लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

‘एनरिका लेक्सी’ विवाद का अंतिम निर्णय

  • 07 Jul 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये

परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन, ‘एनरिका लेक्सी’ विवाद

मेन्स के लिये

PCA के निर्णय का भारत पर प्रभाव, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा से संबंधित विवादों की निपटान प्रणली

चर्चा में क्यों?

हेग स्थित ‘परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन’ (Permanent Court of Arbitration-PCA) ने ‘एनरिका लेक्सी’ (Enrica Lexie Case) मामले में निर्णय देते हुए इटली के दो नौसेनिकों पर भारतीय मछुआरों की हत्या का आपराधिक मुकदमा चलाने को लेकर भारत के तर्क को खारिज़ कर दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • पाँच सदस्यों वाले ‘परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन’ (PCA) ने भारत को इटली के दोनों नौसेनिकों के विरुद्ध सभी प्रकार की आपराधिक कार्यवाहियों को रोकने का आदेश दिया है।
  • PCA ने स्पष्ट किया है कि भारत के पास इटली के नौसेनिकों पर आपराधिक मुकदमा चलाने का क्षेत्राधिकार नहीं है।

‘एनरिका लेक्सी’ विवाद की पृष्ठभूमि 

  • दरअसल वर्ष 2012 में भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल ने ‘एनरिका लेक्सी’ नामक तेल टैंकर जहाज़ पर तैनात इटली के दो नौसैनिकों को हिरासत में लिया था, जिन पर आरोप था कि उन्होंने दो भारतीय मछुआरों को गोली मार कर हत्या कर दी थी।
    • इस संबंध में इटली के नौसेनिकों ने अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा कि उन्हें यह गलतफहमी हुई कि वे दोनों मछुआरे समुद्री लुटेरे हैं और इसलिये दोनों ने उन पर गोली चला दी, जिससे उनकी चली गई थी।
  • इस घटना की खबर होते ही भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल ने इटली के दोनों सैनिकों को हिरासत में लिया, हालाँकि उन पर उस समय कोई मुकदमा दायर नहीं किया।
  • भारतीय नौसेना के अनुसार, जब यह घटना हुई तब इटली का ‘एनरिका लेक्सी’ तेल टैंकर भारत के तट से लगभग 20.5  नॉटिकल माइल (Nautical Miles) दूर था।
  • इस घटना के तीन वर्षों बाद इटली ने ‘इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल फॉर लॉ ऑफ द सी’ (International Tribunal for Law of the Sea-ITLOS) के समक्ष याचिका दायर की और यह अनुरोध किया कि भारत इस संबंध में इटली के दोनों सैनिकों के विरुद्ध चल रहे सभी मुकदमों को तुरंत रोक दे और दोनों लोगों को वापस इटली भेज दे।
  • तब तक भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए आदेश के अनुरूप आपराधिक न्यायालय क्षेत्र के निर्धारण हेतु एक विशेष रूप से नामित अदालत की स्थापना कर दी थी।
  • वर्ष 2015 में ITLOS ने अपना निर्णय दिया और भारत तथा इटली को ‘एनरिका लेक्सी’ मामले के संबंध में घरेलू स्तर पर चल रहे सभी मामलों को निलंबित करने का आदेश दिया। इसके साथ ही ITLOS ने दोनों देशों को इस मामले में कोई और कदम न उठाने का भी आदेश दिया था।
  • ITLOS के निर्णय के बाद इटली इस मामले को ‘परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन’ (PCA) के समक्ष लेकर गया।
  • गौरतलब है कि इस विवाद ने भारत और इटली दोनों देशों के बीच कुछ समय के लिये राजनयिक तनाव को काफी अधिक बढ़ा दिया था।

PCA का निर्णय

  • PCA ने अपने निर्णय में कहा कि भारत के पास इटली के दोनों नौसेना पर ‘एनरिका लेक्सी’ मामले में किसी भी प्रकार का आपराधिक मुकदमा चलाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि वे दोनों नौसैनिक एक राष्ट्र की ओर से कार्य कर रहे थे, न कि व्यक्तिगत तौर पर।
  • PCA ने माना कि इटली के सैन्य अधिकारियों की कार्यवाही ने भारत के नेविगेशन की स्वतंत्रता से संबंधित अधिकार का उल्लंघन किया है, जिसके कारण भारत मुआवज़े का हकदार है, क्योंकि इटली के सैन्य अधिकारियों की कार्यवाही के कारण भारत को जान-माल का नुकसान हुआ है। 

भारत के लिये इस निर्णय के निहितार्थ

  • PCA के हालिया निर्णय को भारत के लिये आंशिक जीत और आंशिक हार के तौर पर देखा जा सकता है, जहाँ एक ओर भारत को इस संबंध में मुआवज़े प्राप्त करने का अधिकार है, वहीं अब भारतीय नागरिकों की मृत्यु के लिये उत्तरदायी लोगों को भारतीय न्याय क्षेत्र में सज़ा नहीं दी जा सकेगी।
  • भारत सरकार ने PCA के निर्णय को स्वीकार करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय को ‘एनरिका लेक्सी’ विवाद से संबंधित सभी मामलों को निलंबित करने को लेकर सूचित किया है।
  • विशेषज्ञ मानते हैं कि PCA के हालिया निर्णय का प्रभाव आने वाले समय में ऐसे ही किसी अन्य मामले पर देखने को मिल सकता है और अपराधी इसी प्रकार PCA के हालिया निर्णय का सहारा लेकर आसानी से बच सकते हैं।

परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (PCA) 

  • परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (PCA) राज्यों के बीच मध्यस्थता एवं विवाद समाधान के लिये समर्पित एक अंतर-सरकारी संगठन है।
  • परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (PCA) की स्थापना वर्ष 1899 में हुई थी और इसका मुख्यालय हेग, नीदरलैंड्स में स्थित है।
  • PCA में एक प्रशासनिक परिषद होती है जो नीतियों और बजट का प्रबंधन करती है और साथ ही इसमें स्वतंत्र मध्यस्थों का पैनल भी होता है जिन्हें न्यायालय के सदस्य के रूप में जाना जाता है।

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2