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डेली न्यूज़

भूगोल

हिमालयन विवर्तनिक क्षेत्र

  • 27 Oct 2020
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

रिक्टर पैमाना, मरकली पैमाना, भारत में भूकंप ज़ोन 

मेन्स के लिये:

भूकंप के पूर्वानुमान में हिमालय क्षेत्र में खोजे गए टेक्टोनिक क्षेत्र का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology) के तहत एक स्वायत्त संस्थान वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी(Wadia Institute of Himalayan Geology-WIHG), देहरादून के वैज्ञानिकों द्वारा हिमालय क्षेत्र में नए विवर्तनिक/टेक्टोनिक सक्रिय ( Tectonically Active) क्षेत्र की पहचान की गई है।  

प्रमुख बिंदु: 

  • नए क्षेत्र: वैज्ञानिकों द्वारा हिमालय के सिवनी क्षेत्र या लद्दाख में स्थित सिंधु सिवनी क्षेत्र (Indus Suture Zone- ISZ) को विवर्तनिक अथवा टेक्टोनिक सक्रिय क्षेत्र के रूप में खोजा गया है।
    • यह वह क्षेत्र है जहाँ पर भारतीय और एशियाई प्लेटें आपस में मिलती हैं।
    •  इस खोज से पहले इस इलाके को बंद क्षेत्र (Locked Zone) के रूप में जाना जाता था।
  • वैज्ञानिकों द्वारा हिमालय के सिवनी क्षेत्र का विस्तृत भौगोलिक अध्ययन किया गया ओर पता चला कि यह क्षेत्र वास्तव में बंद क्षेत्र न होकर सक्रिय टेक्टोनिक क्षेत्र है।
  •  वैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन के लिये हिमालय के सबसे सुदूर स्थित लद्दाख क्षेत्र को चुना गया।
  • भू-वैज्ञानिकों ने देखा कि जहाँ नदियाँ ऊँचे क्षेत्रों से जुड़ी हुई हैं, वहाँ पर नदी की गाद वाले इलाके झुके हुए तथा उनकी सतह टूटी हुई है। इसके अलावा नदियों का मूल स्रोत काफी क्षीण हो चुका है।परिणामस्वरूप उथली घाटियों का निर्माण हुआ है।
  • इन चट्टानों का अध्ययन देहरादून स्थित प्रयोगशाला में ऑप्टिकली स्टीमुलेटेड ल्यूमिनेसेंस (Optically Stimulated Luminescence-OSL) के माध्यम से किया गया। 
    • इसमें भूकंप की आवृत्ति तथा पहाड़ों की ऊँचाई घटने की दर का अध्ययन किया गया। 
    • भौगोलिक गादों का अध्ययन ल्यूमिनेसेंस डेटिंग विधि (Luminescence Dating Method ) द्वारा किया जाता है।

इस अध्ययन कार्य को टेक्नोफिज़िक्स(Technophysics) जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

प्राप्त परिणाम:

  • प्रयोगशाला से प्राप्त आँकड़ों और भौगोलिक क्षेत्र के अध्ययन से यह बात सामने आई है कि सिंधु सिवनी इलाके में नए टेक्टोनिक क्षेत्र पिछले 78000 से 58000 वर्षों से सक्रिय हैं। 
  • इस क्षेत्र में वर्ष 2010 में अपशी गाँव में कम तीव्रता का (रिक्टर स्केल पर 4 तीव्रता) भूकंप चट्टानों के टूटने की वजह से आया था।

हिमालय क्षेत्र में भूकंप का कारण:

  • हिमालय मुख्य रूप से मेन सेंट्रल थ्रस्ट ( Main Central Thrust-MCT), मेन बाउंड्री थ्रस्ट (Main Boundary Thrust-MBT) और मेन फ्रंटल थ्रस्ट (Main Frontal Thrust-MFT) से निर्मित माना जाता है जो कि उत्तर की ओर झुका हुआ है।
    • अब तक की स्थापित मान्यता के अनुसार मेन फ्रंटल थ्रस्ट को छोड़कर बाकी सभी थ्रस्ट बंद थे। इस स्थिति में हिमालय में जो भी बदलाव होते हैं उनके लिये मेन फ्रंटल थ्रस्ट को ज़िम्मेदार माना जाता था। 

नई खोज का आधार:

  • नई खोज इस बात की पुष्टि करती है कि सिवनी क्षेत्र में स्थिति पुरानी परतें सक्रिय टेक्टोनिक प्लेट हैं। 
    • ऐसे में मौजूदा हिमालय के विकास मॉडल की नए सिरे से गंभीरतापूर्वक दोबारा अध्ययन करने की ज़रूरत है जिसमें नई तकनीकी और बृहत भौगोलिक आँकड़े का इस्तेमाल किया जा सकेगा।
    • हिमालय में विवर्तनिक (टेक्टोनिक) रूप से सक्रिय नए क्षेत्र की पहचान होने से भूकंप के अध्ययन और उसके अनुमान में बदलाव देखने को मिलेगा।

भूकंप से निपटने हेतु मुख्य 6 आधार स्तंभ:

  • भूकंप प्रवण क्षेत्रों में आपात स्थिति के लिये क्षमता निर्माण।
  • नई भूकंपरोधी संरचनाओं का निर्माण।
  • पुरानी संरचनाओं के आधार पर पुन: समायोजन एवं सुदृढ़ीकरण।
  • नियमन एवं प्रवर्तन (अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप भारत में भी प्रत्येक 5 वर्षों में मानकों का पुनरीक्षण)।
  • जागरूकता एवं तैयारी (भूकंप निवारण से संबंधित शिक्षा का प्रसार)।
  • क्षमता निर्माण (प्रशिक्षण, प्रलेखन इत्यादि)।

भूकंपीय तीव्रता का मापन:

रिक्टर पैमाना 

मरकली पैमाना

  • इसे परिमाण पैमाने (Magnitude scale) के रूप में भी जाना जाता है।
  • इसे तीव्रता पैमाने (Intensity Scale) के रूप में भी जाना जाता है।
  • भूकंप के दौरान उत्पन्न ऊर्जा के मापन से संबंधित है।
  • घटना के कारण होने वाले नुकसान का मापन।
  • इसे 0-10 तक पूर्ण संख्या में व्यक्त किया जाता है। हालाँकि 2 से कम तथा 10 से अधिक रिक्टर तीव्रता के भूकंप का मापन सामान्यतः संभव नहीं है।
  • पैमाने की परास 1-12 तक होती है।

भूकंपीय तीव्रता का निर्धारक: 

  • अतीत में आए भूकंप।
  • तनाव ऊर्जा बजट की गणना।
    • महाद्वीपीय विस्थापन के धरातलीय प्लेटों के विरूपण के कारण पृथ्वी के आंतरिक भागों में संग्रहीत ऊर्जा को तनाव ऊर्जा (Strain Energy) कहा जाता है।
  • सक्रिय भ्रंश का मानचित्रण।

भारत में भूकंप ज़ोन:

Seismic-Zone

  • भूकंपीयता से संबंधित वैज्ञानिक जानकारी, अतीत में आए भूकंप तथा विवर्तनिक व्यवस्था के आधार भारत को चार ‘भूकंपीय ज़ोनों’ में (II, III, IV और V) वर्गीकृत किया गया है।
  • ध्यातव्य है कि पूर्व भूकंप क्षेत्रों को उनकी गंभीरता के आधार पर पाँच ज़ोनों में विभाजित किया गया था, लेकिन 'भारतीय मानक ब्यूरो' ने प्रथम 2 ज़ोनों का एकीकरण करके देश को चार भूकंपीय ज़ोनों में बाँटा है।
  • 'भारतीय मानक ब्यूरो भूकंपीय खतरे का मानचित्रण और कोड प्रकाशित करने के लिये आधिकारिक एजेंसी है।

आगे की राह:

  • भूकंप का सामान्यत: पूर्वानुमान संभव नहीं हैं। हालाँकि भूकंपीय ज़ोन V और IV में बड़े भूकंप आने की संभावना है जो पूरे हिमालय तथा Delhi-NCR क्षेत्र को प्रभावित कर सकते हैं।
  • अत: जीवन तथा संपत्तियों के संभावित नुकसान को कम करने का एकमात्र उपाय भूकंप के खिलाफ प्रभावी तैयारी है। इस संबंध में जापान जैसे देशों के साथ बेहतर सहयोग स्थापित किया जा सकता है।
  • नगरीय नियोजन तथा भवनों के निर्माण में आवश्यक भूकंपीय मानकों को लागू किये जाने की आवश्यकता है।
  • भूकंपीय आपदा के प्रबंधन की दिशा में लोगों की भागीदारी, सहयोग और जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।

स्रोत: पीआईबी

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