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कमज़ोर होता भारतीय रुपया

  • 18 May 2018
  • 4 min read

संदर्भ 

भारतीय रुपये की गिरती कीमतों से अर्थव्यवस्था नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही है। भारतीय मुद्रा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 68.07 के निचले स्तर पर पहुँच गई, जो पिछले 16 महीनों में न्यूनतम है। भारतीय रुपया पहले से ही सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली एशियाई मुद्राओं में से एक है और इसमें 2018 में 6.2 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है।

प्रमुख बिंदु

  • वर्तमान वर्ष के दौरान कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि, पश्चिमी एशिया में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव, घटती आपूर्ति जैसे कारणों से रुपये को नुकसान पहुँचा है एवं व्यापार संतुलन भी प्रभावित हुआ है।
  • इस दौरान भारतीय वस्तुगत व्यापार भी कमज़ोर हुआ है, जबकि इसे मज़बूत होना चाहिये था।
  • अप्रैल माह के दौरान रेडीमेड वस्त्रों और रत्न एवं आभूषण जैसे रोज़गार प्रधान क्षेत्रों के निर्यात में तीव्र गिरावट दर्ज की गई है।
  • व्यापार घाटा अप्रैल 2018 में बढ़कर $13.7 बिलियन हो गया, जो 2017 के अप्रैल माह में $13.25 बिलियन था।
  • पिछले साल से अब तक तेल और पेट्रोलियम उत्पाद आयात का मूल्य 41.5 प्रतिशत बढ़कर $10.4 बिलियन हो गया।
  • तेल की कीमतों के अलावा अमेरिकी मौद्रिक नीति में सख्ती के कारण उभरते बाजारों वाली अर्थव्यवस्थाओं को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस बार भी हालात कमोबेश ऐसे ही बने हुए हैं।
  • कई उभरते बाज़ार वाली अर्थव्यवस्थाओं से पूंजी का बाह्य प्रवाह हो रहा है, जिससे उनकी मुद्राएँ कमज़ोर हो रही हैं।
  • निवेशकों ने अमेरिकी फेडरल बैंक के रवैये को देखते हुए उच्च- जोखिम समायोजित लाभ (higher risk-adjusted yields) की तलाश में उभरते बाजारों से अपना धन निकालना शुरू कर दिया है।
  • विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) ने अप्रैल 2018 में भारतीय पूंजी बाजार से ₹15,500 करोड़ निकाल लिये, जो दिसंबर 2016 के बाद सबसे बड़ा मासिक बहिर्प्रवाह है।
  • इस बहिर्प्रवाह का दो-तिहाई हिस्सा बॉण्ड बाजार से संबंधित था।
  • यद्यपि भारत अर्जेंटीना और तुर्की जैसे देशों की तुलना में बेहतर स्थिति में है, लेकिन इससे आत्मसंतुष्ट नहीं होना चाहिये, क्योंकि बाह्य खाते से संबंधित रिस्क बहुत शीघ्रता से नियंत्रण से बाहर हो सकती है।
  • आरबीआई की बेंचमार्क ब्याज दरों में बढ़ोतरी से पूंजी के पलायन को रोका जा सकता है, लेकिन कोर मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी हो रही है और सरकार संवृद्धि उत्प्रेरण हेतु दरों में कटौती करने की इच्छुक है। ऐसे में आरबीआई के सामने सामंजस्य स्थापित करने की बड़ी चुनौती है।
  • नीति-निर्माताओं को निर्यात में वृद्धि लाने के रास्ते तलाशने होंगे। साथ ही देश के ऊर्जा क्षेत्र पर भी अधिक ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
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