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डेली न्यूज़

सामाजिक न्याय

सामाजिक-आर्थिक संकेतक

  • 05 Nov 2019
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय

मेन्स के लिये:

सामाजिक आर्थिक संकेतकों के आधार पर मुस्लिम युवाओं की स्थिति से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इंस्टीट्यूट फॉर स्टडीज़ इन इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट दिल्ली द्वारा प्रकाशित एक लेख में राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office-NSSO) की आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण रिपोर्ट, 2018 [Periodic Labour Force Survey (PLFS) Report, 2018] तथा इम्प्लॉयमेंट-अनइम्प्लॉयमेंट सर्वे, 2011-12 (Employment Unemployment Survey (EUS), 2011-12) के आँकड़ों के आधार पर मुस्लिम युवाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर प्रकाश डाला गया है।

मुख्य बिंदु:

  • जिस प्रकार लोकसभा-चुनाव 2019 के परिणामों में संसद के निचले सदन में मुस्लिम सांसदों की संख्या काफी कम होने से मुसलमानों के राजनीतिक रूप से हाशिये पर आने की पुनः पुष्टि हुई है उसी प्रकार मुस्लिम समुदाय सामाजिक-आर्थिक रूप से भी हाशिये पर है।
  • PLFS रिपोर्ट, 2018 तथा EUS, 2011-12 के आँकड़ों का प्रयोग करके इस लेख में मुस्लिम युवाओं तथा अन्य वर्गों के युवाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति की तुलना की गई है।
  • यह रिपोर्ट उन 13 राज्यों से संबंधित आँकड़ों से तैयार की गई है जो वर्ष 2011 की जनगणना में उपस्थित 17 करोड़ मुस्लिमों की संख्या के 89% का प्रतिनिधित्व करते हैं।

मुस्लिम युवाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति जानने के लिये तीन वर्ग बनाए गए हैं-

  • स्नातक उपाधि प्राप्त युवा:
    • स्नातक की उपाधि प्राप्त कर चुके युवाओं को शिक्षा प्राप्त युवाओं की श्रेणी में रखा गया है।
    • वर्ष 2017-18 के दौरान शिक्षा प्राप्ति का अनुपात मुस्लिम युवाओं में 14%, दलित समुदाय में 18%, हिन्दू ओबीसी वर्ग में 25% तथा हिंदू उच्च जातियों में 37% है।
    • वर्ष 2011-12 में मुस्लिम वर्ग तथा अनुसूचित वर्ग के युवाओं के बीच शिक्षा प्राप्ति का अंतर केवल 1% का था जो कि वर्ष 2017-18 के दौरान बढ़कर 4% हो गया, इसी प्रकार वर्ष 2011-12 में मुस्लिम समुदाय तथा हिंदू ओबीसी वर्ग के युवाओं के बीच यह अंतर 7% का था जो कि वर्ष 2017-18 के दौरान बढ़कर 11% हो गया, वहीं वर्ष 2011-12 के दौरान कुल हिंदू और मुस्लिम वर्ग के युवाओं के बीच यह अंतर 9% का था जो कि वर्ष 2017-18 के दौरान बढ़कर 11% हो गया।
    • हिंदी-भाषी राज्यों में वर्ष 2017-18 के दौरान शिक्षित युवा मुस्लिमों की सबसे कम संख्या (3%) हरियाणा राज्य में है। यह संख्या राजस्थान, उत्तर प्रदेश में क्रमशः 7% तथा 11% है। हिंदी-भाषी राज्यों में मध्य प्रदेश अकेला राज्य है जहाँ मुस्लिम समुदाय के शिक्षित युवाओं की संख्या (17%) अनुसूचित वर्ग के युवाओं की संख्या की तुलना में अधिक है।
    • वर्ष 2011-12 में हरियाणा और राजस्थान में अनुसूचित वर्ग तथा मुस्लिम समुदाय के शिक्षा प्राप्त युवाओं की संख्या में अंतर 12% का था, वहीं उत्तर प्रदेश में यह अंतर 7 प्रतिशत का था।
    • पूर्वी भारतीय राज्यों में बिहार, पश्चिम बंगाल तथा असम में शिक्षित मुस्लिम युवाओं की संख्या क्रमशः 8%, 8% और 7% है, जबकि इन्हीं राज्यों में अनुसूचित वर्ग के शिक्षित युवाओं की संख्या क्रमशः 7%, 9% और 8% है।
    • पश्चिमी भारत में शिक्षित मुस्लिम युवाओं की संख्या के आँकड़े बेहतर हुए हैं लेकिन ये आँकड़े हिंदू ओबीसी वर्ग और अनुसूचित वर्ग की तुलना में महत्त्वपूर्ण सुधारों को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं। वर्ष 2017-18 में गुजरात के मुस्लिम समुदाय तथा अनुसूचित वर्ग के शिक्षित युवाओं की संख्या में 14% का अंतर था जो कि वर्ष 2011-12 में केवल 8 प्रतिशत था।
    • वर्ष 2011-12 में महाराष्ट्र राज्य के शिक्षित मुस्लिम युवाओं की संख्या अनुसूचित वर्ग के युवाओं की संख्या से 2% अधिक थी जो कि अब तुलनात्मक रूप से 8% कम हो गई है।
    • तमिलनाडु 36% स्नातक उपाधि प्राप्त युवा मुस्लिम समुदाय के साथ भारत में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर है, वहीं केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में यह अनुपात क्रमशः 28%, 21% और 18% है।
    • तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में अनुसूचित वर्ग तथा मुस्लिम समुदाय के युवाओं के बीच जहाँ करीबी प्रतिस्पर्द्धा है वहीं केरल में मुस्लिम समुदाय काफी पीछे है।
    • दक्षिण के राज्यों में मुस्लिम समुदाय की इन उपलब्धियों को राज्यों के इनके प्रति सकरात्मक दृष्टिकोण के संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए।
  • वर्तमान में किसी शैक्षणिक संस्थान में नामांकित युवा (15-24 वर्ष):

    • जब हम वर्तमान में शैक्षणिक संस्थानों से जुड़े मुस्लिम युवाओं से संबंधित आँकड़ों का अध्ययन करते हैं तब सामाजिक-आर्थिक संकेतकों पर मुस्लिम युवाओं का हाशिये पर होना और अधिक स्पष्ट हो जाता है।
    • वर्तमान में शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश लेने वाले युवाओं में मुस्लिम युवाओं का प्रतिशत सबसे कम है।
    • मुस्लिम समुदाय के 15-24 वर्ष की आयु वर्ग के केवल 39% युवा शैक्षणिक संस्थान में नामांकित हैं, वहीं अनुसूचित वर्ग के 44%, हिंदू ओबीसी वर्ग के 51%, हिंदू उच्च जातियों के 59% युवा शैक्षणिक संस्थानों में नामांकित हैं।
  • शिक्षा, रोज़गार और प्रशिक्षण से वंचित युवा:
    • युवाओं की इस श्रेणी को NEET (Not in Employment, Education or Training) श्रेणी में रखा गया है। मुस्लिम युवाओं की एक बड़ी संख्या इस श्रेणी में आती है।
    • मुस्लिम समुदाय के 31% युवा इस श्रेणी में आते हैं जो कि देश के किसी भी समुदाय के युवाओं से अधिक हैं, वहीं अनुसूचित वर्ग के 26% युवा, हिंदू ओबीसी वर्ग के 23% युवा तथा हिंदू उच्च जातियों के 17% युवा इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।
    • यह प्रवृत्ति हिंदी-भाषी राज्यों में अधिक देखी गई है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और मध्य प्रदेश में मुस्लिम समुदाय के क्रमशः 38%, 37%, 37% और 35% युवा इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।
    • दक्षिण भारत के राज्यों में आनुपातिक रूप से बेहतर स्थिति है। तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में मुस्लिम समुदाय के क्रमशः 17%, 19%, 24% और 27% युवा इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।

राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय

(National Sample Survey Office-NSSO):

  • NSSO का कार्य विभिन्न सामाजिक-आर्थिक विषयों को लेकर राष्ट्रव्यापी स्तर पर घरों का सर्वेक्षण, वार्षिक औद्योगिक सर्वेक्षण कर आँकड़े एकत्रित करना है।
  • NSSO का प्रमुख एक महानिदेशक होता है जो अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिदर्श सर्वेक्षण के लिये ज़िम्मेदार होता है।
  • NSSO किसी व्यक्ति के रोज़गार और बेरोज़गार होने की स्थिति को तीन आधारों पर स्पष्ट करता है:
    • रोज़गार प्राप्त व्यक्ति
    • रोज़गार के लिये उपलब्ध
    • रोज़गार के लिये उपलब्ध नहीं

स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस

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