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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रूस-यूक्रेन संघर्ष

  • 07 Dec 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये

रूस और यूक्रेन की भौगोलिक अवस्थिति, काला सागर

मेन्स के लिये

रूस-यूक्रेन संघर्ष और भारत के लिये इसके निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी खुफिया रिपोर्टों में कहा गया है कि रूस-यूक्रेन सीमा पर तनाव इस क्षेत्र में एक बड़ा सुरक्षा संकट पैदा कर सकता है।

  • यूक्रेन का कहना है कि रूस ने सीमा पर करीब 90,000 सैनिक तैनात किये हैं।

Black-sea

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि
    • यूक्रेन और रूस सैकड़ों वर्षों के सांस्कृतिक, भाषाई और पारिवारिक संबंध साझा करते हैं।
      • रूस और यूक्रेन में कई समूहों के लिये देशों की साझा विरासत एक भावनात्मक मुद्दा है जिसका चुनावी और सैन्य उद्देश्यों के लिये प्रयोग किया गया है।
    • सोवियत संघ के हिस्से के रूप में, यूक्रेन रूस के बाद दूसरा सबसे शक्तिशाली सोवियत गणराज्य था और रणनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक रूप से काफी महत्त्वपूर्ण था।
  • संघर्ष के कारण
    • शक्ति संतुलन: जब से यूक्रेन सोवियत संघ से अलग हुआ है, रूस और पश्चिम दोनों ने इस क्षेत्र में सत्ता संतुलन को अपने पक्ष में रखने के लिये लगातार संघर्ष किया है।
    • पश्चिमी देशों के लिये बफर ज़ोन: अमेरिका और यूरोपीय संघ के लिये यूक्रेन रूस और पश्चिम के बीच एक महत्त्वपूर्ण बफर ज़ोन है।
      • रूस के साथ तनाव बढ़ने से अमेरिका और यूरोपीय संघ यूक्रेन को रूसी नियंत्रण से दूर रखने के लिये दृढ़ संकल्पित हैं।
    • काला सागर’ में रूस की रुचि: काला सागर क्षेत्र का अद्वितीय भूगोल रूस को कई भू-राजनीतिक लाभ प्रदान करता है।
      • सबसे पहले यह पूरे क्षेत्र के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है।
      • काला सागर तक पहुँच सभी तटीय एवं पड़ोसी राज्यों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
      • दूसरे, यह क्षेत्र माल एवं ऊर्जा के लिये एक महत्त्वपूर्ण पारगमन गलियारा है।
    • यूक्रेन में विरोध प्रदर्शन:
      • यूरोमैदान आंदोलन: यूरोमैदान (यूरोपीय स्क्वायर) यूक्रेन में प्रदर्शनों और नागरिक अशांति की एक लहर थी, जो नवंबर 2013 में कीव (यूक्रेन) में ‘नेज़ालेज़्नोस्ती’ मैदान  (‘स्वतंत्रता स्क्वायर’) में सार्वजनिक विरोध के साथ शुरू हुई थी।
        • रूस और यूरेशियन आर्थिक संघ के साथ घनिष्ठ संबंधों को बढ़ावा देने के साथ यूरोपीय संघ के साथ समझौते पर हस्ताक्षर को निलंबित करने के यूक्रेनी सरकार के फैसले के साथ विरोध तेज़ हो गया था।
      • अलगाववादी आंदोलन: पूर्वी यूक्रेन का डोनबास क्षेत्र (डोनेट्स्क और लुहान्स्क क्षेत्र) वर्ष 2014 से रूसी समर्थक अलगाववादी आंदोलन का सामना कर रहा है।
        • यूक्रेन सरकार के अनुसार, आंदोलन को रूसी सरकार द्वारा सक्रिय रूप से समर्थन दिया जाता है और रूसी अर्द्धसैनिक बल यूक्रेन सरकार के खिलाफ अलगाववादियों की संख्या 15% से 80% के बीच है।
    • क्रीमिया पर आक्रमण:
      • रूस ने यूक्रेन से क्रीमिया को जब्त कर लिया था, जो कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार किसी यूरोपीय देश ने किसी अन्य देश के क्षेत्र पर अपना अधिकार स्थापित किया।
      • यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप (Crimean Peninsula) पर कब्ज़ा, क्रीमिया में रूसी सैन्य हस्तक्षेप के बाद हुआ। यह वर्ष 2014 की यूक्रेनी क्रांति के बाद हुआ जो दक्षिणी और पूर्वी यूक्रेन में व्यापक अशांति का हिस्सा था।
      • क्रीमिया के आक्रमण और उसके बाद के विलय ने रूस को इस क्षेत्र में समुद्रतटीय लाभ दिया है। 
    • यूक्रेन की नाटो सदस्यता: यूक्रेन ने उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) से गठबंधन में अपने देश की सदस्यता में तेज़ी लाने का आग्रह किया है।
      • रूस ने इस तरह के एक कदम को "रेड लाइन" घोषित कर दिया है और अमेरिका के नेतृत्त्व वाले सैन्य गठबंधनों तक इसकी पहुँच के परिणामों के बारे में चिंतित है।
      • काला सागर बुल्गारिया, जॉर्जिया, रोमानिया, रूस, तुर्की और यूक्रेन से घिरा है। ये सभी नाटो देश हैं।
      • नाटो देशों और रूस के बीच इस टकराव के कारण काला सागर सामरिक महत्त्व का क्षेत्र है और एक संभावित समुद्री फ्लैशपॉइंट है।
  • मिन्स्क (Minsk) समझौते:
    • Minsk I: यूक्रेन और रूसी समर्थित अलगाववादियों ने सितंबर 2014 में बेलारूस की राजधानी में 12-सूत्रीय युद्धविराम समझौते पर सहमति व्यक्त की।
      • इसके प्रावधानों में कैदी का आदान-प्रदान, मानवीय सहायता की डिलीवरी और भारी हथियारों की वापसी शामिल थी।
      • दोनों पक्षों द्वारा उल्लंघन के बाद यह समझौता शीघ्र टूट गया।
    • Minsk II: वर्ष 2015 में फ्राँस और जर्मनी की मध्यस्थता के तहत 'मिन्स्क II' शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद एक खुला संघर्ष टल गया था।
      • इसे विद्रोही क्षेत्रों में लड़ाई को समाप्त करने और सीमा को यूक्रेन के राष्ट्रीय सैनिकों को सौंपने के लिये डिज़ाइन किया गया था। 
      • इस पर रूस, यूक्रेन के प्रतिनिधियों, सुरक्षा और यूरोप में सहयोग के लिये  संगठन (Organisation for Security and Cooperation in Europe- OSCE) दो रूसी समर्थक अलगाववादी क्षेत्रों के नेताओं द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे।
        • OSCE विश्व का सबसे बड़ा सुरक्षा-उन्मुख अंतर सरकारी संगठन है। इसके जनादेश(Mandate) में हथियार नियंत्रण, मानवाधिकारों को बढ़ावा देना, प्रेस की स्वतंत्रता और निष्पक्ष चुनाव जैसे मुद्दे शामिल हैं।
  •  वर्तमान स्थिति:
    • रूस अमेरिका से आश्वासन मांग रहा है कि यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं किया जाए। हालांँकि अमेरिका ऐसा कोई आश्वासन देने को तैयार नहीं है। 
      • इसने देशों के मध्य गतिरोध की स्थिति उत्पन्न कर दी है, जिस कारण हज़ारों रूसी सैनिक यूक्रेन पर आक्रमण करने के लिये तैयार हैं।
    • पश्चिमी देशों से प्रतिबंधों में राहत और अन्य रियायतें प्राप्त करने के लिये रूस यूक्रेन की सीमा पर तनाव बढ़ा रहा है।
    • रूस के खिलाफ अमेरिका या यूरोपीय संघ द्वारा किसी भी प्रकार की सैन्य कार्रवाई विश्व के समक्ष एक बड़ा संकट उत्पन्न कर देगी और अब तक इसमें शामिल किसी भी पक्ष द्वारा इसपर विचार या बातचीत नहीं की गई है।
  • भारत का रुख: 
    • पश्चिमी शक्तियों द्वारा क्रीमिया में रूस के हस्तक्षेप को लेकर भारत निष्पक्ष बना हुआ है।
    • नवंबर 2020 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) में यूक्रेन द्वारा प्रायोजित एक प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान किया, जिसमें क्रीमिया में कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा की गई थी, जबकि इस मुद्दे पर पुराने सहयोगी रूस द्वारा समर्थन किया गया था।

काला सागर

  • काला सागर पूर्वी यूरोप और पश्चिमी एशिया के बीच स्थित है।
  • यह  दक्षिण, पूर्व और उत्तर में क्रमशः पोंटिक, काकेशस और क्रीमियन की पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
  • काला सागर भी कर्च जलडमरूमध्य द्वारा आज़ोव सागर से जुड़ा हुआ है।
  • तुर्की जलडमरूमध्य प्रणाली- डारडेनेल्स, बोस्फोरस और मरमारा सागर- भूमध्यसागर तथा काला सागर के बीच एक ट्रांज़ीशन ज़ोन के रूप में कार्य करती है
  • काला सागर के सीमावर्ती देशों में- रूस, यूक्रेन, जॉर्जिया, तुर्की, बुल्गारिया और रोमानिया शामिल हैं।
  • काला सागर के जल में ऑक्सीजन की भारी कमी है।

आगे की राह 

  • स्थिति का एक व्यावहारिक समाधान मिन्स्क शांति प्रक्रिया को पुनर्जीवित करना है। अत: इसके लिये अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों को दोनों पक्षों को बातचीत फिर से शुरू करने तथा  सीमा पर सापेक्ष शांति बहाल करने के लिये मिन्स्क समझौते के अनुसार अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने हेतु प्रेरित करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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