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डेली न्यूज़

भारतीय इतिहास

श्री नारायण गुरु

  • 25 Aug 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

श्री नारायण गुरु से संबंधित तथ्यात्मक जानकारी

मेन्स के लिये:

श्री नारायण गुरु का परिचय, विभिन्न क्षेत्रों में इनका योगदान तथा इनका दर्शन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने श्री नारायण गुरु को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि दी।

  • इससे पहले भारत के उपराष्ट्रपति ने श्री नारायण गुरु (Sree Narayana Guru) की कविताओं का अंग्रेज़ी अनुवाद, "नॉट मैनी, बट वन" (Not Many, But One) लॉन्च किया।

Sree-Narayana-Guru

प्रमुख बिंदु

जन्म:

  • श्री नारायण गुरु का जन्म 22 अगस्त, 1856 को केरल के तिरुवनंतपुरम के पास एक गाँव चेमपज़ंथी (Chempazhanthy) में हुआ था। इनेक पिता का नाम' मदन असन और माता का नाम कुट्टियम्मा (Kuttiyamma) था। 

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:

  • उनका परिवार एझावा (Ezhava) जाति से संबंध रखता था और उस समय के सामाजिक मान्यताओं के अनुसार इसे 'अवर्ण’' (Avarna) माना जाता था।
  • उन्हें बचपन से ही एकांत पसंद था और वे हमेशा गहन चिंतन में लिप्त रहते थे। वह स्थानीय मंदिरों में पूजा करने के लिये प्रयासरत रहते थे, जिसके लिये भजनों तथा भक्ति गीतों की रचना करते रहते थे।
  • छोटी उम्र से ही उनका आकर्षण तप की ओर था जिसके चलते वे संन्यासी के रूप में आठ वर्षों तक जंगल में रहे थे।
  • उनको वेद, उपनिषद, साहित्य, हठ योग और अन्य दर्शनों का ज्ञान था।

महत्त्वपूर्ण कार्य:

  • जातिगत अन्याय के खिलाफ:
    • उन्होंने "एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर" (ओरु जति, ओरु माथम, ओरु दैवम, मानुष्यानु) का प्रसिद्ध नारा दिया।
    • उन्होंने वर्ष 1888 में अरुविप्पुरम में भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर बनाया, जो उस समय के जाति-आधारित प्रतिबंधों के खिलाफ था।
    • उन्होंने एक मंदिर कलावन्कोड (Kalavancode) में अभिषेक किया और  मंदिरों में मूर्तियों की जगह दर्पण रखा। यह उनके इस संदेश का प्रतीक था कि परमात्मा प्रत्येक व्यक्ति के भीतर है।
  • धर्म-परिवर्त्तन का विरोध:
    • उन्होंने लोगों को समानता की सीख दी लेकिन इस बात को महसूस किया कि असमानता का उपयोग धर्म परिवर्तन के लिये नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि इससे समाज में अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होती है।
    • श्री नारायण गुरु ने वर्ष 1923 में अलवे अद्वैत आश्रम (Alwaye Advaita Ashram) में एक सर्व-क्षेत्र सम्मेलन का आयोजन किया, जिसे भारत में इस तरह का पहला कार्यक्रम बताया जाता है। यह एझावा समुदाय में होने वाले धार्मिक रूपांतरणों को रोकने का एक प्रयास था।
  • अन्य:
    • वर्ष 1903 में, उन्होंने संस्थापक और अध्यक्ष के रूप में एक धर्मार्थ समाज, श्री नारायण धर्म परिपालन योगम (Sree Narayana Dharma Paripalana Yogam-SNDP) की स्थापना की। संगठन वर्तमान समय में भी अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज कर रहा है।
    • वर्ष 1924 में, स्वच्छता, शिक्षा, भक्ति, कृषि, हस्तशिल्प और व्यापार के गुणों को बढ़ावा देने के लिये शिवगिरी तीर्थ (Sivagiri pilgrimage) की स्थापना की गई थी।

श्री नारायण गुरु का दर्शन:

  • श्री नारायण गुरु बहुआयामी प्रतिभा, महान महर्षि, अद्वैत दर्शन के प्रबल प्रस्तावक, कवि और एक महान आध्यात्मिक व्यक्ति थे।

साहित्यिक रचनाएँ:

  • उन्होंने विभिन्न भाषाओं में अनेक पुस्तकें लिखीं। उनमें से कुछ प्रमुख हैं: अद्वैत दीपिका, असरमा, थिरुकुरल, थेवरप्पाथिंकंगल आदि।

राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान:

  • श्री नारायण गुरु मंदिर प्रवेश आंदोलन में सबसे अग्रणी थे और अछूतों के प्रति सामाजिक भेदभाव के खिलाफ थे।
  • श्री नारायण गुरु ने वायकोम सत्याग्रह (त्रावणकोर) को गति प्रदान की। इस आंदोलन का उद्देश्य निम्न जातियों को मंदिरों में प्रवेश दिलाना था। इस आंदोलन की वजह से  महात्मा गांधी सहित सभी लोगों का ध्यान उनकी तरफ गया।
  • उन्होंने अपनी कविताओं में भारतीयता के सार को समाहित किया और दुनिया की विविधता के बीच मौजूद एकता को रेखांकित किया। 

विज्ञान में योगदान:

  • श्री नारायण गुरु ने स्वच्छता, शिक्षा, कृषि, व्यापार, हस्तशिल्प और तकनीकी प्रशिक्षण पर ज़ोर दिया।
  • श्री नारायण गुरु का अध्यारोप (Adyaropa) दर्शनम् (दर्शनमला) ब्रह्मांड के निर्माण की व्याख्या करता है।
  • इनके दर्शन में  दैवदशकम् (Daivadasakam) और आत्मोपदेश शतकम् (Atmopadesa Satakam) जैसे कुछ उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि कैसे रहस्यवादी विचार तथा अंतर्दृष्टि वर्तमान की उन्नत भौतिकी से मिलते-जुलते हैं।

दर्शन की वर्तमान प्रासंगिकता: 

  • श्री नारायण गुरु की सार्वभौमिक एकता के दर्शन का समकालीन विश्व में मौजूद देशों और समुदायों के बीच घृणा, हिंसा, कट्टरता, संप्रदायवाद तथा अन्य विभाजनकारी प्रवृत्तियों का मुकाबला करने के लिये विशेष महत्त्व है।

मृत्यु:

  • श्री नारायण गुरु की मृत्यु 20 सितंबर, 1928 को हो गई। केरल में यह दिन श्री नारायण गुरु समाधि (Sree Narayana Guru Samadhi) के रूप में मनाया जाता है।

स्रोत: पी.आई.बी.

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