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डेली न्यूज़

भारतीय अर्थव्यवस्था

राजस्व बकाए में वृद्धि

  • 16 Nov 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वित्त आयोग, जीएसटी उपकर   

 मेन्स के लिये:

राज्यों के कर राजस्व में गिरावट, उपकर विवाद, 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 15वें वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जून 2022 तक राज्यों के कर राजस्व में गिरावट और जीएसटी उपकर (GST Cess) के बीच का अंतर 2.3 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 7 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच सकता है।

प्रमुख बिंदु: 

  • गौरतलब है कि 15वें वित्त आयोग ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत की है।
  • आयोग के अनुसार, यदि अगले 20 महीनों में जीएसटी संग्रह में निरंतर वृद्धि नहीं होती है तो ऐसी स्थिति में राज्यों के कर राजस्व में गिरावट और जीएसटी उपकर के बीच का अंतर तीव्र वृद्धि के साथ  5-7 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच सकता है।

  • वस्तुतः राज्यों को दी जाने वाली जीएसटी क्षतिपूर्ति के बकाए में काफी वृद्धि हो सकती है।  
  • वर्तमान वित्तीय वर्ष में राज्यों के कर राजस्व में 3 लाख करोड़ रुपए तक की गिरावट का अनुमान है, जबकि इस दौरान जीएसटी उपकर के रूप में प्राप्त कुल राजस्व 65,000 रुपए ही रह सकता है।
  • ध्यातव्य है कि COVID-19 महामारी से पहले ही देश की अर्थव्यवस्था में कुछ गिरावट देखी जा रही थी परंतु इस महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये लागू देशव्यापी लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था को गंभीर क्षति हुई है। 

राज्यों के कर राजस्व में गिरावट का कारण:

  • गौरतलब है कि जीएसटी प्रणाली में शामिल होने के बाद राज्यों की स्थानीय स्तर पर वस्तुओं और सेवाओं पर अप्रत्यक्ष कर लगाने की शक्ति समाप्त हो गई, जिससे राज्यों की आय में भारी गिरावट देखने को मिली है।
  • केंद्र सरकार के पूर्व अनुमान के अनुरूप जीएसटी के तहत पर्याप्त कर संग्रह न होने के कारण राज्य के राजस्व में कमी हुई है।
  • इस चुनौती को दूर करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा ‘जीएसटी (राज्यों को प्रतिपूर्ति) अधिनियम, 2017’ के तहत कुछ निर्धारित वस्तुओं पर उपकर संग्रहण के माध्यम से राज्यों को अगले पाँच वर्षों  (वर्ष 2017-22) तक जीएसटी के कारण उनके राजस्व में हुई कमी की भरपाई का आश्वासन दिया गया।
  • जीएसटी उपकर में गिरावट को देखते हुए अक्तूबर 2020 में  वित्त आयोग ने जीएसटी उपकर को वर्ष 2022 के बाद भी अनिश्चितकाल (जब तक राज्यों को जून 2022 तक बकाए मुआवज़े का पूरा भुगतान नहीं जाता) के लिये जारी रखने का निर्णय लिया था।

चुनौतियाँ: 

  • 14वें वित्त आयोग के विपरीत वर्तमान वित्त आयोग ने आगामी पाँच वर्षों में प्रत्येक वर्ष के लिये जीडीपी वृद्धि के अलग-अलग अनुमान जारी किये हैं।  
  • गौरतलब है कि 15वें वित्त आयोग ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट जारी करते समय कई आर्थिक बदलावों (जैसे-विमुद्रीकरण और जीएसटी आदि) के कारण देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट के बीच अगले पाँच वर्षों के लिये जीडीपी वृद्धि का विश्वसनीय अनुमान जारी करने को अत्यंत कठिन बताया था।

राज्यों को कर हस्तांतरण:  

  • 15वें वित्त आयोग द्वारा राज्यों की हिस्सेदारी के निर्धारण हेतु वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों को आधार बनाए जाने पर कई राज्यों ने चिंता व्यक्त की थी।
  • राज्यों के अनुसार, वर्ष 1971 के बाद से जनसंख्या नियंत्रण की योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू करने के कारण उनकी हिस्सेदारी जनसंख्या बाहुल्य राज्यों की अपेक्षा कम  हो जाएगी।
  • इस चुनौती को दूर करने के लिये 15वें वित्त आयोग द्वारा राज्यों की हिस्सेदारी के निर्धारण के लिये कुल प्रजनन अनुपात को एक अतिरिक्त मानक के रूप में शामिल किया गया है।
  • आयोग ने महत्त्वपूर्ण सुधारों को आगे बढ़ाने हेतु राज्यों के लिये संभावित प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन पर भी ध्यान दिया है।    

15वाँ वित्त आयोग: 

  • 15वें वित्त आयोग का गठन 27 नवंबर, 2017 को किया गया था।
  • योजना आयोग के पूर्व सदस्य श्री एन. के सिंह को 15वें वित्त आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
    • गौरतलब है कि श्री एन.के. सिंह भारत सरकार के पूर्व सचिव एवं वर्ष 2008-2014 तक बिहार से राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं।
  • 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें वित्तीय वर्ष 2020-25 तक पाँच साल की अवधि में लागू की जाएंगी।

स्रोत: द हिंदू     

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