भारतीय राजव्यवस्था
पेगासस मामला
- 28 Oct 2021
- 6 min read
प्रिलिम्स के लिये:पेगासस मामला, निजता का अधिकार, के.एस. पुट्टस्वामी मामला 2017 मेन्स के लिये:पेगासस मामला एवं व्यक्तियों की निजता से जुड़े विभिन्न मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने पेगासस मामले में शीर्ष न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश (न्यायमूर्ति रवींद्रन समिति) की देख-रेख में एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की है।
- इस मामले के तहत केंद्र सरकार पर नागरिकों की निजता की निगरानी के लिये स्पाइवेयर का इस्तेमाल करने का आरोप है।
प्रमुख बिंदु:
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत:
- न्यायालय ने स्वयं जाँच करने की सरकार की याचिका को खारिज कर दिया।
- न्यायालय ने कहा कि सरकार द्वारा जाँच पूर्वाग्रह के खिलाफ स्थापित न्यायिक सिद्धांत का उल्लंघन करेगी अर्थात् 'न्याय न केवल किया जाना चाहिये, बल्कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिये।’
- विशेषज्ञ समिति की स्थापना:
- याचिकाकर्ताओं द्वारा लगाए गए आरोपों पर विस्तृत प्रतिक्रिया दर्ज करने में सरकार की निष्क्रियता के कारण न्यायालय ने पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर.वी रवींद्रन की देख-रेख में विशेषज्ञों का एक पैनल गठित किया है।
- सिफारिश की शर्तें:
- न्यायालय ने रवींद्रन समिति से नागरिकों को निगरानी से बचाने और देश की साइबर सुरक्षा बढ़ाने के लिये एक कानूनी और नीतिगत ढाँचे पर सिफारिशें करने को कहा है।
- न्यायालयत ने समिति के लिये सात संदर्भ की शर्तें निर्धारित की हैं, जो अनिवार्य रूप से ऐसे तथ्य हैं जिन्हें इस मुद्दे को तय करने के लिये सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत:
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संबोधित मुद्दे:
- निजता का अधिकार:
- न्यायालय ने दोहराया कि निजता का अधिकार मानव अस्तित्व की तरह ही पवित्र है और मानवीय गरिमा एवं स्वायत्तता के लिये आवश्यक है।
- के.एस. पुट्टस्वामी मामले, 2017 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गोपनीयता के अधिकार को मौलिक अधिकारों के एक भाग के रूप में रखा गया था।
- राज्य या किसी बाहरी एजेंसी द्वारा किसी व्यक्ति की गई कोई भी निगरानी या जासूसी उस व्यक्ति के निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
- न्यायालय ने दोहराया कि निजता का अधिकार मानव अस्तित्व की तरह ही पवित्र है और मानवीय गरिमा एवं स्वायत्तता के लिये आवश्यक है।
- ‘वाक स्वतंत्रता’ की निगरानी
- न्यायालय ने निगरानी और स्व-सेंसरशिप के बीच संबंध को रेखांकित किया।
- यह ज्ञान कि कोई व्यक्ति जासूसी के खतरे का सामना कर रहा है, ‘स्व-सेंसरशिप’ और 'द्रुतशीतन प्रभाव' का कारण बन सकता है।
- यह ‘द्रुतशीतन प्रभाव’ प्रेस की महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक-प्रहरी की भूमिका पर हमला कर सकता है, जो सटीक और विश्वसनीय जानकारी (‘वाक स्वतंत्रता’) प्रदान करने की प्रेस की क्षमता को कमज़ोर कर सकता है।
- इसने आगे कहा कि इस तरह के अधिकार का एक महत्त्वपूर्ण और आवश्यक परिणाम सूचना के स्रोतों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
- न्यायालय ने निगरानी और स्व-सेंसरशिप के बीच संबंध को रेखांकित किया।
- नागरिकों के अधिकारों को अवरुद्ध करने हेतु ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ का उपयोग:
- न्यायालय के निर्णय के मुताबिक, राज्य को हर बार 'राष्ट्रीय सुरक्षा' पर खतरे का हवाला देते हुए नागरिकों के अधिकारों को अवरुद्ध करने का अधिकार प्राप्त नहीं है।
- इसका अर्थ यह भी है कि ‘न्यायिक समीक्षा’ के विरुद्ध कोई सर्वव्यापी निषेध लागू नहीं किया जाएगा।
- इसलिये राज्य द्वारा ‘न्यायिक समीक्षा’ के अधिकार का उल्लंघन राष्ट्रीय हित में केवल कानून द्वारा स्थापित प्रक्रियाओं का पालन करके ही किया जा सकता है।
- इसके अलावा यह आदेश स्पष्ट करता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर असहमति का अपराधीकरण नहीं किया जाना चाहिये।
- निजता का अधिकार:
आगे की राह
- न्यायपालिका की भूमिका: यह आदेश संविधान में निहित व्यक्तिगत अधिकारों के संरक्षक के रूप में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका और दायित्वों का एक स्वागत योग्य कदम है।
- न्यायालय के इस आदेश की मूल भावना का परीक्षण इस बात से होगा कि न्यायमूर्ति रवींद्रन की निगरानी में गठित यह पैनल इस मुद्दे को किस प्रकार संबोधित करता है।
- विधायिका की भूमिका: व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2019 के अधिनियमन में तेज़ी लाने की आवश्यकता है।
- कार्यपालिका की भूमिका: इसके अलावा कार्यपालिका के लिये यह आवश्यक है कि वह प्रत्येक स्तर पर सत्ता के मनमाने प्रयोग को रोकने हेतु आवश्यक कदम उठाए।