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इन्सॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन मानदंडों में बदलाव

  • 08 Nov 2017
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

आई.बी.बी.आई. (Insolvency and Bankruptcy Board of India – IBBI)  द्वारा कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (corporate insolvency resolution process) के नियमों में संशोधन किया गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रमोटरों सहित आवेदकों को उनकी क्रेडिट पात्रता और विश्वसनीयता के संबंध में कठोर मानदंडों के दायरे में रखा गया है।

संशोधन के प्रमुख बिंदु

  • इन संशोधनों के तहत रिज़ॉल्यूशन पेशेवरों और लेनदारों की समिति पर उनके कर्तव्यों का निर्वहन करने के संबंध में पहले की अपेक्षा अधिक ज़िम्मेदारी भी डाली गई है।
  • यह संशोधन इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि एक रिज़ॉल्यूशन योजना (resolution plan) के अनुमोदन से पहले भाग के रूप में पूर्वोत्तर रिकॉर्ड, क्रेडिट योग्यता तथा प्रमोटरों सहित रिज़ॉल्यूशन आवेदक (resolution applicant) की विश्वसनीयता को सीओसी (Committee of Creditors) के अधिकार के दायरे में रखा गया है। 
  • संशोधित नियमों के अनुसार रिज़ॉल्यूशन पेशेवर द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि सीओसी को प्रस्तुत की गई रिज़ॉल्यूशन योजना में रिज़ॉल्यूशन आवेदकों की विश्वसनीयता का आकलन करने के लिये सभी पर्याप्त प्रासंगिक विवरणों को शामिल किया गया है। 
  • रिज़ॉल्यूशन आवेदकों के संबंध में प्रदान किये जाने वाले विवरणों में रिज़र्व बैंक द्वारा जानबूझकर गबन करने वाले व्यक्तियों के संबंध में जारी दिशा-निर्देशों के अनुरूप दोषसिद्धि, अयोग्यता, आपराधिक कार्यवाही एवं वर्गीकरण तथा सेबी द्वारा लगाए जाने वाले विवर्जन अर्थात् रोक (debarment) से संबंधित विवरणों को भी शामिल किया जाएगा।
  • इसके अतिरिक्त रिज़ॉल्यूशन पेशेवरों को भी इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (Insolvency and Bankruptcy Code) के तहत अधोमूल्यित लेन-देन (undervalued transactions),  जघन्य ऋण लेन-देन (extortionate credit transactions) और धोखाधड़ी वाले लेन-देन (fraudulent transactions) से संबंधित प्रावधानों के अंतर्गत शामिल सभी प्रकार के लेन-देनों के संबंध में विवरण जमा करना होगा।

उद्देश्य

  • यह सुनिश्चित करने के लिये कि कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया एक विश्वसनीय और व्यवहार्य संकल्प योजना के रूप में सफल साबित हो, आई.बी.बी.आई. द्वारा आई.बी.बी.आई. (Insolvency Resolution Process for Corporate Persons) रिज़ॉल्यूशन प्रोसेस, 2016 (CIRP Regulations) में संशोधन किया गया है।

इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड क्या है?

  • विगत वर्ष केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम उठाते हुए एक नया दिवालियापन संहिता संबंधी विधेयक पारित किया था। यह नया कानून 1909 के 'प्रेसीडेंसी टाऊन इन्सॉल्वेंसी एक्ट’ और 'प्रोवेंशियल इन्सॉल्वेंसी एक्ट 1920’ को रद्द करता है और कंपनी एक्ट, लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट और 'सेक्यूटाईजेशन एक्ट' समेत कई कानूनों में संशोधन करता है। 
  • किसी भी कंपनी या साझेदारी फर्म में व्यावसायिक नुकसान के चलते कभी भी दिवालिया होने की संभावना बनी रहती है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि यदि कोई आर्थिक इकाई दिवालिया होती है तो इसका मतलब यह होता है कि वह अपने संसाधनों के आधार पर अपने ऋणों को चुका पाने में असमर्थ है। 
  • ऐसी स्थिति में कानून में स्पष्टता न होने पर ऋणदाताओं को भी नुकसान होता है और स्वयं उस व्यक्ति या फर्म को भी तरह-तरह की मानसिक एवं अन्य प्रताड़नाओं से गुज़रना पड़ता है। 
  • विदित हो कि बैंकरप्सी कोड के तहत दिवालियापन प्रक्रियाओं को 180 दिनों के अंदर निपटाने की व्यवस्था की गई है। यदि दिवालियेपन को सुलझाया नहीं जा सकता तो ऋणदाता (Creditors) का ऋण चुकाने के लिये उधारकर्त्ता (borrowers) की परिसंपत्तियों को बेचा जा सकता है। 
  • हालाँकि, बैंकरप्सी कोड केवल एन.पी.ए. समस्या का ही समाधान ही नहीं करता है, बल्कि यह भारत के बेहद पुराने और अप्रचलित दिवालियापन कानूनों में सुधार भी करता है।
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