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भारतीय अर्थव्यवस्था

कच्चे पाम तेल हेतु कृषि उपकर में कमी

  • 15 Feb 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कृषि अवसंरचना विकास उपकर (AIDC), क्रूड पाम ऑयल (CPO), राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन-ऑयल पाम (NMEO-OP) योजना, NFSM (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन), तिलहन फसल के लिये खरीफ रणनीति 2021।

मेन्स के लिये:

भारत में खाद्य तेलों का उत्पादन और कम आत्मनिर्भरता का कारण, इस दिशा में उठाए गए कदम।

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने 12 फरवरी, 2022 से क्रूड पाम ऑयल (CPO) के लिये कृषि अवसंरचना विकास उपकर (AIDC) को 7.5% से घटाकर 5% कर दिया है।

पाम ऑयल:

  • पाम तेल वर्तमान में विश्व का सबसे अधिक खपत वाला वनस्पति तेल है।
  • इसका उपयोग डिटर्जेंट, प्लास्टिक, सौंदर्य प्रसाधन और जैव ईंधन के उत्पादन में बड़े पैमाने पर किया जाता है।
  • कमोडिटी के शीर्ष उपभोक्ता भारत, चीन और यूरोपीय संघ (EU) हैं।

कृषि अवसंरचना विकास उपकर (AIDC):

  • उपकर (Cess) एक प्रकार का विशेष प्रयोजन कर है जो मूल दरों पर अतिरिक्त रूप से लगाया जाता है।
  • नए AIDC का उद्देश्य कृषि बुनियादी ढाँचे के विकास पर निवेश हेतु वित्त एकत्रित करना है।
  • AIDC का उपयोग न केवल उत्पादन को बढ़ावा देने बल्कि कृषि उत्पादन को कुशलतापूर्वक संरक्षित और संसाधित करने में मदद के उद्देश्य से कृषि बुनियादी ढाँचे में सुधार हेतु प्रस्तावित है।

महत्त्व:

  • यह निर्णय उपभोक्ताओं को और अधिक राहत प्रदान करने तथा वैश्विक स्तर पर खाद्य तेलों की कीमतों में वृद्धि के कारण घरेलू खाद्य तेलों की कीमतों को बढ़ने से रोकने के लिये लिया गया है।
    • कृषि उपकर में कमी के बाद ‘कच्चा पाम ऑयल’ और ‘रिफाइंड पाम ऑयल’ के बीच आयात कर अंतर बढ़कर 8.25% हो गया है।
    • कच्चा पाम ऑयल और रिफाइंड पाम ऑयल के बीच अंतर बढ़ने से घरेलू रिफाइनिंग उद्योग को रिफाइनिंग के लिये कच्चे तेल का आयात करने में फायदा होगा।

खाद्य तेलों की कीमतों के नियंत्रण हेतु उठाए गए कदम: 

  • वर्तमान मूल दर में वृद्धि:
    • सरकार ने क्रूड पाम ऑयल, क्रूड सोयाबीन ऑयल और क्रूड सनफ्लावर ऑयल पर आयात शुल्क की वर्तमान मूल दर को 30 सितंबर, 2022 तक के लिये बढ़ा दिया है।
      • रिफाइंड पाम ऑयल पर 12.5 फीसदी, रिफाइंड सोयाबीन ऑयल और रिफाइंड सनफ्लावर ऑयल पर 17.5 फीसदी की आयात शुल्क दर 30 सितंबर, 2022 तक लागू रहेगी।
      • इससे उन खाद्य तेलों की कीमतों को कम करने में मदद मिलेगी, जिनकी कम उपलब्धता और अन्य अंतर्राष्ट्रीय कारकों के कारण उनमें अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेज़ी का रुख देखा जा रहा है।
  • लागू स्टॉक सीमा:
    • जमाखोरी पर लगाम लगाने हेतु सरकार ने पहले आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत 30 जून, 2022 तक की अवधि के लिये खाद्य तेलों और तिलहनों पर स्टॉक सीमा मात्रा लगाई थी।
      • इस उपाय से बाज़ार में खाद्य तेलों और तिलहनों की जमाखोरी, कालाबाज़ारी आदि जैसे किसी भी अनुचित व्यवहार पर अंकुश लगने की उम्मीद है, ताकि खाद्य तेलों की कीमतों में वृद्धि न हो।
  • राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन- पाम ऑयल (NMEO-OP):
    • अगस्त 2021 में सरकार द्वारा खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता के लिये खाद्य तेल पर राष्ट्रीय मिशन’- ऑयल पाम (NMEO-OP) योजना की घोषणा की है और इसमें 11,000 करोड़ रुपए (पांँच साल की अवधि में) से अधिक का निवेश शामिल है। 

भारत में खाद्य तेल अर्थव्यवस्था:

  • इसकी दो प्रमुख विशेषताएँ हैं जिन्होंने इस क्षेत्र के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। पहली, वर्ष 1986 में तिलहन पर प्रौद्योगिकी मिशन की स्थापना जिसे वर्ष 2014 में तिलहन और पाम तेल पर एक राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Oilseeds and Oil Palm) में बदल दिया गया था।
  • इससे तिलहन के उत्पादन को बढ़ाने के सरकार के प्रयासों को बल मिला। यह तिलहन के उत्पादन में वर्ष 1986-87 के लगभग 11.3 मिलियन टन से वर्ष 2019-20 में 33.22 मिलियन टन की वृद्धि से स्पष्ट हो जाता है।
  • अन्य प्रमुख विशेषता जिसका खाद्य तिलहन/तेल उद्योग की वर्तमान स्थिति पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, वह है उदारीकरण कार्यक्रम जिसके अंतर्गत सरकार की आर्थिक नीति खुले बाज़ार को अधिक स्वतंत्रता देती है तथा सुरक्षा एवं नियंत्रण के बजाय स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा और स्व-नियमन को प्रोत्साहित करती है। 
  • पीली क्रांति (Yellow Revolution) उन क्रांतियों में से एक है जिन्हें देश में खाद्य तिलहन के उत्पादन को बढ़ाने के लिये शुरू किया गया था।
  • सरकार ने तिलहन के लिये खरीफ रणनीति (Kharif Strategy), 2021 भी शुरू की है।
    • यह तिलहन की खेती के अंतर्गत 6.37 लाख हेक्टेयर अतरिक्त क्षेत्र लाएगा और इससे 120.26 लाख क्विंटल तिलहन तथा 24.36 लाख क्विंटल खाद्य तेल का उत्पादन होने की संभावना है।
  • भारत में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले तेलों में मूँगफली, सरसों, रेपसीड, तिल, कुसुम, अलसी, नाइजर बीज, अरंडी पारंपरिक रूप से उगाए जाने वाले प्रमुख तिलहन हैं।
    •  हाल के वर्षों में सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल का भी महत्त्व बढ़ा है।
    • बगानी फसलों में नारियल सबसे महत्त्वपूर्ण है।

खाद्य तेल उत्पादन में भारत के आत्मनिर्भर होने में बाधाएँ:  

  • भारत में तिलहन और तेल उत्पादकों के लिये सूक्ष्म सिंचाई, गुणवत्तापूर्ण बीज, विपणन बुनियादी ढांँचा और सरकारी नीतियांँ चार मुख्य चिंताएंँ हैं।
  • उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अनुसार, देश में खाद्य तेलों की कुल घरेलू मांग लगभग 250 लाख मीट्रिक टन प्रतिवर्ष है। 
    • देश में खपत होने वाले खाद्य तेलों का लगभग 60% आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है। पाम तेल (कच्चा + परिष्कृत) का आयात कुल खाद्य तेल के आयात का लगभग 60% है, जिसमें से 54% इंडोनेशिया और मलेशिया से आयात किया जाता है।

आगे की राह

  • अब तक तिलहन के उत्पादन की कोई व्यापक रणनीति मौजूद नहीं है।
    • किसान बाज़ार भाव के हिसाब से खेती करते हैं लेकिन जब बंपर उत्पादन होता है तो सरकार तेल और अन्य उत्पादों का आयात करती है जिसके परिणामस्वरूप कीमतों में गिरावट आती है।
  • अब समय आ गया है कि सरकार के पास खेती, विपणन और आयात-निर्यात के संबंध में कोई योजना हो। 
    • सरकार को उत्पादन बढ़ाने के लिये तिलहन हेतु आनुवंशिक रूप से संशोधित खेती को मंज़ूरी देनी चाहिये।
  • जब सीड ऑयल उत्पादन बढ़ाने की बात आती है तो नीति प्रमुख समस्या होती है। वर्षों से किसान मूँगफली और सूरजमुखी का उत्पादन करते रहे हैं, लेकिन बेमौसम बारिश एवं कीटों के कारण उन्होंने सोया की कृषि की ओर रुख किया है।
  • इस प्रकार तकनीकी सहायता के साथ एक सूक्ष्म-स्तरीय योजना होनी चाहिये। दुनिया ने जीएम तिलहन की खेती को स्वीकार कर लिया है और अब समय आ गया है कि भारत भी इस मामले पर विचार करे।

स्रोत: पी.आई.बी.

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