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डेली न्यूज़

जैव विविधता और पर्यावरण

उत्सर्जन मानदंडों की प्राप्ति: कोयला आधारित विद्युत संयंत्र

  • 08 Jan 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सल्फर डाइऑक्साइड प्रदूषण और इसका प्रभाव, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB)।

मेन्स के लिये:

भारत में वायु प्रदूषण के खतरों को कम करने हेतु सरकार द्वारा किये गए उपाय

चर्चा में क्यों?

दिल्ली स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था- ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट’ (CSE) के विश्लेषण के अनुसार, एक मिलियन से अधिक आबादी वाले शहरों में स्थित कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में से 61 प्रतिशत, जिन्हें दिसंबर 2022 तक अपने उत्सर्जन मानकों को पूरा करना है, इस समय-सीमा लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकेंगे।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि 
    • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने वर्ष 2015 में नए उत्सर्जन मानदंड निर्धारित किये थे और इसे पूरा करने हेतु एक समय सीमा तय की थी।
    • भारत ने प्रारंभ में ज़हरीले सल्फर डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती करने वाली फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन (FGD) इकाइयों को स्थापित करने हेतु उत्सर्जन मानकों का पालन करने को थर्मल पावर प्लांट के लिये वर्ष 2017 की समय सीमा निर्धारित की थी।
    • बाद में विभिन्न क्षेत्रों के लिये अलग-अलग समय सीमा निर्धारित कर दी गई।
  • विद्युत संयंत्रों का वर्गीकरण:
    • श्रेणी ‘A’
      • इस श्रेणी में वे बिजली संयंत्रो शामिल हैं, जिन्हें दिसंबर 2022 तक लक्ष्य पूरा करना है। इसके तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के 10 किलोमीटर के दायरे में या दस लाख से अधिक आबादी वाले शहर शामिल हैं।
    • श्रेणी ‘B’ और ‘C’:
      • 68 बिजली संयंत्रों को श्रेणी B (दिसंबर 2023 की अनुपालन समय सीमा) में और 449 बिजली संयंत्रों को श्रेणी C में (दिसंबर 2024 की अनुपालन समय सीमा) रखा गया है।
        • बिजली संयंत्र जो गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों या गैर-प्राप्ति शहरों के 10 किमी. के दायरे में स्थित हैं, वे श्रेणी B के अंतर्गत आते हैं, जबकि बाकी (कुल का 75%) श्रेणी  C में आते हैं।
  • CSE का विश्लेषण:
    • प्रमुख डिफॉल्टर्स:
      • महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश।
        • ये डिफॉल्टिंग स्टेशन बड़े पैमाने पर संबंधित राज्य सरकारों द्वारा चलाए जाते हैं।
      • कम-से-कम 17 भारतीय राज्यों में कोयला आधारित थर्मल पावर स्टेशन हैं। राज्यवार तुलना निम्नलिखित है:
        • असम (AS) को छोड़कर, इन 17 में से कोई भी राज्य 100% निर्धारित समय सीमा का पालन नहीं करेगा। इस राज्य में 750 मेगावाट का पावर स्टेशन है जो इसकी कुल कोयला क्षमता का एक नगण्य प्रतिशत है।

Emission

  • गलत पर राज्य द्वारा संचालित इकाइयाँ:
    • अधिकांश कोयला तापविद्युत क्षमता जिनके मानदंडों को पूरा करने की संभावना है, केंद्रीय क्षेत्र से संबंधित है इसके बाद निजी क्षेत्र का स्थान आता है। 
      • राज्य क्षेत्र से संबंधित संयंत्रों में से कुछ ने निविदा जारी की है या व्यवहार्यता अध्ययन के विभिन्न चरणों में है या अभी तक कोई कार्य योजना नहीं बनाई है।
  • पेनल्टी मैकेनिज़्म प्रभाव:
    • गैर-अनुपालन इकाइयों पर लगाया गया जुर्माना नए मानदंडों को पूरा करने के लिये प्रदूषण नियंत्रण उपकरण (FGD) के विभिन्न घटकों की कानूनी लागत को वहन करने के बजाय भुगतान करने हेतु अधिक व्यवहार्य होगा।
      • अप्रैल 2021 की अधिसूचना में समय-सीमा में संशोधन के अलावा संबंधित समय सीमा को पूरा नहीं करने वाले प्लांट् के लिये  पेनल्टी मैकेनिज़्म या पर्यावरण मुआवजा (Environmental Compensation) भी पेश किया गया था।
    • जो पर्यावरणीय मुआवजा लगाया जाएगा, वह इस अपेक्षित गैर-अनुपालन के लिये निवारक के रूप में कार्य करने में विफल रहेगा क्योंकि यह एक कोयला थर्मल पावर प्लांट द्वारा प्रभावी उत्सर्जन नियंत्रण की लागत की तुलना में बहुत कम है।

सल्फर डाइऑक्साइड प्रदूषण

  • स्रोत:
    • वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड का सबसे बड़ा स्रोत विद्युत संयंत्रों और अन्य औद्योगिक गतिविधियों में जीवाश्म ईंधन का दहन है। 
    • सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन के छोटे स्रोतों में अयस्कों से धातु निष्कर्षण  जैसी औद्योगिक प्रक्रियाएँ, प्राकृतिक स्रोत जैसे- ज्वालामुखी विस्फोट, इंजन, जहाज़ और अन्य वाहन तथा भारी उपकारणों में उच्च सल्फर ईंधन सामग्री का प्रयोग शामिल है।
  • प्रभाव: सल्फर डाइऑक्साइड स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों को प्रभावित कर सकती है।
    • सल्फर डाइऑक्साइड के अल्पकालिक जोखिम मानव श्वसन प्रणाली को नुकसान पहुंँचा सकते हैं और साँस लेने में कठिनाई उत्पन्न कर सकते हैं। विशेषकर बच्चे SO2 के इन प्रभावों के प्रति संवेदनशील होते हैं। 
    • SO2 का उत्सर्जन हवा में SO2 की उच्च सांद्रता के कारण होता है, सामान्यत: यह सल्फर के अन्य ऑक्साइड (SOx) का निर्माण करती है। (SOx) वातावरण में अन्य यौगिकों के साथ प्रतिक्रिया कर छोटे कणों का निर्माण कर सकती है। ये कणकीय पदार्थ (Particulate Matter- PM) प्रदूषण को बढ़ाने में सहायक हैं। 
      • छोटे प्रदूषक कण फेफड़ों में प्रवेश कर स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
  • भारत का मामला:
    • भारत द्वारा सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन के मामले में ग्रीनपीस इंडिया और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (Centre for Research on Energy and Clean Air) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में  वर्ष 2018 की तुलना में लगभग 6% की गिरावट (चार वर्षों में सबसे अधिक) दर्ज की गई है।
      • फिर भी भारत इस दौरान  SO2 का सबसे बड़ा उत्सर्जक बना रहा।
    • वायु गुणवत्ता उप-सूचकांक को अल्पकालिक अवधि (24 घंटे तक) के लिये व्यापक राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक निर्धारित करने हेतु आठ प्रदूषकों (PM10, PM2.5, NO2, SO2, CO, O3, NH3 तथा Pb) के आधार पर विकसित किया गया है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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