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शिक्षा नीति पर बहुत ज़ल्द नई समिति का गठन

  • 08 Mar 2017
  • 7 min read

समाचारों में क्यों?

गौरतलब है कि भारत सरकार के मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय ने इस बात के संकेत दिये हैं कि नई शिक्षा नीति का प्रारूप तैयार करने के लिये बहुत ज़ल्द एक नई समिति का गठन किया जाएगा। ध्यातव्य है कि नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने के लिये पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय समिति का गठन किया गया था, जो अपनी रिपोर्ट सरकार को दे चुकी है।

हालाँकि, अब एक नई समिति के गठन के सन्दर्भ में सरकार का कहना है कि नई शिक्षा नीति को अमल में लाने से पहले बहुत सी समितियों का सुझाव लेना सुनिश्चित किया गया है और सुब्रह्मण्यम समिति का गठन भी इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए किया गया है। ज़ाहिर सी बात है, देश में शिक्षा को प्रत्येक स्तर पर प्रभावशाली बनाने के लिये राष्ट्रीय शिक्षा नीति में व्यापक बदलाव की ज़रूरत है और इसके लिये तुरत-फुरत में कोई कदम उठाने के बजाय सभी पहलुओं पर गौर करने की आवश्यकता है।

शिक्षा नीति में बदलाव आवश्यक क्यों?

शिक्षा ही किसी समाज और राष्ट्र की जागृति का मूल आधार है। अतः शिक्षा नीति का उद्देश्य साक्षरता बढ़ाने  के साथ-साथ बदलते वक्त के अनुरूप आवश्यक बदलावों को अंगीकृत करना भी है। गौरतलब है कि पिछले वर्ष से ही शिक्षा नीति में बदलाव लाने के लिये मंथन किया जा रहा था। आज के दौर में अप्रासांगिक हो चुकी पुरानी नीति की जगह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने की बात चल रही है। नई शिक्षा नीति में न केवल शैक्षणिक वरन शिक्षा के हर स्तर को प्रभावी बनाने के लिये काम किया जाएगा। वर्तमान में हम 1986 में बनी शिक्षा नीति के पथ पर चल रहे हैं। दरअसल, डिजिटल इंडिया जैसे सपने को साकार करने के लिये शैक्षणिक स्तर को भी बदलने की ज़रूरत है। इसी को ध्यान में रखते हुए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर मुहिम शुरू की गई है।

टीएसआर सुब्रह्मण्यम समिति की सिफारिशें

सुब्रह्मण्यम समिति की प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार हैं- 

1. भारतीय प्रशासनिक सेवा की तर्ज़ पर ही एक अखिल भारतीय शिक्षा सेवा (Indian education service: IES) की स्थापना की जाए, जिसमें कैडर नियंत्रण का दायित्व मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय का हो।
2. समिति ने सुझाव दिया है कि बिना किसी विलम्ब के शिक्षा पर जीडीपी का कम से कम 6 प्रतिशत खर्च किया जाए।
3. वर्तमान बीएड पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिये स्नातक स्तर पर 50% अंक प्राप्त करने की न्यूनतम पात्रता शर्त होनी चाहिये। सभी शिक्षकों की भर्ती के लिये शिक्षक प्रवेश परीक्षा (टीईटी) अनिवार्य करनी चाहिये। टीईटी के लिये केंद्र और राज्यों को संयुक्त रूप से मानदंडों और मानकों का निर्धारण करना चाहिये।
4. सरकारी और निजी स्कूलों में शिक्षकों के लिये अनिवार्य लाइसेंस या प्रमाणीकरण अनिवार्य किया जाना चाहिये, प्रत्येक 10 वर्षों में स्वतंत्र एवं बाहरी परीक्षण के आधार पर इस लाइसेंस के नवीकरण का प्रावधान किया जाए।
5. 4 से 5 वर्षों के आयु वर्ग के बच्चों के लिये स्कूल जाने से पहले दी जाने वाली शिक्षा को भी ‘शिक्षा के अधिकार’ के अंतर्गत लाया जाना चाहिये और इसके लिये तुरंत एक कार्यक्रम लागू किया जाना चाहिये। गौरतलब है कि वर्तमान में ‘शिक्षा के अधिकार’ के दायरे में 6 वर्ष से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों का ही निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा शामिल है।
6. बच्चों को फेल नहीं करने की नीति जारी रहनी चाहिये लेकिन पाँचवीं तक ही, माध्यमिक शिक्षा के स्तर पर बच्चों को फेल करने की नीति बहाल की जाए। साथ में फेल हुए बच्चे को उपचारी शिक्षा देने की व्यवस्था का भी प्रावधान किया जाना चाहिये और उन्हें अगले दर्जे में जाने की अपनी योग्यता सिद्ध करने के कम से कम दो मौके दिये जाने चाहियें।
7. छात्रों की असफलता दर में कमी लाने के लिये गणित, विज्ञान एवं अंग्रेजी में 10वीं कक्षा की परीक्षा दो चरणों में लेने का सुझाव दिया गया है। इसमें पहला भाग उच्च स्तर पर (भाग ‘ए’) और दूसरा भाग निम्न स्तर पर ( भाग ‘बी’ होगा)। 10वीं कक्षा के बाद के वैसे पाठ्यक्रमों जिनमें विज्ञान, गणित या अंग्रेजी जैसे विषयों की ज़रूरत नहीं होगी, उनमें शामिल होने के इच्छुक छात्र भाग-बी स्तर की परीक्षा का विकल्प चुन सकते हैं।
8. मिड-डे-मील योजना का विस्तारण करते हुए इसमें दसवीं तक के बच्चों को शामिल किया जाए, यह आवश्यक इसलिये है क्योंकि किशोरों में भी कुपोषण की समस्या अधिक है।
9. देश के संस्थानों को विश्व के श्रेष्ठ संस्थानों की सूचि में स्थान नहीं मिलने को देखते हुए समिति ने उच्च शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिये सुझाव दिया कि विदेश के उच्च गुणवत्ता वाले शीर्ष 200 संस्थानों को भारत में आने की अनुमति दी जानी चाहिये। लेकिन ऐसे संस्थानों को उचित नियंत्रण के साथ यह अनुमति मिले।
10. समिति ने कौशल बढ़ाने वाली और रोजगारोन्मुखी शिक्षा पर भी जोर दिया है। यूजीसी और एआईसीटीई को शामिल कर शिक्षा के लिये रेगूलेटरी तंत्र बनाने की भी सिफारिश की गई है। साथ ही युजीसी को चुस्त-दुरुस्त बनाने की बात भी कही गई है।

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