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डेली न्यूज़

भारतीय राजव्यवस्था

विशेषाधिकार प्रस्ताव

  • 12 Nov 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संसदीय विशेषाधिकार, राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण, सिविल प्रक्रिया संहिता

मेन्स के लिये:

विशेषाधिकारों का वर्गीकरण, विशेषाधिकार का अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंध

चर्चा में क्यों?

राज्यसभा में कॉन्ग्रेस के मुख्य सचेतक ने राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (NMA) के अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर केंद्रीय संस्कृति मंत्री के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव लाने की मांग की।

  • NMA के वर्तमान अध्यक्ष की शैक्षिक और व्यावसायिक पृष्ठभूमि मार्च 2010 में संसद द्वारा पारित कानून की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती है।

राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (NMA):

  • स्थापना: NMA की स्थापना ‘प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्त्व स्थल और अवशेष (संशोधन और सत्यापन) अधिनियम’ (AMASR) के प्रावधानों के अनुसार, संस्कृति मंत्रालय के तहत की गई है, जिसे मार्च 2010 में अधिनियमित किया गया था।
  • कार्य: केंद्र द्वारा संरक्षित स्मारकों के आसपास निषिद्ध और विनियमित क्षेत्रों के प्रबंधन के माध्यम से स्मारकों एवं स्थलों के संरक्षण व सुरक्षा के लिये NMA को कई कार्य सौंपे गए हैं।
    • NMA प्रतिबंधित और विनियमित क्षेत्रों में निर्माण संबंधी गतिविधियों के लिये आवेदकों को अनुमति देने पर भी विचार करता है।
  • अध्यक्ष की नियुक्ति के लिये योग्यता: AMASR अधिनियम कहता है कि NMA के अध्यक्ष के पास "पुरातत्त्व, देश और नगर नियोजन, वास्तुकला, विरासत, संरक्षण वास्तुकला या कानून के क्षेत्र में अनुभव और विशेषज्ञता होनी चाहिये।”

प्रमुख बिंदु

  • परिचय: यह एक मंत्री द्वारा संसदीय विशेषाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित है।
  • संसदीय विशेषाधिकारों का उल्लंघन: संसदीय विशेषाधिकार व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से संसद सदस्यों द्वारा प्राप्त कुछ अधिकार और उन्मुक्तियाँ हैं, ताकि वे ‘प्रभावी रूप से अपने कार्यों का निर्वहन’ कर सकें।
    • जब इनमें से किसी भी अधिकार और उन्मुक्ति की अवहेलना की जाती है, तो अपराध को विशेषाधिकार का उल्लंघन कहा जाता है और यह संसद के कानून के तहत दंडनीय है।
    • किसी भी सदन के सदस्य द्वारा विशेषाधिकार के उल्लंघन के दोषी पाए जाने वाले के खिलाफ प्रस्ताव के रूप में एक नोटिस पेश किया जाता है।
    • इसका मकसद संबंधित मंत्री की निंदा करना है।
  • स्पीकर/राज्यसभा (RS) अध्यक्ष की भूमिका:
    • स्पीकर/राज्यसभा अध्यक्ष विशेषाधिकार प्रस्ताव की जाँच का पहला स्तर है।
    • स्पीकर/अध्यक्ष विशेषाधिकार प्रस्ताव पर स्वयं निर्णय ले सकता है या इसे संसद की विशेषाधिकार समिति को संदर्भित कर सकता है।
      • यदि स्पीकर/सभापति प्रासंगिक नियमों के तहत सहमति देता है, तो संबंधित सदस्य को एक संक्षिप्त वक्तव्य देने का अवसर दिया जाता है।
  • विशेषाधिकार को नियंत्रित करने वाले नियम:
    • लोकसभा नियम पुस्तिका के अध्याय 20 में नियम संख्या 222 और राज्यसभा नियम पुस्तिका के अध्याय 16 में नियम 187 के अनुरूप विशेषाधिकार को नियंत्रित करती है।
    • नियम कहते हैं कि कोई भी सदस्य, अध्यक्ष या चेयरपर्सन की सहमति से किसी सदस्य या सदन या उससे संबंधित समिति के विशेषाधिकार के उल्लंघन के संबंध में प्रश्न उठा सकता है।

संसदीय विशेषाधिकार

  • संसदीय विशेषाधिकार का आशय संसद के दोनों सदनों, उनकी समितियों और उनके सदस्यों द्वारा प्राप्त विशेष अधिकार, उन्मुक्तियाँ और छूट प्रदान करना है।
  • संविधान उन व्यक्तियों को भी संसदीय विशेषाधिकार प्रदान करता है जो संसद के किसी सदन या उसकी किसी समिति की कार्यवाही में बोलने और भाग लेने के हकदार हैं। इनमें भारत के महान्यायवादी और केंद्रीय मंत्री शामिल हैं।
  • संसदीय विशेषाधिकार राष्ट्रपति को नहीं मिलते जो संसद का अभिन्न अंग भी है। संविधान का अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति को विशेषाधिकार प्रदान करता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 105 में स्पष्ट रूप से दो विशेषाधिकारों का उल्लेख है, अर्थात् संसद में बोलने की स्वतंत्रता और इसकी कार्यवाही के प्रकाशन का अधिकार।
  • संविधान में निर्दिष्ट विशेषाधिकारों के अलावा सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 सदन या उसकी समिति की बैठक के दौरान और उसके प्रारंभ होने से 40 दिन पहले तथा इसके समापन के 40 दिन बाद तक सिविल प्रक्रिया के अंतर्गत सदस्यों को गिरफ्तारी व हिरासत से मुक्ति प्रदान कर सकती है।
  • ध्यातव्य है कि संसद ने अब तक सभी विशेषाधिकारों को व्यापक रूप से संहिताबद्ध करने हेतु कोई विशेष कानून नहीं बनाया है।

विशेषाधिकार समिति

  • यह एक स्थायी समिति है। यह सदन और उसके सदस्यों के विशेषाधिकारों के उल्लंघन के मामलों की जाँच करती है तथा उचित कार्रवाई की सिफारिश करती है।
  • लोकसभा समिति में 15 सदस्य होते हैं, जबकि राज्यसभा समिति में 10 सदस्य होते हैं।

स्रोत: द हिंदू

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