भारतीय राजव्यवस्था
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सर्वोच्च न्यायालय
- 13 Jun 2019
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रशांत कनौजिया नामक पत्रकार को जमानत पर तुरंत रिहा करने का आदेश देते हुए कहा कि पत्रकार ने किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करने के उद्देश्य से सोशल मीडिया पर पोस्ट नहीं किया था।
प्रमुख बिंदु
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हम ऐसे देश में रहते है जो संविधान द्वारा संचालित है। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि पत्रकार द्वारा किया गया ट्वीट निंदनीय हैं, लेकिन उसकी गिरफ्तारी और उत्पीड़न द्वारा उस व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के हनन किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम को ‘स्वतंत्रता से वंचित करने का भयावह मामला’ बताया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को फटकार लगते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर मुक्त भाषण और आलोचना को अव्यवस्था के नाम पर प्रतिबंधित नहीं कर सकते। सोशल मीडिया के माध्यम से हम बहुत कुछ सीखते है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में यह साफ किया कि पत्रकार की रिहाई को उसके ट्वीट के समर्थन के तौर पर नहीं, बल्कि स्वतंत्रता के सर्वोच्च संरक्षक की भूमिका के रूप में देखा जाना चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायलय ने सरकार को आदेश देते हुए कहा कि कनौजिया के मामले में कानून के आधार पर प्रक्रिया का पालन करते हुए एवं मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की शर्तों पर याचिकाकर्त्ता के पति (कनौजिया) को तुरंत जमानत पर रिहा किया जाए।
- उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से यह दलील दी गई कि कनौजिया के खिलाफ ‘व्यक्तिगत प्रतिशोध’ के तहत कार्रवाई नहीं की गई थी।
- भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 505 (सार्वजनिक दुर्व्यवहार की निंदा करने वाले बयान) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (Information Technology Act) की धारा 67 (इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण) के तहत गिरफ्तारी के लिये असाधारण कारण लिखित रूप में अपेक्षित हैं।
पृष्ठभूमि
- प्रशांत कनौजिया ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर एक आपत्तिजनक वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था।
मुक्त भाषण या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19)
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत लिखित और मौखिक रूप से अपना मत प्रकट करने हेतु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी प्रदत्त है किंतु इन अधिकारों को निम्नलिखित स्थितियों में बाधित किया जा सकता है-
- भारत की एकता, अखंडता एवं संप्रभुता पर खतरे की स्थिति, वैदेशिक संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव, न्यायालय की अवमानना
- भारत के सभी नागरिकों को विचार करने, भाषण देने और अपने व अन्य व्यक्तियों के विचारों के प्रचार की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression) प्राप्त है। प्रेस/पत्रकारिता भी विचारों के प्रचार का एक साधन ही एक साधन है इसलिये इसमें प्रेस की स्वतंत्रता भी सम्मिलित है।
बंदी प्रत्यक्षीकरण
What is Habeas Corpus?
- हालिया प्रकरण में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका भी दायर की गई थी।
- बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के पास अनुच्छेद 32 के तहत रिट जारी करने का अधिकार होता है।
- ‘Habeas Corpus’ लैटिन भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ ‘को प्रस्तुत किया जाए’ होता है।
- यह उस व्यक्ति के संबंध में न्यायलय द्वारा जारी आदेश होता है, जिसे दूसरे द्वारा हिरासत में रखा गया है। यह किसी व्यक्ति को जबरन हिरासत में रखने के विरुद्ध होता है।
बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट सार्वजनिक प्राधिकरणों या व्यक्तिगत दोनों के विरुद्ध जारी की जा सकती है।
बंदी प्रत्यक्षीकरण कब जारी नहीं की जा सकती है?
- अगर व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया के अंतर्गत हिरासत में लिया गया हो।
- यदि कार्यवाही किसी विधानमंडल या न्यायालय की अवमानना के तहत हुई हो।
- न्यायलय के आदेश द्वारा हिरासत में लिया गया हो।