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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 15 मई, 2020

  • 15 May 2020
  • 7 min read

‘होप’ पोर्टल

हाल ही में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्य कुशल तथा अकुशल कामगार युवाओं का डाटा बेस तैयार करने के उद्देश्य से ‘होप’ (HOPE- Helping Out People Everywhere) नाम से एक पोर्टल की शुरुआत की है। इस पहल का प्रमुख उद्देश्य युवाओं को रोज़गार के साधन उपलब्ध कराना है। विदित हो कि कुछ दिन राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री स्वरोज़गार योजना का शुभारंभ किया था, इस योजना के सुचारु कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने और योजना के साथ समन्वय स्थापित करने में यह पोर्टल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उत्तराखंड सरकार का यह पोर्टल राज्य के कुशल तथा अकुशल कामगार युवाओं और उत्तराखंड के कौशल विकास विभाग के माध्यम से प्रशिक्षण प्राप्त करने के इच्छुक लोगों के लिये एक सेतु के रूप में कार्य करेगा। इस पोर्टल के डाटा बेस का उपयोग राज्य के सभी विभागों तथा अन्य रोज़गार प्रदाताओं द्वारा युवाओं को स्वरोज़गार/रोज़गार से जोड़ने के लिये किया जाएगा। इस पोर्टल का निर्माण राज्य के IT विभाग, कौशल विकास विभाग, नियोजन विभाग एवं राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Centre-NIC) द्वारा आपसी समन्वय के माध्यम से किया गया है। उल्लेखनीय है कि कोरोनावायरस के कारण भारत समेत विश्व के लगभग सभी देश प्रभावित हुए हैं, साथ ही इसके प्रसार को रोकने के लिये देश भर में लॉकडाउन भी लागू किया है, इस लॉकडाउन के कारण दैनिक आजीविका के अभाव में कई लोग अपने राज्य वापस लौट रहे हैं, ऐसे में इन लोगों को आजीविका का उचित साधन उपलब्ध कराना राज्य सरकार के लिये काफी महत्त्वपूर्ण चुनौती बन गई है।

उद्धव ठाकरे

महाराष्‍ट्र में मुख्‍यमंत्री उद्धव ठाकरे और आठ अन्‍य उम्‍मीदवारों को राज्‍य विधान परिषद के लिये निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया गया है। ध्यातव्य है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने 28 नवंबर, 2019 को राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य हुए बिना राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। किंतु संविधान के अनुच्छेद 164 (4) के अनुसार, उन्हें 27 मई से पूर्व राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन में निर्वाचित होना अनिवार्य था, यदि ऐसा नहीं होता तो मुख्यमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल समाप्त हो जाता। वहीं चुनाव आयोग ने पहले ही COVID-19 महामारी के मद्देनज़र राज्यसभा चुनाव, उपचुनाव और नागरिक निकाय चुनाव स्थगित कर दिये थे, जिसके कारण महाराष्ट्र सरकार और उद्धव ठाकरे के समक्ष बड़ा राजनीतिक और संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया था। अनुच्छेद 164 (4) के अनुसार, कोई मंत्री यदि निरंतर 6 माह की अवधि तक राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं होता है तो उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री का कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा, इस स्थिति में संविधान का यही प्रावधान महाराष्ट्र सरकार के समक्ष चुनौती उत्पन्न कर रहा था।

अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस

प्रत्येक वर्ष 15 मई को वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस (International Day of Families) मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य संयुक्त परिवार के महत्त्व और सामाजिक, आर्थिक एवं जनसांख्यिकीय प्रगति से संबंधित मुद्दों को लेकर जागरुकता बढ़ाना है। ध्यातव्य है कि परिवार एक प्रकार से समाज की मूल इकाई है, जिसके अभाव में समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। संयुक्त परिवार के महत्त्व को बनाए रखने के लिये वर्ष 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने प्रत्येक वर्ष 15 मई को अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी, जिसके पश्चात् सर्वप्रथम वर्ष 1996 में अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस का आयोजन किया गया था। ध्यातव्य है कि आधुनिक समाज में परिवारों का विघटन ही अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस मनाने का मुख्य कारण है। संयुक्त परिवार से उन्नति के रास्ते खुलते हैं जबकि एकल परिवार और अकेलेपन से विकास की गति धीमी रहती है। अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस का मूल उद्देश्य युवाओं को परिवार के प्रति जागरूक करना है।

प्रोफेसर अनिसुज्जमन

पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित और बांग्लादेश के राष्ट्रीय प्रोफेसर (National Professor) अनीसुज्जमान का 83 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। ध्यातव्य है कि प्रोफेसर अनिसुज्जमन ने शोध और लेखन के माध्यम से बांग्ला भाषा और साहित्य में अतुल्य योगदान दिया। भारत ने उन्हें बांग्ला साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान को देखते हुए उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया था। वर्ष 2015 में उन्हें साहित्य में उनके योगदान के लिये बांग्लादेश सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान, ‘स्वाधीनता पुरस्कार’ (Swadhinata Puraskar) से सम्मानित किया गया था। फरवरी 1937 में कोलकाता में जन्मे, प्रोफेसर अनिसुज्जमन और उनका परिवार वर्ष 1947 में विभाजन के पश्चात् बांग्लादेश चले गए थे। वर्ष 1952 के भाषा आंदोलन से लेकर 1972 में लिबरेशन वॉर तक सभी लोकतांत्रिक आंदोलनों में प्रोफेसर अनिसुज्जमन ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। प्रोफेसर अनिसुज्जमन को वर्ष 2018 में बांग्लादेश सरकार द्वारा राष्ट्रीय प्रोफेसर (National Professor) के रूप में नामित किया गया था।

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