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द लांसेट काउंटडाउन 2018 रिपोर्ट

  • 29 Nov 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?


हाल ही में जारी की गई लांसेट काउंटडाउन 2018 रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया है कि भारतीय नीति निर्माताओं को वर्ष 2012-2016 की अवधि में देश में भयंकर गर्मी की घटनाओं में वृद्धि के कारण हुई श्रम के घंटों के नुकसान और स्वास्थ्य के प्रति बढ़े हुए जोखिमों को कम करने के लिये नए प्रयास शुरू करने चाहिये।


प्रमुख बिंदु

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014-2017 की अवधि में भारत में भयंकर गर्मी की औसत अवधि 0.8-1.8 दिनों के वैश्विक औसत की तुलना में 3-4 दिनों तक थी और भारतीयों ने वर्ष 2012 में लगभग 40 मिलियन की तुलना में वर्ष 2016 में लगभग 60 मिलियन भयंकर गर्मी के प्रकोप की घटनाओं का सामना किया।
  • भयंकर गर्मी के कारण विभिन्न समस्याएँ सामने आती हैं जैसे- तनाव और हीट स्ट्रोक की दरों में वृद्धि, हार्ट फेल होने की समस्या और डीहाईड्रेशन से किडनी को नुकसान आदि। बच्चे, बुज़ुर्ग और पहले से ही रोगग्रस्त लोग विशेष रूप से भयंकर गर्मी के प्रति सुभेद्य होते हैं।
  • भयंकर गर्मी के कारण वर्ष 2017 में वैश्विक स्तर पर लगभग 153 बिलियन श्रमिक घंटों का नुकसान हुआ जो कि वर्ष 2000 में हुए नुकसान से 62 बिलियन घंटे अधिक है।
  • यह देखते हुए कि एक हालिया रिपोर्ट ‘भारत को उन देशों की श्रेणी में रखती है जो जलवायु परिवर्तन के चलते उच्च सामाजिक और आर्थिक लागत का अनुभव करते हैं’, यह अध्ययन कई महत्त्वपूर्ण सिफारिशें करता है।
  • इन सिफारिशों में मौसम संबंधी डेटा के उचित ट्रैकिंग के माध्यम से ‘भयंकर गर्मी वाले हॉट-स्पॉट’ की पहचान करना और रणनीतिक अंतर-एजेंसी समन्वय के साथ स्थानीय हीट एक्शन प्लान के सही समय पर विकास और कार्यान्वयन को बढ़ावा देना और एक प्रतिक्रिया प्रदान करना जो सबसे कमजोर समूहों को लक्षित करती हो, आदि प्रमुख हैं।
  • पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के साथ संयुक्त रूप से तैयार की गई यह रिपोर्ट जलवायु परिस्थितियों के संबंध में मौजूदा व्यावसायिक स्वास्थ्य मानकों, श्रम कानूनों और श्रमिक सुरक्षा के क्षेत्रीय नियमों की समीक्षा का भी आग्रह करती है।
  • भारत के मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, वर्ष 1901 से 2007 तक औसत तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि हुई थी, जिसमें काफी भौगोलिक विविधता थी और शोध समूहों द्वारा जलवायु पूर्वानुमान के अनुसार, 21वीं शताब्दी के अंत तक उत्तरी, मध्य और पश्चिमी भारत के तापमान में 2.2-5.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी।

कृषि श्रमिक सुभेद्य

  • लांसेट के अनुसार, पूरे भारत में वर्ष 2000-2017 के बीच नुकसान हुए श्रम के घंटों की संख्या भी बढ़ी है। कृषि क्षेत्र औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों की तुलना में अधिक सुभेद्य था क्योंकि श्रमिकों के गर्मी के संपर्क में आने की संभावना अधिक थी।
  • अकेले कृषि क्षेत्र में, नुकसान हुए श्रम के घंटों की संख्या वर्ष 2000 के 40,000 मिलियन घंटों से वर्ष 2017 में लगभग 60,000 मिलियन घंटों तक बढ़ गई। कुल मिलाकर सभी क्षेत्रों में भारत को वर्ष 2000 के 43,000 मिलियन घंटों की तुलना में वर्ष 2017 में लगभग 75,000 मिलियन श्रम के घंटों का नुकसान हुआ।
  • यह निष्कर्ष भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कृषि का योगदान देश के सकल घरेलू उत्पाद में 18% है और यह क्षेत्र आबादी के लगभग आधे हिस्से को रोज़गार प्रदान करता है।
  • दक्षिण एशिया के हॉट-स्पॉट को लेकर हाल ही में विश्व बैंक की एक रिपोर्ट ने तापमान, वर्षा और वर्षा पैटर्न में बदलाव के कारण जीवन स्तर में गिरावट के साथ वर्ष 2050 तक देश के जीडीपी में 2.8% के क्षरण की भविष्यवाणी की है।
  • पिछले महीने जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) द्वारा जारी की गई ‘1.5 डिग्री सेल्सियस के ग्लोबल वार्मिंग पर विशेष रिपोर्ट' के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान वर्तमान से एक डिग्री सेल्सियस अधिक हो जाए तो भारत को 2015 की भयंकर गर्मी जिससे 2,000 लोगों की मौत हुई, जैसी स्थिति का सामना वार्षिक तौर पर करना पड़ सकता है।
  • ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के संबंध में संयुक्त राष्ट्र संधि के तहत लगभग 190 हस्ताक्षरकर्त्ता देशों के कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ का आयोजन 2015 के पेरिस समझौते को लागू करने के लिये 'नियम पुस्तिका' तैयार करने हेतु काटोविस, पोलैंड में किया जा रहा है।
  • पेरिस समझौता एक ऐतिहासिक समझौता है, जिसमें सभी देश इस शताब्दी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस नीचे लेन और तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक और भी सीमित करने के प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिये जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने हेतु वैश्विक प्रतिक्रिया को मज़बूत करने पर सहमत हुए।

स्रोत : द हिंदू

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