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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना

  • 24 Jun 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नासा के क्यूरियोसिटी रोवर (NASA’s Curiosity Rover) द्वारा मंगल ग्रह की वायु में मेथेन की उच्च मात्रा होने का डेटा भेजा गया है। पृथ्वी पर यह गैस सामान्यतः जीवित जीवों द्वारा उत्सर्जित होती है। वैज्ञानिक इसे मंगल ग्रह पर सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति का संकेत मान रहे हैं।

NASA’s Curiosity Rover

प्रमुख बिंदु

  • परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों के अनुसार, इस डेटा के विश्लेषण से आने वाले दिनों में कई महत्त्वपूर्ण बातें सामने आ सकती हैं। इसके बाद धरती पर स्थित केंद्र से रोवर को इस संबंध में नए शोध के लिये संदेश भेजा गया है। अब यान पहले से निर्धारित कार्य योजना से अलग नए संदेश के आधार पर खोज करेगा।
  • वर्ष 1970 में नासा के यान वाइकिंग (Viking) लेंडर्स द्वारा खींची गई तस्वीरों में सिर्फ बंजर ज़मीन ही दिखी थी। दो दशकों के बाद किये अध्ययनों के आधार पर वैज्ञानिक मानते हैं कि करीब चार अरब वर्ष पूर्व मंगल ग्रह आज की तुलना में ज्यादा गर्म, नमी वाला और जीवन के अनुकूल रहा होगा।
  • अब वैज्ञानिक इस दिशा में अध्ययन कर रहे हैं कि अगर कभी मंगल पर जीवन रहा होगा, तो कुछ सूक्ष्मजीव आज भी वहाँ ज़मीनी सतह के भीतर मौजूद हो सकते हैं।
  • मंगल के हल्के वातावरण में मेथेन/मीथेन की उपस्थिति बहुत महत्त्वपूर्ण है। सामान्य तौर पर सूर्य के प्रकाश और अन्य रासायनिक क्रियाओं के परिणामस्वरुप मेथेन गैस कुछ सौ साल में विघटित हो जाएगी।
  • वैज्ञानिकों ने पहली बार मार्स एक्सप्रेस, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा निर्मित एक अंतरिक्ष यान जो अभी भी ऑपरेशन में है, साथ ही पृथ्वी पर दूरबीनों के माध्यम से जुटाई गई जानकारियों के आधार पर करीब डेढ़ दशक पहले मंगल ग्रह पर मेथेन की खोज की थी।
  • एक संभावना यह भी है कि मंगल पर जो मेथेन मिल रही है, वह करोड़ों साल पहले की है, जो चट्टानों में दबी है और अब बाहर निकल रही है ।
  • हालाँकि नासा अभी इसे शुरुआती नतीज़ा मान रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बिना पर्याप्त अध्ययन के किसी नतीजे पर नहीं पहुँचा जा सकता है।
  • हालाँकि एक नया यूरोपीय अंतरिक्ष यान, ट्रेस गैस ऑर्बिटर (Trace Gas Orbiter), जो अधिक संवेदनशील उपकरणों से लैस था और वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया था, के द्वारा प्रेषित जानकारियों में मेथेन का पता नहीं लग पाया था।
  • नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर एस्ट्रोफिजिक्स (National Institute for Astrophysics) के वैज्ञानिकों के अनुसार, जिस दिन मार्स एक्सप्रेस जानकारियाँ जुटाने हेतु गेल क्रेटर (जो कि 96-मील-चौड़ा गड्डा है) के ऊपर से गुज़रा, उसी दिन क्यूरियोसिटी ने भी उससे संबंधित जानकारियाँ एकत्रित की। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि आगे आने वाले समय में मार्स ट्रेस गैस ऑर्बिटर (Trace Gas Orbiter) के साथ भी संयुक्त रूप से अवलोकन एवं अध्ययन किये जाएंगे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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