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जैव विविधता और पर्यावरण

वैश्विक जलवायु स्थिति पर अनंतिम रिपोर्ट

  • 04 Dec 2020
  • 9 min read

चर्चा में क्यों? 

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की हालिया वैश्विक जलवायु स्थिति अनंतिम रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2020 अब तक के तीन सबसे गर्म वर्षों में से एक बनने वाला है। इसके अलावा 2011-2020 का दशक अब तक का सबसे गर्म दशक होगा।

  • ध्यातव्य है कि यह केवल अनंतिम रिपोर्ट (Provisional Report) है और अंतिम रिपोर्ट (Final Report) मार्च 2021 में प्रस्तुत की जाएगी। वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि की गंभीरता को जाँचने के लिये प्रत्येक वर्ष वैश्विक जलवायु स्थिति का प्रकाशन किया जाता है। 
  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) संयुक्त राष्ट्र (UN) की विशिष्ट एजेंसियों में से एक है, जिसका मुख्यालय जिनेवा (Geneva) में स्थित है।

प्रमुख बिंदु

वैश्विक तापमान में वृद्धि

  • अनंतिम रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी-अक्तूबर 2020 की अवधि में वैश्विक औसत सतह तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर (1850-1900) से 1.2 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
    • वैज्ञानिकों ने संभावना व्यक्त की है कि तापमान में यह अंतर वर्ष 2024 तक अस्थायी रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो सकता है।
    • पेरिस समझौते का उद्देश्य वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को काफी हद तक कम करना है, ताकि इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस कम रखा जा सके। इसके साथ ही आगे चलकर तापमान वृद्धि को और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक कम रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2016 और वर्ष 2019 के बाद वर्ष 2020 अब तक के तीन सबसे गर्म वर्षों में से एक होगा।
    • अगस्त और अक्तूबर माह में भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में ला-नीना की स्थिति के बावजूद वर्ष 2020 में इतनी अधिक गर्मी रिकॉर्ड की गई है।
    • ला-नीना, अल-नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO) की घटना का एक चरण है जो कि सामान्य तौर पर विश्व के विभिन्न हिस्सों में ठंडा प्रभाव छोड़ता है और इससे समुद्र की सतह का तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है।

महासागरीय सतह का उच्च तापमान

  • वर्ष 2020 में अब तक तकरीबन 80 प्रतिशत महासागरीय सतह (Ocean Surfaces) में कम-से-कम एक बार समुद्री हीट वेव (Marine Heat Wave-MHW) दर्ज की गई है।
    • हीट वेव असामान्य रूप से उच्च तापमान की वह स्थिति है, जिसमें तापमान सामान्य से अधिक रहता है और यह मुख्यतः देश के उत्तर-पश्चिमी भागों को प्रभावित करता है।
    • समुद्री हीट वेव (MHW) के दौरान समुद्र की सतह (300 फीट या उससे अधिक की गहराई तक) का औसत तापमान सामान्य से 5-7 डिग्री अधिक बढ़ जाता है।
    • यह घटना या तो वातावरण और महासागर के बीच स्थानीय रूप से निर्मित ऊष्मा प्रवाह के कारण या अल-नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO) के कारण हो सकती है।
    • वर्ष 2020 में मज़बूत समुद्री हीट वेव (Strong MHW) की घटनाएँ अधिक (43 प्रतिशत) थीं, जबकि मध्यम समुद्री हीट वेव (Moderate MHW) की घटनाएँ तुलनात्मक रूप से कम (28 प्रतिशत) थीं।
  • वर्ष 2020 में वैश्विक समुद्री स्तर की वृद्धि भी वर्ष 2019 के समान ही रही। ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में बर्फ का पिघलना इसका मुख्य कारण है।

कारण: वैज्ञानिक प्रमाण से पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर लगातार तापमान में हो रही बढ़ोतरी ग्लोबल वार्मिंग का प्रत्यक्ष परिणाम है, जो कि ग्रीनहाउस गैसों (GHH) के उत्सर्जन, भूमि के उपयोग में परिवर्तन और शहरीकरण आदि का प्रभाव है।

  • वर्ष 2019 में ग्रीनहाउस गैसों (GHH) के रिकॉर्ड उत्सर्जन के बाद वर्ष 2020 के शुरुआती महीनों में कोरोना वायरस महामारी से मुकाबले के लिये अपनाए गए उपायों जैसे- देशव्यापी लॉकडाउन आदि के कारण ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कुछ कमी आई थी।
  • हालाँकि मौना लोआ (हवाई) और केप ग्रिम (तस्मानिया) समेत विशिष्ट स्थानों के वास्तविक समय के आँकड़ों से संकेत मिलता है कि वर्ष 2020 में कार्बन डाआक्साइड (CO2), मीथेन (CH4) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (N2O) के स्तर में वृद्धि जारी रही है।

वर्ष 2020 में ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव

  • वर्ष 2020 में ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावस्वरूप उष्णकटिबंधीय चक्रवातों, बाढ़, भारी वर्षा और सूखे जैसी मौसमी घटनाओं ने दुनिया के अधिकांश हिस्सों को प्रभावित किया है, साथ ही इस वर्ष वनाग्नि की घटनाओं में भी बढ़ोतरी देखने को मिली है।
    • अटलांटिक हरिकेन मौसम: वर्ष 2020 में अटलांटिक हरिकेन मौसम में जून से नवंबर माह तक 30 तूफान आए हैं, जो कि अब तक की सबसे अधिक संख्या है। अटलांटिक हरिकेन मौसम की अवधि 1 जून से 30 नवंबर के मध्य होती है।
    • भारी वर्षा: एशिया और अफ्रीका के कई हिस्सों में भारी वर्षा और बाढ़ की घटनाएँ दर्ज की गईं।
    • सूखा: इस वर्ष दक्षिण अमेरिका में गंभीर सूखे का अनुभव किया गया और उत्तरी अर्जेंटीना, ब्राज़ील एवं पराग्वे के पश्चिमी क्षेत्र इससे सबसे अधिक प्रभावित हुए।
  • समुद्र स्तर में बढ़ोतरी: बर्फ के पिघलने से समुद्र स्तर में वृद्धि हुई है, जो कि छोटे द्वीप राष्ट्रों के अस्तित्त्व के लिये एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है।
    • यदि सदी के अंत तक समुद्र स्तर में इसी तरह की वृद्धि जारी रहती है तो इसके कारण ये छोटे द्वीप राष्ट्र समुद्र में डूब जाएंगे और वहाँ रहने वाली आबादी बेघर हो जाएगी।
  • मानवता को नुकसान
    • जनसंख्या की आवाजाही में वृद्धि: तापमान में हो रही वृद्धि ने न केवल लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिये मजबूर किया है, बल्कि इसके कारण पलायन करने वाले लोगों की चुनौतियाँ भी काफी बढ़ गई हैं।
    • कृषि क्षेत्र को नुकसान: इस वर्ष अकेले ब्राज़ील में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कृषि घाटा दर्ज किया गया है।
    • जान-माल और आजीविका का नुकसान: तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी के कारण अफ्रीका और एशिया के विभिन्न देशों को काफी अधिक जान-माल एवं आजीविका के नुकसान का सामना करना पड़ा है।

आगे की राह

  • आवश्यक है कि पर्यावरणीय मुद्दों को राष्ट्रीय और रणनीतिक हित अथवा आर्थिक हित जैसे मुद्दों की तुलना में अधिक वरीयता दी जाए।
  • संयुक्त राष्ट्र के आकलन के मुताबिक, पेरिस समझौते के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये सभी देशों को अपने गैस, तेल और कोयले के उत्पादन में प्रतिवर्ष छह प्रतिशत की गिरावट करनी होगी।
  • ग्रीनहाउस गैसों (GHH) के उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करने के लिये हमें पेरिस समझौते के तहत उल्लिखित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (INDC) से कहीं अधिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।
    • हालाँकि इसका उपयोग विकासशील देशों पर उनके ग्लोबल वार्मिंग से संबंधित लक्ष्यों को पूरा करने के लिये दबाव डालने हेतु नहीं किया जाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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