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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 04 अप्रैल, 2020

  • 04 Apr 2020
  • 7 min read

चिकित्सा पेशेवरों के लिये बायो सूट

रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO) ने कोरोनावायरस (COVID-19) से लड़ने में मदद कर रहे चिकित्सा पेशेवरों को सुरक्षित रखने के लिये एक बायो सूट विकसित किया है। DRDO ने इस बायो सूट में नैनो प्रौद्योगिकी और कोटिंग में अपनी विशेषज्ञता का उपयोग किया है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह बायो सूट स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा निर्धारित मानदंडों से भी बेहतर है। ध्यातव्य है कि यह सूट सिंथेटिक रक्त से भी सुरक्षा प्रदान करता है, सिंथेटिक रक्त कृत्रिम रूप से बनाया गया रक्त है जो एक मरीज़ को 48 घंटे तक आघात से बचाए रखता है। चिकित्सा पेशेवरों के लिये इस सूट का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाएगा। वर्तमान में इसकी उत्पादन क्षमता 7,000 प्रतिदिन है। DRDO की स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (Defence Science Organisation- DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (Technical Development Establishment-TDEs) और तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (Directorate of Technical Development & Production- DTDP) के संयोजन के पश्चात् किया गया था। यह रक्षा प्रणालियों के डिज़ाइन एवं विकास के साथ-साथ भारत को तीनों सेनाओं की आवश्यकताओं के अनुसार विश्व स्तर की हथियार प्रणाली एवं उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कार्य कर रहा है।

COVID-19 से मुकाबले के लिये 1 बिलियन डॉलर का फंड

विश्व बैंक ने कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी से निपटने के लिये भारत को 1 बिलीयन डॉलर का फंड उपलब्ध कराया है। उल्लेखनीय है कि यह विश्व बैंक द्वारा भारत को दिया गया अब तक का सबसे बड़ा अनुदान है। विश्व बैंक का यह अनुदान भारत के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को कवर करेगा। आधिकारिक सूचना के अनुसार, विश्व बैंक द्वारा दिये गए इस फंड का प्रबंधन राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज कंट्रोल और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) द्वारा किया जाएगा। इस फंड के माध्यम से कोरोनावायरस से लड़ने हेतु विभिन्न आवश्यक कदम जैसे- परीक्षण किटों की खरीद, आइसोलेशन वार्डों की स्थापना और सुरक्षा उपकरणों की खरीद आदि उठाए जाएंगे। विश्व बैंक संयुक्त राष्ट्र की ऋण प्रदान करने वाली एक विशिष्ट संस्था है, जिसका उद्देश्य है सदस्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं को एक वृहद वैश्विक अर्थव्यवस्था में शामिल करना तथा विकासशील देशों में गरीबी उन्मूलन के प्रयास करना। यह नीति सुधार कार्यक्रमों एवं संबंधित परियोजनाओं के लिये ऋण प्रदान करता है। विश्व बैंक की सबसे प्रमुख बात यह है कि यह केवल विकासशील देशों को ही ऋण प्रदान करता है। इसकी स्थापना वर्ष 1944 में हुई थी और इसका मुख्यालय वाशिंगटन डी सी (अमेरिका) में अवस्थित है।

COVID-19 से संबंधित शिकायतों के लिये डैशबोर्ड

कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री ने हाल ही में COVID-19 से संबंधित शिकायतों के लिये राष्ट्रीय निगरानी डैशबोर्ड शुरू किया है। इस डैशबोर्ड का संचालन प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (DARPG) द्वारा किया जाएगा। इस डैशबोर्ड की स्थापना का उद्देश्य COVID-19 से संबद्ध गतिविधियों का त्वरित और समयबद्ध कार्यान्वयन सुनिश्चित करना है। डैशबोर्ड की शुरुआत के पहले ही दिन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से 43 शिकायतें, वित्त मंत्रालय से 26 शिकायतें और विदेश मंत्रालय से 31 शिकायतें प्राप्त हुईं। सूचना के अनुसार, सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा दैनिक आधार पर इस शिकायत पोर्टल की निगरानी की जाएगी। 

मुंबई नेवल डॉकयार्ड की टेंपरेचर सेंसर गन 

नौसेना के मुंबई स्थित डॉकयार्ड ने एक सस्ती टेंपरेचर सेंसर गन (तापमान मापक) विकसित की है, जिसका डिज़ाइन, निर्माण और उत्पादन मुंबई नेवल डॉकयार्ड द्वारा स्वयं किया गया है। इस तापमान मापक के निर्माण के लिये आवश्यक संसाधन भी मुंबई नेवल डॉकयार्ड द्वारा ही जुटाए गए हैं। इसका प्रयोग डॉकयार्ड के द्वार पर प्रवेश करने वाले कर्मियों की जाँच के लिये किया जाएगा। इस टेंपरेचर सेंसर गन की निर्माण लागत 1000 रुपए से भी कम है, जो कि बाज़ार में मौजूद अन्य टेंपरेचर सेंसर गनों की अपेक्षा काफी सस्ताी है। इस टेंपरेचर सेंसर गन की सटीकता 0.2 डिग्री सेल्सियस है और इसमें एक एलईडी डिस्प्ले (LED Display) तथा एक इन्फ्रारेड सेंसर है। उल्लेखनीय है कि नौसेना के मुंबई स्थित डॉकयार्ड में तकरीबन 20,000 से अधिक कर्मी प्रवेश करते हैं। कोरोनावायरस के प्रकोप के बाद से देश में टेम्परेचर गन और नॉन-टच थर्मामीटर की कमी हो गई है। इस नई टेम्परेचर गन से डॉकयार्ड को अपनी स्क्रीनिंग प्रक्रिया को तेज़ करने में मदद मिलेगी।

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