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शासन व्यवस्था

मैनुअल स्कैवेंजिंग की समस्या

  • 22 Dec 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मैनुअल स्कैवेंजिंग, मैनुअल स्कैवेंजिंग से संबंधित सरकारी योजनाएँ।

मेन्स के लिये:

मैनुअल स्कैवेंजिंग, इसकी व्यापकता और इससे निपटने के प्रयास।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय’ ने लोकसभा में सूचित किया कि वर्ष 2021 के दौरान अब तक ‘मैनुअल स्कैवेंजिंग’ के कारण 22 लोगों की मौत हो चुकी है।

  • ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ के राष्ट्रीय संयोजक के अनुसार, वर्ष 2016 और वर्ष 2020 के बीच मैनुअल स्कैवेंजिंग के कारण देश भर में 472 मौतें दर्ज की गईं।
    • ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ मैनुअल स्कैवेंजिंग के उन्मूलन हेतु एक आंदोलन है।
  • संविधान का अनुच्छेद-21 'गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार' की गारंटी देता है। यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिये उपलब्ध है।

प्रमुख बिंदु

  • मैनुअल स्कैवेंजिंग:
    • मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging) को "सार्वजनिक सड़कों और सूखे शौचालयों से मानव मल को हटाने, सेप्टिक टैंक, नालियों तथा सीवर की सफाई" के रूप में परिभाषित किया गया है। 
  • कुप्रथा के प्रसार का कारण:
    • उदासीन रवैया: कई अध्ययनों में राज्य सरकारों द्वारा इस कुप्रथा को समाप्त कर पाने में असफलता को स्वीकार न करना और इसमें सुधार के प्रयासों की कमी को एक बड़ी समस्या बताया गया है।
    • आउटसोर्स की समस्या: कई स्थानीय निकायों द्वारा सीवर सफाई जैसे कार्यों के लिये निजी ठेकेदारों से अनुबंध किया जाता है परंतु इनमें से कई फ्लाई-बाय-नाइट ऑपरेटर" (fly-By-Night Operator), सफाई कर्मचारियों के लिये उचित दिशा-निर्देश एवं नियमावली का प्रबंधन नहीं करते हैं। 
      • ऐसे में सफाई के दौरान किसी कर्मचारी की मृत्यु होने पर इन कंपनियों या ठेकेदारों द्वारा मृतक से किसी भी प्रकार का संबंध होने से इनकार कर दिया जाता है। 
    • सामाजिक मुद्दा: मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा जाति, वर्ग और आय के विभाजन से प्रेरित है।
      • यह प्रथा भारत की जाति व्यवस्था से जुड़ी हुई है, जहाँ तथाकथित निचली जातियों से ही इस काम को करने की उम्मीद की जाती है।  
      • ‘मैनुअल स्कैवेंजर्स का रोज़गार और शुष्क शौचालय का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993’ के तहत  देश में हाथ से मैला ढोने की प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया गया है, हालाँकि इसके साथ जुड़ा कलंक और भेदभाव अभी भी जारी है।  
        • यह सामाजिक भेदभाव मैनुअल स्कैवेंजिंग कार्य को छोड़ चुके श्रमिकों के लिये आजीविका के नए या वैकल्पिक माध्यम प्राप्त करना कठिन बना देता है।
  • उठाए गए कदम:
    • मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013:
      • यह अधिनियम सभी रूपों में हाथ से मैला ढोने के निषेध को सुदृढ़ करने का प्रयास करता है और हाथ से मैला ढोने वालों के पुनर्वास को सुनिश्चित करता है।
    • अत्याचार निवारण अधिनियम
      • यह अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ विशिष्ट अपराधों को गैर-कानूनी घोषित करता है।
    • सफाई कर्मचारियों का राष्ट्रीय आयोग:
      • आयोग सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के एक गैर-सांविधिक निकाय के रूप में कार्य कर रहा है, जिसका कार्यकाल समय-समय पर सरकारी प्रस्तावों के माध्यम से बढ़ाया जाता है।
    • स्वच्छ भारत अभियान
      • स्वच्छ भारत अभियान 2 अक्तूबर, 2014 को सरकार द्वारा देश की सड़कों को साफ करने और सामाजिक बुनियादी अवसंरचना के निर्माण हेतु शुरू किया गया एक राष्ट्रीय अभियान है।
    • मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास (संशोधन) विधेयक, 2020:
      • इसमें सीवर की सफाई को पूरी तरह से मशीनीकृत करने, 'ऑन-साइट' सुरक्षा के तरीके पेश करने और सीवर से होने वाली मौतों के मामले में मैनुअल स्कैवेंजर्स को मुआवज़ा प्रदान करने का प्रस्ताव है।
      • यह मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 में संशोधन होगा।
    • सफाई मित्र सुरक्षा चुनौती:
      • इसे आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में विश्व शौचालय दिवस (19 नवंबर) पर लॉन्च किया गया था।
      • सरकार ने सभी राज्यों के लिये अप्रैल 2021 तक सीवर-सफाई को मशीनीकृत करने हेतु इस ‘चुनौती’ का शुभारंभ किया है, इसके तहत यदि किसी व्यक्ति को अपरिहार्य आपात स्थिति में सीवर लाइन में प्रवेश करने की आवश्यकता होती है, तो उसे उचित गियर और ऑक्सीजन टैंक आदि प्रदान किये जाते हैं।
    • 'स्वच्छता अभियान एप':
      • इसे अस्वच्छ शौचालयों और हाथ से मैला ढोने वालों के डेटा की पहचान और जियोटैग करने के लिये विकसित किया गया है, ताकि अस्वच्छ शौचालयों को सेनेटरी शौचालयों से प्रतिस्थापित किया जा सके तथा हाथ से मैला ढोने वालों को जीवन की गरिमा प्रदान करने के लिये उनका पुनर्वास किया जा सके।
    • सर्वोच्च न्ययालय का निर्णय:
      • वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश के तहत सरकार के लिये उन सभी लोगों की पहचान करना अनिवार्य कर दिया था, जो वर्ष 1993 से सीवेज का काम करने के दौरान मारे गए हैं और साथ ही सभी के परिवारों को 10 लाख रुपए मुआवज़ा प्रदान करने के भी निर्देश दिये गए थे।

आगे की राह

  • उचित पहचान: राज्यों को दूषित कीचड़ की सफाई में संलग्न श्रमिकों की पहचान करनी चाहिये और उनका एक उचित रिकॉर्ड बनाना चाहिये।
  • स्थानीय प्रशासन को सशक्त बनाना: 15वें वित्त आयोग द्वारा स्वच्छ भारत मिशन को सर्वोच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में पहचाना गया है और स्मार्ट शहरों एवं शहरी विकास के लिये उपलब्ध धन से मैला ढोने की समस्या का समाधान करने की वकालत की गई थी।
  • सामाजिक संवेदनशीलता: हाथ से मैला ढोने के पीछे की सामाजिक स्वीकृति को संबोधित करने के लिये पहले यह स्वीकार करना आवश्यक है कि हाथ से मैला ढोने की यह प्रथा जाति व्यवस्था में अंतर्निहित है। 
  • सख्त कानून की आवश्यकता: यदि कोई कानून राज्य एजेंसियों पर स्वच्छता सेवाएँ प्रदान करने के लिये एक वैधानिक दायित्व निर्धारित करता है, तो इसके माध्यम से अधिकारियों द्वारा श्रमिकों की अधिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी। 

स्रोत: द हिंदू

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