लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली न्यूज़

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

म्युकरमाइकोसिस फंगल संक्रमण

  • 16 Dec 2020
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में डॉक्टरों को कोविड-19 के कारण लोगों में म्युकरमाइकोसिस (Mucormycosis) नामक फंगल संक्रमण के साक्ष्य मिले है।

  • कोविड-19 के कारण रोगी की प्रतिरक्षा शक्ति कमज़ोर हो जाती है जो उन्हें फंगल संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती है।

मुख्य बिंदु

  • म्युकरमाइकोसिस को ब्लैक फंगस या ज़ाइगोमाइकोसिस (Zygomycosis) के नाम से भी जाना जाता है और यह एक गंभीर लेकिन दुर्लभ फंगल संक्रमण है जो म्युकरमायसिटिस (Mucormycetes) नामक फफूँद (Molds) के कारण होता है।

म्युकरमाइकोसिस के प्रकार:

  • राइनोसेरेब्रल (साइनस और मस्तिष्क) म्युकरमाइकोसिस: यह साइनस (Sinus) में होने वाला एक संक्रमण है जो मस्तिष्क तक फैल सकता है। अनियंत्रित मधुमेह से ग्रसित और किडनी प्रत्यारोपण कराने वाले लोगों में इसके होने की संभावना अधिक होती है।
  • पल्मोनरी (फेफड़ों संबंधी) म्युकरमाइकोसिस: यह कैंसर से पीड़ित लोगों तथा अंग प्रत्यारोपण अथवा स्टेम सेल प्रत्यारोपण कराने वाले लोगों में होने वाले म्युकरमाइकोसिस संक्रमण का सबसे सामान्य प्रकार है।
  • गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (पाचनतंत्र संबंधी) म्युकरमाइकोसिस: यह वयस्कों की तुलना में छोटे बच्चों (विशेष रूप से 1 माह से कम आयु के अपरिपक्व तथा जन्म के समय कम वज़न वाले शिशुओं) में अधिक होता है। यह ऐसे वयस्कों में भी हो सकता है जिन्होंने एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन किया हो अथवा सर्जरी करवाई हो या ऐसी दवाओं का सेवन किया हो जो कीटाणुओं और बीमारी से लड़ने के लिये शरीर की क्षमता को कम कर देती हैं।
  • क्यूटेनियस (त्वचा संबंधी) म्युकरमाइकोसिस: कवक त्वचा में किसी विच्छेद (सर्जरी या जलने के बाद या अन्य प्रकार के त्वचा संबंधी आघात के कारण होने वाले) के माध्यम  से शरीर में प्रवेश करता है। यह उन लोगों जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर नहीं है, में भी पाया जाने वाला सबसे सामान्य प्रकार है।
  • डिसेमिनेटेड (प्रसारित) म्युकरमाइकोसिस: इस प्रकार का संक्रमण रक्त प्रवाह के माध्यम से शरीर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में प्रसारित होता है। यद्यपि यह संक्रमण सबसे अधिक मस्तिष्क को प्रभावित करता है लेकिन प्लीहा, हृदय और त्वचा जैसे अन्य भाग भी इससे प्रभावित हो सकते हैं।

संचरण (Transmission):

  • इसका संचरण श्वास, संरोपण (Inoculation) या पर्यावरण में मौजूद बीजाणुओं के अंतर्ग्रहण द्वारा होता है।
  • उदाहरण के लिये बीजाणु श्वास के ज़रिये हवा से शरीर में प्रवेश कर फेफड़ों या साइनस को संक्रमित कर सकते हैं।
    • म्युकरमाइकोसिस का संचार मानव से मानव तथा मानव और पशुओं के बीच नहीं होता है।
  • यह आमतौर पर उन्हीं लोगों को होता है जिन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ होती हैं या जो ऐसी दवाएँ लेते हैं जिनसे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।

लक्षण:

  • इसके सामान्य लक्षणों में चेहरे में एक तरफ सूजन और सुन्नता, सिरदर्द, साँस लेने में कठिनाई, बुखार, पेट में दर्द, मतली आदि शामिल हैं।
  • डिसेमिनेटेड म्युकरमाइकोसिस प्रायः उन लोगों में होता है जो पहले से ही किसी अन्य बीमारी से ग्रसित हैं, ऐसे में यह जानना मुश्किल हो जाता है कि कौन-से लक्षण म्युकरमाइकोसिस से संबंधित हैं। डिसेमिनेटेड संक्रमण से ग्रसित मरीजों में मानसिक स्थिति में बदलाव या कोमा जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

निदान और परीक्षण:

  • स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता म्युकरमाइकोसिस का निदान करते समय चिकित्सीय इतिहास, लक्षण, शारीरिक परीक्षणों और प्रयोगशाला परीक्षणों आदि पर विचार करते हैं।
  • संक्रमण का संदेह होने पर स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता श्वसन तंत्र से तरल पदार्थ का नमूना एकत्र करते हैं या ऊतक बायोप्सी करते हैं।
    • ऊतक बायोप्सी में म्युकरमाइकोसिस की उपस्थिति का पता लगाने के लिये प्रभावित ऊतक के एक छोटे नमूने का विश्लेषण किया जाता है।

उपचार:

  • म्युकरमाइकोसिस तथा फफूँद जनित अन्य संक्रमणों को रोकने के लिये कवकरोधी दवा (Antifungal Medicine) का इस्तेमाल किया जाना चाहिये।
  • प्रायः म्युकरमाइकोसिस में सर्जरी आवश्यक हो जाती है जिसमें संक्रमित ऊतक को काटकर अलग कर दिया जाता है।

रोकथाम और इलाज:

  • म्युकरमाइकोसिस की रोकथाम के लिये अभी तक कोई टीका विकसित नहीं हुआ है। ऐसे समय में श्वास लेते समय इन कवकीय बीजाणुओं के अंतर्ग्रहण को रोक पाना भी मुश्किल हो जाता है जब ये पर्यावरण में सर्वनिष्ठ हों।
  • जिन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर हो गई है वे कुछ तरीकों द्वारा इस संक्रमण के प्रसार को कम कर सकते हैं। 
    • इन उपायों में अत्यधिक धूल वाले क्षेत्रों, जैसे- विनिर्माण अथवा उत्खनन क्षेत्रों से दूर रहना, हरिकेन तथा चक्रवात के बाद जल द्वारा क्षतिग्रस्त हुई इमारतों एवं बाढ़ के पानी के सीधे संपर्क में आने से बचना, साथ ही ऐसी सभी गतिविधियों से दूर रहना जहाँ मिट्टी के साथ संपर्क में आने की संभावना हो।
  • शुरुआत में ही बीमारी की पहचान तथा चिकित्सीय हस्तक्षेप द्वारा आँखों की रोशनी को जाने से रोका जा सकता है और नाक एवं जबड़े को होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।

म्युकरमायसिटिस (Mucormycetes):

Mucormycetes

  • म्युकरमायसिटिस, कवकों का एक समूह है जो म्युकरमाइकोसिस का कारण बनता है। ये पूरे पर्यावरण में विशेष रूप से मिट्टी और अपक्षयित कार्बनिक पदार्थों जैसे कि- पत्तियों, कम्पोस्ट/खाद के ढेर तथा पशुओं के गोबर आदि में उपस्थित होते हैं।
  • अन्य प्रकार के कवक भी म्युकरमाइकोसिस का कारण बन सकते हैं जो कि वैज्ञानिक गण (Order) म्यूकोरेल्स (Mucorales) से संबंधित होते हैं।
  • म्युकरमाइकोसिस के लिये उत्तरदायी सबसे सामान्य प्रजाति राइज़ोपस (Rhizopus) प्रजाति और म्यूकर (Mucor) हैं।
  • ये हवा की तुलना में मिट्टी में तथा शीत व बसंत ऋतु की तुलना में ग्रीष्मकाल में अधिक प्रचुरता से पाए जाते हैं और उस समय अधिक प्रभावी होते हैं।
  • प्रायः ये कवक लोगों के लिये हानिकारक नहीं होते हैं लेकिन जिन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर होती है उन्हें कवकीय बीजाणुओं की उपस्थिति में साँस लेने से संक्रमण का जोखिम होता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2