृत्ति शोषण या अश्लील साहित्य सहित यौन शोषण के अन्य रूप, शारीरिक शोषण से संबंधित कोई भी कार्य, जबरन श्रम या सेवाएँ, दासता या दासता के समान व्यवहार, जबरन अंग प्रत्यावर्तन, अवैध नैदानिक ​​​​दवा परीक्षण या अवैध जैव-चिकित्सा अनुसंधान आदि को भी शामिल करता है।
    • अपराधी के रूप में सरकारी अधिकारी:
      • अपराधी के रूप में सरकारी अपराधियों में रक्षाकर्मी, सरकारी कर्मचारी, डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ या प्राधिकार की स्थिति में कोई भी शामिल होगा।
    • दंड/जुर्माना:
      • तस्करी के अधिकतर मामलों में कम-से-कम सात वर्ष की सज़ा का प्रावधान है जिसे 10 वर्षों तक की कैद और 5 लाख रुपए के जुर्माने तक बढ़ाया जा सकता है।
      • एक से अधिक बच्चों की तस्करी के मामले में वर्तमान में आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान है।
    • धन शोधन अधिनियम से समानता:
      • इस तरह की आय के माध्यम से खरीदी गई संपत्ति के साथ-साथ तस्करी के लिये उपयोग की जाने वाली संपत्ति को अब धन शोधन अधिनियम के समान प्रावधानों के साथ ज़ब्त किया जा सकता है।
    • जाँच एजेंसी:
      • राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (National Investigation Agency- NIA) मानव तस्करी की रोकथाम और उससे निपटने हेतु उत्तरदायी राष्ट्रीय जाँच तथा समन्वय एजेंसी के रूप में कार्य करेगी।
    • राष्ट्रीय मानव तस्करी विरोधी समिति:
      • एक बार कानून बन जाने के बाद केंद्र इस कानून के प्रावधानों के समग्र प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये एक राष्ट्रीय मानव तस्करी विरोधी समिति को अधिसूचित और स्थापित करेगा।
      • इस समिति में विभिन्न मंत्रालयों का प्रतिनिधित्त्व होगा, जिसमें गृह सचिव अध्यक्ष और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव सह-अध्यक्ष के रूप में होंगे।
      • राज्य एवं ज़िला स्तर पर मानव तस्करी-रोधी समितियों का भी गठन किया जाएगा।
  • महत्त्व:

    • विधेयक ट्रांसजेंडर समुदाय (Transgender Community) और किसी भी अन्य व्यक्ति को शामिल करता है जो स्वचालित रूप से अंगों की अवैध विक्री जैसी गतिविधियों को अपने दायरे में लाएगा।
    • साथ ही ज़बरन मज़दूरी जैसे मामले, जिसमें लोग नौकरी के लालच में दूसरे देशों में चले जाते हैं, जहांँ उनके पासपोर्ट और दस्तावेज़ छीनकर उन्हें काम पर लगाया जाता है, भी इस नए कानून के दायरे में आएँगे।

भारत में मानव तस्करी की स्थिति

  • डेटा विश्लेषण:

    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में देश में कुल 6,616, वर्ष 2018 में 5,788 और वर्ष 2017 में 5,900 मामले दर्ज किये गए।
    • दुनिया भर में मानव तस्करी के शिकार लोगों में लगभग एक-तिहाई बच्चे हैं, भारत में बच्चों के लिये यह स्थिति अधिक चिंताजनक है।
      • NCRB 2018 के आँकड़ों के अनुसार, सभी तस्करी पीड़ितों में से 51% बच्चे थे, जिनमें से 80% से अधिक लड़कियाँ थीं।
      • हाल ही में भारत में कोविड-19 महामारी के कारण अनाथ बच्चों को गोद लेने, रोज़गार या आजीविका और आश्रय की आड़ में तस्करी के बढ़ते जोखिम के मामले प्रकाश में आये हैं।
  • भारत में मानव तस्करी को प्रतिबंधित करने वाले कानून:

    • भारत के संविधान में अनुच्छेद 23 (1) मानव तस्करी और जबरन श्रम पर रोक लगाता है।
    • अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 (ITPA) व्यावसायिक यौन शोषण के लिये तस्करी को दंडित करता है।
    • भारत बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976, बाल श्रम (निषेध और उन्मूलन) अधिनियम 1986 और किशोर न्याय अधिनियम के माध्यम से बंधुआ तथा जबरन श्रम पर भी प्रतिबंध लगाता है।
    • भारतीय दंड संहिता की धारा 366 (A) और 372, क्रमशः नाबालिगों के अपहरण तथा वेश्यावृत्ति पर रोक लगाती है।
    • इसके अलावा कारखाना अधिनियम, 1948 ने श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी दी।
  • अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय, प्रोटोकॉल और अभियान:

आगे की राह

  • प्रवर्तन एजेंसियों के लिये दोहरेपन या भ्रम से बचने हेतु विधेयक को किशोर न्याय अधिनियम और अन्य प्रासंगिक अधिनियमों के मौजूदा प्रावधानों के साथ बेहतर ढंग से लागू किया जाना चाहिये।
  • चूँकि अधिनियम का प्रभावी कार्यान्वयन स्पष्ट और सुसंगत नियमों पर निर्भर है, इसलिये केंद्र सरकार के लिये राज्यों द्वारा उपयोग हेतु मॉडल नियम तैयार करना उपयोगी होगा।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2