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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

वैश्विक जीडीपी एवं पूंजी बाज़ार में भारत की हिस्सेदारी के मध्य अन्तराल

  • 02 Jan 2017
  • 4 min read

पृष्ठभूमि

पिछले दिनों हुए एक सर्वेक्षण में वैश्विक पूंजी बाज़ार तथा वैश्विक जीडीपी (Gross Domestic Product) में भारत की हिस्सेदारी के मध्य अन्तराल को 13 वर्षों के उच्चतम स्तर पर दर्ज किया गया है|  इस अन्तराल का मुख्य कारण विकसित बाज़ारों की तुलना में भारतीय बाज़ार का कमजोर रवैया तथा उभरते हुए बाज़ारों द्वारा अपनी पूंजी को डॉलर परिसम्पत्ति में परिवर्तित करने एवं वर्ष की अंतिम तिमाही में विमुद्रीकरण के कारण फैली हताशा है|

प्रमुख बिंदु 

  • ब्लूमबर्ग तथा आईएमएफ द्वारा प्रदत्त आँकड़ों के अनुसार, विश्व की कुल जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी तक़रीबन 2.99% की है जबकि वैश्विक पूंजी बाज़ार में इसकी हिस्सेदारी तक़रीबन 2.26% है|
  • इस प्रकार इन दोनों के मध्य 73 आधार बिंदुओं का स्पष्ट अंतर दर्ज किया गया, जोकि वर्ष 2003 के बाद से अब तक के सबसे उच्चतम स्तर पर है| ध्यातव्य है कि एक आधार बिंदु एक प्रतिशत बिंदु का सौवाँ भाग होता है|
  • ध्यातव्य है कि जीडीपी के आँकड़ों का निर्धारण आईएमएफ के आकलनों के आधार पर किया  गया  है क्योंकि हालिया सरकारी आँकड़े अभी उपलब्ध नही हैं|
  • उपरोक्त आँकड़ें यह प्रदर्शित करते हैं कि वैश्विक शेयर बाज़ार में भारतीय शेयर बाजारों का प्रदर्शन निम्न स्तरीय है| इसका एक प्रमुख कारण सामान्यतः उभरते हुए बाज़ारों का निम्न स्तरीय प्रदर्शन तथा विक्रय दबाव (selling pressure) है|
  • इसका दूसरा कारण हाल ही में भारत में विमुद्रीकरण के कारण उपजे मुद्दों तथा इससे पड़ने वाले प्रभावों से संबंधित है|
  • ध्यातव्य है कि कारोबारी अर्जन (जिसे अच्छे मानसून के कारण उपभोग एवं मज़दूरी में होने वाली वृद्धि के रूप में इंगित किया जाता है) के साथ-साथ एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के उपभोग-स्तर पर भी विमुद्रीकरण का प्रभाव पड़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है|
  • गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से विश्व बाज़ार के समक्ष भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन निम्न स्तर का रहा है, जिसके परिणामस्वरूप विश्व की जीडीपी एवं वैश्विक पूंजी बाज़ार में भारत के योगदान प्रतिशत में व्यापक अन्तर दर्ज किया गया है|
  • ध्यातव्य है कि डॉलर इंडेक्स (इसे विश्व की छह सबसे सशक्त पूंजियों के विरुद्ध ग्रीनबैक (greenback) की क्षमता के मापक के रूप में व्यक्त किया जाता है) ने पिछले चार वर्षों से बढ़त दर्ज करते हुए वर्ष 2016 में 3.66% की वृद्धि दर्ज की है|
  • इसके परिणामस्वरूप भारतीय रुपए के साथ-साथ अन्य उभरते हुए बाज़ारों की मुद्राओं का भी अवमूल्यन हो गया है|
  • वर्ष 2016 में भारतीय रुपए में अमेरिकी डॉलर की तुलना में 2.16 % की कमी दर्ज की गई|
  • ध्यातव्य है कि इस समय भारत वैश्विक जोखिम व्यापार के मध्य में है, यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ पूंजी का प्रवाह उभरते बाज़ारों से विकसित बाज़ारों (जैसे-अमेरिका) की ओर होता है|
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