लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली न्यूज़

भारतीय राजव्यवस्था

न्यायालयों की आधिकारिक भाषा

  • 15 Jun 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

न्यायपालिका की भाषा संबंधी प्रावधान, अनुच्छेद- 345, अनुच्छेद- 348 

मेन्स के लिये:

न्यायालयों की आधिकारिक भाषा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम’ (Haryana Official Language (Amendment) Act)- 2020 को चुनौती देने वाले याचिकाकर्त्ताओं को पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय में अपील करने को कहा है। 

प्रमुख बिंदु:

  • याचिका में ‘हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम’ को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। 
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि यह अधिनियम हिंदी को राज्य की निचली अदालतों में प्रयोग की जाने वाली एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में लागू करता है।

अधिनियम के मुख्य प्रवधान:

  • ‘हरियाणा राजभाषा अधिनियम’ में आवश्यक परिवर्तन के लिये अधिनियम में एक नवीन उप-धारा 3(a) जोड़ी गई है। 
  • यह उप-धारा हरियाणा में, पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के अधीनस्थ सभी सिविल, आपराधिक तथा राजस्व न्यायालयों, किराया न्यायाधिकरणों तथा राज्य सरकार द्वारा गठित अन्य न्यायाधिकरणों में केवल हिंदी भाषा में कार्य करने का प्रावधान करती है।
  • अधिनियम की धारा-3 के अनुसार, हरियाणा राज्य के सभी आधिकारिक उद्देश्यों के लिये हिंदी का उपयोग किया जाएगा केवल उन अपवादित कार्यों को छोड़कर, जिन्हें हरियाणा सरकार अधिसूचना के माध्यम से निर्दिष्ट करती है।

अनुच्छेद-345 तथा कार्यालयी भाषा:

  • संविधान का अनुच्छेद-345 किसी राज्य के विधानमंडल को उस राज्य में हिंदी या अन्य एक या अधिक भाषाओं को कार्यालयों में अपनाने का अधिकार देता है। 
  • हरियाणा सरकार द्वारा, ‘हरियाणा राजभाषा अधिनियम’ को अनुच्छेद- 345 में की गई व्यवस्था के तहत बनाया गया है। 

संशोधन का महत्त्व:

  • निचली अदालतों में अंग्रेजी भाषा के प्रयोग के कारण हरियाणा राज्य में वादकारों को कई मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है। लोगों को ‌शिकायतों या अन्य दस्तावेज़ों की समझ के लिये पूरी तरह से वकीलों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • अंग्रेजी भाषा के प्रयोग के कारण गवाहों को भी परेशान होना पड़ता है, क्योंकि उनमें से अधिकांश को अंग्रेजी भाषा की अच्छी समझ नहीं होती है।

संशोधन के विपक्ष में तर्क:

  • वकीलों का मानना है कि हिंदी को एकमात्र भाषा के रूप में लागू करने से वकीलों के दो स्पष्ट वर्ग बन जाएंगे। 
    • प्रथम वे जो हिंदी भाषा में बहुत सहज हैं। 
    • दूसरे वे जो हिंदी में सहज महसूस नहीं करते हैं। 
  • याचिककर्त्ताओं का मानना है कि किसी भी मामले में बहस करने के लिये भाषा प्रवणता का किसी भाषा के सामान्य उपयोग की तुलना में बहुत अधिक महत्त्व है।
  • यह संशोधन कानून समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) तथा किसी भी पेशे को चुनने की स्वतंत्रता, गरिमा तथा आजीविका के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
  • हाल ही में किये संशोधन के पीछे सरकार का यह तर्क था कि राज्य की निचली अदालतों में कानून की प्रैक्टिस करने वाले अधिकांश व्यक्ति हिंदी में दक्ष हैं जबकि वास्तविकता इससे काफी अलग है।
  • हरियाणा में अनेक औद्योगिक केंद्र है तथा औद्योगिक विवाद के मामलों में हिंदी में बहस करना अनेक वकीलों के लिये आसान नहीं होगा। इससे वकीलों के व्यवसाय पर संकट मंडरा सकता है।

निष्कर्ष:

  • हरियाणा मुख्य रूप से हिंदी भाषी राज्य है, जिसकी लगभग 100% आबादी हिंदी बोलती या समझती है। यह समझना उचित होगा कि न्यायपालिका का उद्देश्य लोगों क कल्याण है, न कि संस्थाओं के स्वार्थों की पूर्ति करना। 

न्यायपालिका की भाषा संबंधी प्रावधान:

  • संविधान में न्यायपालिका की भाषा के संबंध में अनुच्छेद- 348 में निम्नलिखित प्रावधान किये गए हैं:
    1. जब तक संसद द्वारा अन्य व्यवस्था को न अपनाया जाए, उच्चतम व प्रत्येक उच्च न्यायालय की कार्यवाही, केवल अंग्रेजी भाषा में होंगी। 
    2. हालाँकि किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से हिंदी या अन्य राजभाषा को उच्च न्यायालय की कार्यवाही की भाषा का दर्जा दे सकता है। 
    • परंतु न्यायालय के निर्णय,आज्ञा अथवा आदेश केवल अंग्रेजी में ही होंगे जब तक संसद अन्यथा व्यवस्था न दे।
  • राजभाषा अधिनियम- 1963 राज्यपाल को यह अधिकार देता है कि वह राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से उच्च न्यायलय द्वारा दिये गए निर्णयों, पारित आदेशों में हिंदी अथवा राज्य की किसी अन्य भाषा के प्रयोग की अनुमति दे सकता है, परंतु इसके साथ ही इसका अंग्रेजी अनुवाद भी संलग्न करना होगा।

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2