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डेली न्यूज़

भारतीय राजव्यवस्था

संसद के सत्र

  • 18 Dec 2020
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने COVID-19 महामारी के कारण मामलों में वृद्धि की आशंका के चलते संसद के शीतकालीन सत्र को रद्द करने का फैसला लिया है।

प्रमुख बिंदु:

संसद के सत्र (Parliament Sessions):

  • संसद के सत्र के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 85 में प्रावधान किया गया है।
  • संसद के किसी सत्र को बुलाने की शक्ति सरकार के पास है। इस पर निर्णय संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा लिया जाता है जिसे राष्ट्रपति द्वारा औपचारिक रूप दिया जाता है।
  • भारत में कोई निश्चित संसदीय कैलेंडर नहीं है। संसद के एक वर्ष में तीन सत्र होते हैं।
    • सबसे लंबा, बजट सत्र (पहला सत्र) जनवरी के अंत में शुरू होता है और अप्रैल के अंत या मई के पहले सप्ताह तक समाप्त हो जाता है। इस सत्र में एक अवकाश होता है ताकि संसदीय समितियाँ बजटीय प्रस्तावों पर चर्चा कर सकें।
    • दूसरा सत्र तीन सप्ताह का मानसून सत्र है, जो आमतौर पर जुलाई माह में शुरू होता है और अगस्त में खत्म होता है।
    • शीतकालीन सत्र यानी तीसरे सत्र का आयोजन नवंबर से दिसंबर तक किया जाता है।

संसद सत्र आहूत करना (Summoning of Parliament):

  • सत्र को आहूत करने के लिये राष्ट्रपति संसद के प्रत्येक सदन को समय-समय पर सम्मन जारी करता है, परंतु संसद के दोनों सत्रों के मध्य अधिकतम अंतराल 6 माह से ज़्यादा का नही होना चाहिये। अर्थात् संसद को कम-से-कम वर्ष में दो बार मिलना चाहिये।

स्थगन (Adjournment):

  • संसद की बैठक को स्थगन या अनिश्चितकाल के लिये स्थगन या सत्रवसान या विघटन (लोकसभा के मामले में) द्वारा समाप्त किया जा सकता है। स्थगन द्वारा बैठक को कुछ निश्चित समय, जो कुछ घंटे, दिन या सप्ताह हो सकता है, के लिये निलंबित किया जा सकता है।

सत्रावसान (Prorogation):

  • सत्रावसान द्वारा न केवल बैठक बल्कि सदन के सत्र को भी समाप्त किया जाता है।  सत्रावसान की कार्रवाई राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। सत्रावसान और फिर से इकट्ठे होने (Reassembly) तक के समय को अवकाश कहा जाता है। सत्रावसान का आशय सत्र का समाप्त होना है, न कि विघटन (लोकसभा के मामले में क्योंकि राज्यसभा भंग नहीं होती है)।

कोरम (Quorum):

  • कोरम या गणपूर्ति सदस्यों की न्यूनतम संख्या है, जिनकी उपस्थिति के चलते सदन का कार्य संपादित किया जाता है। यह प्रत्येक सदन में पीठासीन अधिकारी समेत कुल सदस्यों का दसवाँ हिस्सा होता है। अर्थात्  किसी कार्य को करने के लिये लोकसभा में कम-से-कम 55 सदस्य तथा राज्यसभा में कम-से-कम 25 सदस्यों का होना आवश्यक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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