भारतीय राजव्यवस्था
सोशल मीडिया पोस्टिंग: एक मौलिक अधिकार
- 24 Jan 2020
- 3 min read
प्रीलिम्स के लिये:मौलिक अधिकार, सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000, अनुच्छेद 19, भारतीय दंड संहिता मेन्स के लिये:मौलिक अधिकारों से संबंधित मुद्दे, सोशल मीडिया से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने एक फैसले में सोशल मीडिया में पोस्ट करने को एक मौलिक अधिकार माना है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- उच्च न्यायालय ने यह आदेश सोशल मीडिया पर लिखे पोस्ट के आधार पर गिरफ़्तार किये गए शख्स की सुनवाई के दौरान दिया है|
- त्रिपुरा पुलिस ने युवा कान्ग्रेस के एक कार्यकर्त्ता को नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन के लिये जारी किये गए फोन नंबर के खिलाफ लिखे पोस्ट के तहत गिरफ्तार किया था।
- त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने कान्ग्रेस कार्यकर्त्ता को रिहा करने का आदेश देते हुए पुलिस को कहा कि इस तरह के मामले में किसी दूसरे की गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिये।
उच्च न्यायालय के निर्णय के मायने
- त्रिपुरा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने अपने आदेश में टिप्पणी की है कि सोशल मीडिया पर पोस्ट करना सरकारी कर्मचारियों सहित सभी नागरिकों के लिये ‘मौलिक अधिकार’ के समान है।
- न्यायालय के आदेश के अनुपालन में पुलिस को इस मामले को रद्द करने के लिये अब संबंधित प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) से भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) की धारा 120 (B) और 153 (A) को हटाना पड़ेगा।
- ध्यातव्य है कि इससे पहले वर्ष 2015 में इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की आज़ादी पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 (IT Act, 2000) की धारा 66A को असंवैधानिक करार दिया था|
सोशल मीडिया में पोस्ट करना मौलिक अधिकार कैसे?
- इंटरनेट और सोशल मीडिया एक महत्त्वपूर्ण संचार उपकरण बन गया है जिसके माध्यम से व्यक्ति अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का उपयोग कर सकते हैं और सूचना एवं विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं।
- ध्यातव्य है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 और मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा का अनुच्छेद 19 के व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं और सोशल मीडिया पर पोस्टिंग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ही एक रूप है।
- इस प्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में सोशल मीडिया पोस्टिंग को भी मौलिक अधिकार माना जा सकता है।