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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

चावल में शीथ ब्लाइट रोग

  • 15 Jun 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान संस्थान (National Institute of Plant Genome Research) के वैज्ञानिकों ने चावल की फसल में एक प्रमुख रोगजनक कवक ‘राइज़ोक्टोनिया सोलानी’ (Rhizoctonia Solani) की आक्रामकता से जुड़ी आनुवंशिक विविधता (Genomic Diversity) को उजागर किया है।

प्रमुख बिंदु

  • राइज़ोक्टोनिया सोलानी कवक की वह प्रजाति है जिससे चावल में शीथ ब्लाइट (Sheath Blight) रोग होता है।
  • शोधकर्त्ताओं ने इन कवक स्ट्रेनों (Fungal Strains) में ऐसे कई जीन और जीन परिवारों की पहचान की है जो शीथ ब्लाइट रोग को फैलाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इसी जीनोमिक अध्ययन के आधार पर चावल की शीथ ब्लाइट प्रतिरोधी किस्म को तैयार करने में सहायता मिलेगी।
  • शीथ ब्लाइट रोग चावल की फसल की प्रमुख समस्या है जिसके कारण प्रतिवर्ष चावल की फसल में 60 फीसदी तक का नुकसान होता है। इसीलिये स्थायी रूप से इस रोग को नियंत्रित करना एक चुनौती बनी हुई है।
  • पिछले 4-5 वर्षों में जो अनुसंधानकर्त्ता इस रोग के रोगाणुजनक कवक पर कार्य कर रहे थे उनके द्वारा इसके दो हाइपर आक्रामक स्ट्रेनो के जीनोम का अध्ययन करने का फैसला किया।

Sheath Blight Disease

राइज़ोक्टोनिया सोलानी रोगजनित चावल (Rhizoctonia Solani infected rice)

  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, राइज़ोक्टोनिया सोलानी के दो भारतीय रूपों- बीआरएस 11 (BRS 11) और बीआरएस 13 (BRS 13) की आनुवंशिक संरचना का अध्ययन किया गया है और इनके जीन्स की तुलना राइज़ोक्टोनिया सोलानी एजी 1-आईए (Rhizoctonia solani AG1-IA group) समूह के कवक के जीनोम से की गई।
  • इसमें कुछ एकल न्यूक्लियोटाइडस बहुरूपों (Single Nucleotide Polymorphisms) की पहचान की गई एवं दोनों प्रकार के कवकों के जीनोम में क्षारकों के जुड़ने तथा विलोपित की भी पहचान की गई है।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, कवकों के जीन्स (Genes) के लक्षणों की लगातार पहचान कियुए जाने से इस भविष्य में इनके रोग को फ़ैलाने में इनकी भूमिका का भी पता चलेगा।
  • विभिन्न बायोटेक्नोलॉजी के माध्यम से जीन्स को संशोधित कर चावल की शीथ ब्लाइट प्रतिरोधी प्रजाति विकसित करने में मदद मिल सकती है।

राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान संस्थान ( (National Institute of Plant Genome Research)

राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान संस्थान (यानी राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान केंद्र) भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग का एक स्वायत्त संस्थान है| इस संस्थान को भारत की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ और प्रोफ़ेसर (डॉ.) जे.सी. बोस के जन्म दिवस पर स्थापित किया गया था| इसकी औपचारिक घोषणा 30 नवंबर,1997 को की गई थी| इस संस्थान की सहायता से भारत पादप आनुवंशिकी (प्लांट जेनोमिक्स) के क्षेत्र में प्रमुख योगदानकर्त्ताओं में से एक बन गया है|

उद्देश्य

  • आधारभूत तथा कार्यात्मक आणविक जीव विज्ञान को उच्च क्षमता की सहायता, समन्वय, प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन प्रदान करना |
  • उन विभिन्न वैज्ञानिक और अनुसंधान अभिकरणों/प्रयोगशालाओं तथा देश के अन्य संगठनों को जो पौध जीन पर कार्य कर रहे हैं, को लगातार आपस में प्रभावी ढंग से जोड़े रखना तथा उनके कार्यों को बढ़ावा देना|
  • आणविक जीव विज्ञान के साथ-साथ टिशू कल्चर और आनुवंशिक अभियांत्रिकी तकनीक के विभिन्न तरीकों का उपयोग करके महत्त्वपूर्ण जीन की पहचान करना तथा उनमें फेरबदल कर ट्रांसजेनिक पौधों को सृजन के साथ उसको कृषि और रोगजनक-रोधी बना कर उत्पादन में सुधार करना|
  • सभी प्रकार के मौलिक जीन विनियमन और मानचित्रण से संबंधित कार्य करना जिससे उपर दिये गए अधिदेशों को पूरा करने में सहायता मिले|
  • ट्रांसजेनिक वनस्पतियों का उत्पादन और परीक्षण करना|
  • उन जीन्स की पहचान करना जो कि रोगाणुओं के अस्तित्व के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, ताकि उनके आधार पर रोग का निवारण किया जा सके|
  • वनस्पति आनुवंशिक अभियांत्रिकी और जीनोम विश्लेषण के क्षेत्र में विभिन्न स्तरों पर अग्रिम प्रशिक्षण देना|
  • वनस्पति जीनोम अनुसंधान में कार्य कर रहे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के साथ सहयोगात्मक तथा पारस्परिक संबंधों का विकास करना|

स्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन

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