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विज़न 2035: भारत में जन स्‍वास्‍थ्‍य निगरानी

  • 16 Dec 2020
  • 12 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग ने ‘विज़न 2035: भारत में जन स्‍वास्‍थ्‍य निगरानी’ नाम से एक श्वेत-पत्र जारी किया है, जिसका उद्देश्य भारत में जन स्वास्थ्य की निगरानी बढ़ाने के लिये एक विज़न दस्तावेज़ प्रस्तुत करना और भारत को इस क्षेत्र में एक अग्रणी स्थान प्राप्त करने में मदद करना है।

  • श्वेत-पत्र एक प्रकार का सूचनात्मक दस्तावेज़ होता है, जो प्रायः किसी कंपनी या गैर-लाभकारी संगठन द्वारा किसी विशिष्ट समाधान, उत्पाद या सेवा की विशेषताओं को बढ़ावा देने अथवा उन्हें रेखांकित करने के उद्देश्य से जारी किया जाता है।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि 

  • नीति आयोग का प्राथमिक उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को रणनीतिक दिशा-निर्देश प्रदान करना है। इसी उद्देश्य के अनुरूप नीति आयोग (हेल्थ वर्टिकल) ने नवंबर 2019 में ‘न्‍यू इंडिया के लिये स्वास्थ्य प्रणाली: बिल्डिंग ब्लॉक्स - सुधार के संभावित तरीकों’ शीर्षक से संकलित चार कार्य-पत्र जारी किये थे।
  • नीति आयोग द्वारा जारी नया श्वेत-पत्र भारत की स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत बनाने की दिशा में अगला कदम है।

श्वेत-पत्र के बारे में

  • यह श्वेत-पत्र नीति आयोग के हेल्थ वर्टिकल और यूनिवर्सिटी ऑफ मैनिटोबा (कनाडा) का एक संयुक्त प्रयास है, जिसमें भारत सरकार, राज्यों की सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के तकनीकी विशेषज्ञों का योगदान शामिल है।
  • यह श्वेत-पत्र त्रिस्‍तरीय (प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक) जन स्‍वास्‍थ्‍य व्‍यवस्‍था को आयुष्‍मान भारत में शामिल करते हुए जन स्‍वास्‍थ्‍य निगरानी के लिये भारत का विज़न प्रस्तुत करता है।
  • यह श्वेत-पत्र व्यक्तिगत इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड को निगरानी का आधार बनाकर देश में ‘जन स्‍वास्‍थ्‍य निगरानी’ के लिये एक तरीका प्रस्तुत करता है।

मुख्य विशेषताएँ

  • यह गैर-संचारी रोगों की रोकथाम, पहचान और नियंत्रण से संबंधित प्रयासों को मज़बूती प्रदान करने और स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले आम लोगों और परिवारों के खर्च को कम करने की दिशा में कार्य करेगा।
  • यह एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (IDSP) के तहत एकीकृत स्वास्थ्य सूचना प्लेटफाॅर्म जैसी पहलों को और आगे बढ़ाएगा।
  • यह दस्तावेज़ राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 और नेशनल डिजिटल हेल्थ ब्लूप्रिंट (NDHB) में उल्लिखित नागरिक-केंद्रित अवधारणा के अनुरूप है।
    • यह आँकड़ों के प्रग्रहण और विश्लेषण के लिये मोबाइल फोन, डिजिटल प्लेटफाॅर्म प्लेटफाॅर्म और पॉइंट ऑफ केयर डिवाइस के उपयोग को प्रोत्साहित करता है।
  • यह जन स्‍वास्‍थ्‍य निगरानी में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाने के लिये नैदानिक प्रतिष्ठान (पंजीकरण और विनियमन) अधिनियम, 2010 जैसी पहलों के संबंध में पूंजीकरण के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।
  • यह श्वेत-पत्र नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और अन्य सहित शीर्ष संस्थानों के समन्वित प्रयास के महत्त्व को इंगित करता है।

विज़न

  • भारत की जन स्‍वास्‍थ्‍य निगरानी प्रणाली को अधिक प्रतिक्रियाशील और भविष्योन्मुखी बनाकर प्रत्येक स्‍तर पर कार्रवाई के लिये तैयारी करना।
  • फीडबैक तंत्र के साथ नागरिक-अनुकूल जन स्‍वास्‍थ्‍य निगरानी प्रणाली विकसित कर व्यक्ति की निजता और गोपनीयता सुनिश्चित करना।
  • केंद्र और राज्यों के बीच रोग की पहचान, बचाव और नियंत्रण प्रणाली को बेहतर बनाने के लिये डेटा-साझाकरण तंत्र में सुधार करना।
  • अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर की जन स्वास्थ्य आपदाओं के प्रबंधन हेतु क्षेत्रीय और वैश्विक नेतृत्त्व प्रदान करना।

जन स्‍वास्‍थ्‍य निगरानी

  • जन स्वास्थ्य निगरानी का आशय सार्वजानिक स्वास्थ्य प्रथाओं के नियोजन, कार्यान्वयन और मूल्यांकन हेतु आवश्यक स्वास्थ्य संबंधी डेटा के व्यवस्थित संग्रहण, विश्लेषण और विवेचन से है। इस तरह यहाँ निगरानी का अभिप्राय ‘कार्रवाई के लिये सूचना’ संग्रहण से है।

चुनौतियाँ

  • डेटा संग्रह और साझाकरण: लगभग सभी स्तरों पर अलग-अलग तरीके से डेटा एकत्र किया जाता है और इनके बीच डेटा-साझाकरण हेतु कोई तंत्र भी नहीं है।
    • उदाहरण के लिये ऐसी कोई भी एकल प्रणाली नहीं है, जहाँ राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम और राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम आदि जैसे लक्षित कार्यक्रमों द्वारा उत्पन्न डेटा को एक साथ एक ही स्थान पर प्राप्त किया जा सके।
  • डेटा की खराब गुणवत्ता: भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में उत्पन्न डेटा काफी निम्न गुणवत्ता का होता है, जिसके कारण देश की महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य नीतियों से संबंधित मुद्दों का हल खोजने के लिये इस डेटा का उपयोग केवल सीमित स्तर तक ही किया जा सकता है।
  • मानव संसाधन की कमी: मानव संसाधन की कमी भी एक बड़ी चुनौती है। राज्य और ज़िला स्तर पर जन स्वास्थ्य निगरानी प्रणाली में तकरीबन 42 प्रतिशत रिक्तियाँ मौजूद हैं।
    • केंद्रीय निगरानी इकाइयों के अधिकांश पद या तो प्रतिनियुक्ति या फिर अनुबंध के माध्यम से भरे जाते हैं, साथ ही उन्हें कई अधिक अतिरिक्त दायित्त्व भी दे दिये जाते हैं, जिसके कारण वे अपना कार्य सही ढंग से नहीं कर पाते हैं।
  • ‘एपिडेमिक इंटेलिजेंस’ का अभाव: भारत के पास महामारी और इससे संबंधित क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवरों की पर्याप्त संख्या मौजूद नहीं है।
    • ‘एपिडेमिक इंटेलिजेंस’ को संभावित स्वास्थ्य खतरों की शीघ्र पहचान, उनके सत्यापन, मूल्यांकन और जाँच से संबंधित सभी गतिविधियों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, ताकि उस संभावित खतरे को नियंत्रित करने के लिये जल्द-से-जल्द सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों की सिफारिश की जा सके।
  • व्यावसायिक स्वास्थ्य निगरानी का अभाव: इस प्रकार की स्वास्थ्य निगरानी लेड विषाक्तता और सिलिकोसिस रोग आदि से संबंधित है। व्यावसायिक स्वास्थ्य निगरानी अभी तक भारत की जन स्वास्थ्य निगरानी प्रणाली में प्रमुख स्थान प्राप्त नहीं कर सकी है।
  • अन्य उभरती चुनौतियाँ: बढ़ता रोगाणुरोधी प्रतिरोध, नए संक्रामक रोग और गैर-संचारी रोगों की बढ़ती दर आदि भारत की जन स्वास्थ्य निगरानी प्रणाली के लिये कुछ अन्य उभरती हुई चुनौतियाँ हैं।
    • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance) तब उत्पन्न होता है जब बैक्टीरिया और कवक जैसे रोगाणुओं को मारने हेतु निर्मित दवाइयों के विरुद्ध बैक्टीरिया एवं कवक अपनी प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि कर लेते हैं।

सुझाव

  • जन स्वास्थ्य निगरानी गतिविधियों के लिये समर्पित एक कुशल और मज़बूत स्वास्थ्य कार्यबल का निर्माण किया जाए।
  • गैर-संचारी रोगों, प्रजनन और बाल स्वास्थ्य तथा व्यावसायिक एवं पर्यावरणीय स्वास्थ्य आदि का जन स्वास्थ्य निगरानी में एकीकरण किया जाना चाहिये।
  • ‘वन हेल्थ’ मॉडल को अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें पर्यावरण स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य तथा मानव स्वास्थ्य का सामूहिक रूप से संरक्षण किया जाता है। 
  • आधुनिक नैदानिक ​​प्रौद्योगिकियों के साथ भारत की प्रयोगशाला क्षमताओं को मज़बूत किये जाने की आवश्यकता है। 
  • एक ऐसे शासन ढाँचे को स्थापित किये जाने की आवश्यकता है, जो राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर राजनीतिक, नीतिगत, तकनीकी और प्रबंधकीय नेतृत्त्व को सम्मिलित कर सके।
  • गैर-संचारी रोगों की निगरानी और नागरिक-केंद्रित तथा समुदाय-आधारित निगरानी में बढ़ोतरी की जानी चाहिये।
  • ऐसे रोगों को प्राथमिकता दी जा सकती है, जिन्हें सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में उन्मूलन के लिये लक्षित किया जा सकता है।
  • डेटा साझाकरण, प्रग्रहण, विश्लेषण और प्रसारण आदि को व्यवस्थित करने के लिये तंत्र की स्थापना की जानी चाहिये।
  • निगरानी गतिविधि में प्रत्येक स्तर पर नवाचार को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।

आगे की राह

  • तमाम चुनौतियों के बावजूद भारत ने निगरानी प्रणाली को बेहतर बनाने की दिशा में अच्छी प्रगति हासिल की है और नीति आयोग द्वारा जारी इस श्वेत-पत्र के कार्यान्वयन से भारत जन स्वास्थ्य निगरानी के क्षेत्र एक क्षेत्रीय/वैश्विक नेतृत्त्वकर्त्ता के रूप में उभर सकता है।
  • इस विज़न दस्तावेज़ के मूल तत्त्वों में केंद्र तथा राज्यों के बीच परस्पर-निर्भर शासन प्रणाली और एक नया डेटा-साझाकरण तंत्र आदि शामिल हैं। 

स्रोत: पी.आई.बी.

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